अनईकट्टू

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अनईकट्टू अंग्रेजी शब्द 'ऐनीकट' तमिल भाषा के मूल शब्द 'अनईकट्टू' का अपभ्रंश है। इसका मूल अर्थ बाँध है। ऐसे बाँध नदी नालों में जल के मार्ग को बाँध से छोटा कर देने पर बाँध के पूर्व जल का स्तर ऊँचा हो जाता है, जिससे कई प्रकार की सुविधाएँ होती हैं।


नदी के मार्ग के अनुप्रस्थ (आरपार) दिए जाते हैं, जिससे बाँध के पूर्व नदी तल ऊँचा हो जाता है। तब इसकी बगल में बनीे नहरों में पानी भेजा जा सकता है। उत्तर भारत में 'अनईकट्टू' या 'ऐनीकट' शब्द का प्रयोग नहीं होता (द्र. 'उद्रोध')। कभी कभी जलाशयों के ऊपर, अतिरिक्त जल की निकासी के लिये, जो बाँध या पक्की दीवार बनाई जाती है उसे भी अनईकट्टू कहते हैं।

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अनईकट्टू बहुधा पत्थर या ईट की पक्की चुनाई में बनाए जाते हैं और इसकी मोटाई की गणना इंजीनियरी के सिद्धांतों पर की जाती है, क्योंकि दुर्बल अनईकट्टू पानी के अधिक वेग अथवा बाढ़ से टूट जाते हैं और आवश्यकता से अधिक दृढ़ बनाने में व्यर्थ अधिक धन लगता है। सबसे महत्वपूर्ण अनईकट्टू दक्षिण भारत में 'ग्रैंड ऐनीकट' है जो कावेरी नदी पर शताब्दियों पूर्व चोल राजाओं के समय का बना हुआ है। इससे कई नहरें निकाली गई हैं।[1] मछुए लोग नदी में मछली पकड़ने के लिए लकड़ियों की जो दीवार खड़ी कर लेते हैं वह भी कहीं-कहीं वीयर ही कहलाती है। किंतु सामान्यत: इस शब्द का इंजीनियरी में ही प्रयोग होता है। जहाँ उद्देश्य यह रहता है कि जल को पूर्णतया या प्राय: पूर्णतया रोककर जलाशय बना लिया जाए वहाँ डेम या बराज शब्द का प्रयोग किया जाता है। इसे हिंदी में बाँध या बँधारा कहते हैं; उदाहरणत: रेंड़ (रेणु) बाँध (रेहँड डैम) जिसमें बरसाती पानी रोक रखा जाता है। उद्रोधों की बनावट कई प्रकार की होती है और उनका निर्माण इंजीनियरी के सिद्धांतों पर निर्भर है। पृथुशीर्ष (ब्रॉड क्रेस्टेड), अर्थात्‌ सपाट मुडेर के उद्रोध बहुधा ऐसे होते हैं कि उनके ऊपर से गिरता हुआ पानी कुछ दूरी तक एक सी उँचाई में बहकर नीचे गिरता है। इनके विभिन्न रूप और आकार होते हैं। एक और प्रकार का उद्रोध 'मापीय' (सपोलिटी) नाम से विख्यात है। इसके द्वारा पानी के बहाव की मात्रा पानी जाती है। जहाँ इसी चौड़ाई संकुचित होती है वहाँ इसकी तलहटी अधिक ढालू (एक भाग पड़ी और चार भाग खड़ी अनुपात में) की दी जाती है। इस प्रकार चौड़ाई की कमी की पूर्ति अधिक गहराई से हो जाती है, और कहीं भी पानी आवश्यकता से अधिक ऊपर उठने नहीं पाता।

