अनाथपिडक
अनाथपिडक अथवा 'अनाथपिंडक' श्रावस्ती का विख्यात श्रेष्ठि था। बुद्ध के उपदेश सुनकर वह उनका अनुयायी बन गया था। उसने जेत कुमार से जेतवन क्रय करके बुद्ध को प्रदान किया था।[1] राजगृह मे वेणुवन और वैशाली के महावन के ही भाँति जेतवन का भी विशेष महत्त्व था।[2] इस नगर में निवास करने वाले अनाथपिंडक ने जेतवन में विहार[3], परिवेण[4], उपस्थान शालाएँ[5], कापिय कुटी[6], चंक्रम[7], पुष्करणियाँ और मंडप बनवाए थे।[8]
- अनाथपिंडक के निमंत्रण पर ही भगवान बुद्ध श्रावस्ती स्थित जेतवन पहुँचे थे।
- श्रेष्ठि अनाथापिण्डक ने बुद्ध को खाद्य भोज्य अपने हाथों से अर्पित कर जेतवन को बौद्ध संघ को दान कर दिया था। इसमें अनाथ पिंडक को 18 करोड़ मुद्राओं को व्यय करना पड़ा था। उल्लेखनीय है कि इस घटना का अंकन 'भरहुत कला' में भी हुआ है।[9]
- तथागत ने जेतवन में प्रथम वर्षावास बोधि के चौदहवें वर्ष में किया था। इससे यह निश्चित होता है कि जेतवन का निर्माण इसी वर्ष (514-513 ई. वर्ष पूर्व) में हुआ होगा।
- उल्लेखनीय है कि जेतवन के निर्माण के पश्चात् अनाथपिंडक ने तथागत बुद्ध को निमंत्रित किया था।[10]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ दीक्षा की भारतीय परम्पराएँ (हिंदी), 87।
- ↑ उदयनारायण राय, प्राचीन भारत में नगर तथा नगर जीवन, पृष्ठ 118
- ↑ भिक्षु विश्राम स्थल
- ↑ आँगनयुक्त घर
- ↑ सभागृह
- ↑ भंडार
- ↑ टहलने के स्थान
- ↑ विनयपिटक (हिन्दी अनुवाद), पृष्ठ 462; बुद्धकालीन भारतीय भूगोल, पृष्ठ 240; तुल. विशुद्धानन्द पाठक, हिस्ट्री आफ कोशल, (मोतीलाल बनारसीदास, वाराणसी, 1963), पृष्ठ 61
- ↑ बरुआ, भरहुत, भाग 2, पृष्ठ 31
- ↑ ऐतिहासिक स्थानावली | विजयेन्द्र कुमार माथुर | वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग | मानव संसाधन विकास मंत्रालय, भारत सरकार