एक और प्रकार का उद्रोध आप्लावित उद्रोध (ड्राउंड वीयर), अर्थात्‌ डूबा हुआ उद्रोध कहलाता है। इसके द्वारा पनी में एक उछाल (हाइड्रॉलिक जंप) पैदा हो जाती है और जिस ओर पानी बहकर जाता है उस ओर पानी की सतह पहले वाली सतह से कुछ ऊँची हो जाती है, जिसके कारण पानी के बहाव में भी कुछ परिवर्तन हो जाता है। निमग्न उद्रोध (सममर्ज्ड वीयर) भी इसी प्रकार के होते हैं। इनके द्वारा उस ओर जिधर पानी बहकर जाता है, जल दूसरी ओरवाली सतह से काफी ऊँचा उठ जाता है। पानी की मात्रा की माप के लिए तीक्ष्णशीर्ष उद्रोध (शार्पक्रेस्टेड वीयर) अर्थात्‌ धारदार उद्रोध काम में आते हैं। इनकी ऊपरी सतह की काट (सेक्शन) समतल या गोलार्ध या अन्य वक्र के आका की होने की जगह पैनी धार तुल्य होती है। यह धार बहुधा किसी धातु की होती है। जलाशयों में से, अथवा अन्य जलसंबंधी व्यवस्थाओं में से, अतिरिक्त जल के निकास के लिए परिवाह उद्रोध (वेस्ट वीयर) भी बनाए जाते हैं।

साधारण चौड़ी सपाट मुडेर का उद्रोध गंगा नदी पर नरौरा में बना हुआ है जहाँ से 'लोअर गंगा नहर' निकली है। यह उद्रोध 3,800 फुट लंबा है और 1878 ई. में बना था। उद्रोध उत्तर रेलवे के राजघाट नरोरा रेलवे स्टेशन से गंगा के बहाव की दिशा में 4 मील पर है। नदी की तलहटी के औसत स्तर से पानी को दस फुट की ऊँचाई पर रोकरने के लिए यह उद्रोध बनाया गया है और इससे निम्न (लोअर) गंगा नहर में 5,670 घन फुट जल प्रति सेकंड जाता है। अनुमान किया जाता है कि बाढ़ के समय जलस्तर तीन फुट और ऊँचा हो जाएगा, जिससे 2 लाख घन फुट प्रति सेकंड की निकासी होगी। परंतु 1924 की बाढ़ में स्तर साधारण से सवा छह फुट ऊँचा हो गया और उद्रोध पर से 3,90,000 घन फुट प्रति सेकंड जल पार हुआ। केवल उद्रोध के बनाने में 19,03,895 रु. खर्च हुआ था, परंतु उद्रोध में बने जलद्वारा के बनाने में 8,15,531 रु. तथा बगली भीत बनाने में 94,737 रु. अतिरिक्त व्यय हुआ। एक और उद्रोध का उदाहरण दिल्ली के समीप यमुना नदी पर ओखला में है, जहाँ से आगरा नहर का उद्गम हुआ है। ऐसे ही बहुत से उद्रोध भिन्न-भिन्न नदियों पर बने हुए हैं और उनसे सिंचाई के लिए पानी का निकास हुआ है।

जहाँ नदी में उद्रोध बनाए जाते हैं वहाँ साथ ही ऐसा आयोजन भी किया जाता है कि यदि पानी को नदी में ही निकालने की आवश्यकता हो तो उद्रोध के निचले भाग में बने अधोद्वारों (अंडर-स्लसेज़) द्वारा निकाला जा सके। कभी-कभी बाढ़ के समय उद्रोध के ऊपर से होकर पानी निकलता है और साथ ही नीचे के भागों द्वारा भी उसकी निकासी की व्यवस्था की जाती है। कहीं-कहीं उद्रोध की पक्की दीवार के ऊपर पानी की कमी के समय तख्ते के पाट खड़े किए जाते हैं जिनके कारण पानी की सतह और भी ऊँची हो जाती है और इस प्रकार नहरों में पानी साधारण से अधिक मात्रा में पहुँचाया जा सकता है।

पानी के बहाव करे उद्रोध द्वारा रोकना पानी के मार्ग में बाधा डालना है। पानी बाधाओं से बच निकलने का मार्ग ढूँढता है और ऐसे मार्गों की रोकथाम करना भी उद्रोध की अभिकल्पना (डिज़ाइन) के साथ विचार में रखा जाता है। फिर, यदि बाढ़ के समय पानी बहुत अधिक आ जाए तो उद्रोध तथा उसके निकटवर्ती प्रदेशकी स्थिरता पर क्या प्रभाव पड़ेगा, इसपर भी ध्यान रखना आवश्यक है।[2]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. हिन्दी विश्वकोश, खण्ड 1 |प्रकाशक: नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 109 |
  2. हिन्दी विश्वकोश, खण्ड 2 |प्रकाशक: नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 109 |

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