अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस

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अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस
अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस
विवरण इस दिन को सम्पूर्ण विश्व की महिलाएँ देश, जात-पात, भाषा, राजनीतिक, सांस्कृतिक भेदभाव से परे एकजुट होकर मनाती हैं।
तिथि 8 मार्च
स्थापना 1910
उद्देश्य यह दिन महिलाओं को उनकी क्षमता, सामाजिक, राजनीतिक व आर्थिक तरक़्क़ी दिलाने व उन महिलाओं को याद करने का दिन है जिन्होंने महिलाओं को उनके अधिकार दिलाने के लिए अथक प्रयास किए।
विशेष संयुक्त राष्ट्र हर बार महिला दिवस पर एक थीम रखता है। वर्ष 2022 की थीम 'जेंडर इक्वालिटी टुडे फॉर ए सस्टेनेबल टुमारो' (Gender Equality Today For A Sustainable Tomorrow) है। इस थीम का अर्थ है कि एक स्थाई और समान कल के लिए समाज में लैंगिक समानता ज़रूरी है।
अन्य जानकारी दुनिया के प्रमुख विकसित एवं विकासशील देशों में भागदौड़ और आपाधापी से होने वाले तनाव के बारे में किए गए सर्वेक्षण के अनुसार भारत की सर्वाधिक महिलाएँ तनाव में रहती हैं। सर्वे में 87 प्रतिशत भारतीय महिलाओं ने कहा कि ज़्यादातर समय वे तनाव में रहती हैं और 82 प्रतिशत का कहना है कि उनके पास आराम करने के लिए वक़्त नहीं होता।
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अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस (अंग्रेज़ी: International Women's Day) हर वर्ष '8 मार्च' को विश्वभर में मनाया जाता है। इस दिन सम्पूर्ण विश्व की महिलाएँ देश, जात-पात, भाषा, राजनीतिक, सांस्कृतिक भेदभाव से परे एकजुट होकर इस दिन को मनाती हैं। महिला दिवस पर स्त्री की प्रेम, स्नेह व मातृत्व के साथ ही शक्तिसंपन्न स्त्री की मूर्ति सामने आती है। इक्कीसवीं सदी की स्त्री ने स्वयं की शक्ति को पहचान लिया है और काफ़ी हद तक अपने अधिकारों के लिए लड़ना सीख लिया है। आज के समय में स्त्रियों ने सिद्ध किया है कि वे एक-दूसरे की दुश्मन नहीं, सहयोगी हैं।[1]

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस 2022 की थीम 'जेंडर इक्वालिटी टुडे फॉर ए सस्टेनेबल टुमारो' (Gender Equality Today For A Sustainable Tomorrow) है। इस थीम का अर्थ है कि एक स्थाई और समान कल के लिए समाज में लैंगिक समानता ज़रूरी है। इस वर्ष महिला दिवस का रंग पर्पल, ग्रीन और सफेद है।

संयुक्त राष्ट्र हर बार महिला दिवस पर एक थीम रखता है। वर्ष 2021 की थीम है- चुनौती को चुनो। यह थीम इस विचार से चुना गया है कि बदलती हुई दुनिया एक चुनौतीपूर्ण दुनिया है और व्यक्तिगत तौर पर हम सब अपने विचार और कार्य के लिए ज़िम्मेदार हैं।

'अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस' मनाती हुई महिलाएँ

“नारी तुम केवल श्रद्धा हो, विश्वास रजत नग पग तल में।
पीयूष स्रोत सी बहा करो, जीवन के सुंदर समतल में।।“

'अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस'

इतिहास

इतिहास के अनुसार आम महिलाओं द्वारा समानाधिकार की यह लड़ाई शुरू की गई थी। लीसिसट्राटा नामक महिला ने प्राचीन ग्रीस में फ्रेंच क्रांति के दौरान युद्ध समाप्ति की मांग रखते हुए आंदोलन की शुरुआत की, फ़ारसी महिलाओं के समूह ने वरसेल्स में इस दिन एक मोर्चा निकाला, इसका उद्देश्य युद्ध के कारण महिलाओं पर बढ़ते अत्याचार को रोकना था। पहली बार सन् 1909 में सोशलिस्ट पार्टी ऑफ़ अमेरिका द्वारा पूरे अमेरिका में 28 फ़रवरी को महिला दिवस मनाया गया था। 1910 में सोशलिस्ट इंटरनेशनल द्वारा कोपेनहेगन में महिला दिवस की स्थापना हुई। 1911 में ऑस्ट्रिया, डेनमार्क, जर्मनी और स्विट्जरलैंड में लाखों महिलाओं ने रैली निकाली। इस रैली में मताधिकार, सरकारी नौकरी में भेदभाव खत्म करने जैसे मुद्दों की मांग उठी। प्रथम विश्व युद्ध के दौरान, रूसी महिलाओं द्वारा पहली बार शांति की स्थापना के लिए फ़रवरी माह के अंतिम रविवार को महिला दिवस मनाया गया। यूरोप भर में भी युद्ध विरोधी प्रदर्शन हुए। 1917 तक रूस के दो लाख से ज़्यादा सैनिक मारे गए, रूसी महिलाओं ने फिर रोटी और शांति के लिए इस दिन हड़ताल की। हालांकि राजनेता इसके ख़िलाफ़ थे, फिर भी महिलाओं ने आंदोलन जारी रखा और तब रूस के जार को अपनी गद्दी छोड़नी पड़ी और सरकार को महिलाओं को वोट के अधिकार की घोषणा करनी पड़ी।


'महिला दिवस' अब लगभग सभी विकसित, विकासशील देशों में मनाया जाता है। यह दिन महिलाओं को उनकी क्षमता, सामाजिक, राजनीतिक व आर्थिक तरक़्क़ी दिलाने व उन महिलाओं को याद करने का दिन है जिन्होंने महिलाओं को उनके अधिकार दिलाने के लिए अथक प्रयास किए।[2] 'संयुक्त राष्ट्र संघ' ने भी महिलाओं के समानाधिकार को बढ़ावा और सुरक्षा देने के लिए विश्वभर में कुछ नीतियाँ, कार्यक्रम और मापदंड निर्धारित किए हैं। भारत में भी 'महिला दिवस' व्यापक रूप से मनाया जाने लगा है।[3]

क्लारा ज़ेटकिन

अंतरराष्ट्रीय दिवस बनाने का सुझाव

राष्ट्रीय महिला दिवस को अंतरराष्ट्रीय बनाने का सुझाव एक स्त्री का ही था। क्लारा ज़ेटकिन ने 1910 में कोपेनहेगन में कामकाजी महिलाओं की एक इंटरनेशनल कॉन्फ्रेंस के दौरान अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाने का सुझाव दिया। उस वक़्त कॉन्फ़्रेंस में 17 देशों की 100 महिलाएँ मौजूद थीं। उन सभी ने इस सुझाव का समर्थन किया। सबसे पहले साल 1911 में ऑस्ट्रिया, डेनमार्क, जर्मनी और स्विट्ज़रलैंड में अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाया गया।

थीम

  • सन 1975 में महिला दिवस को आधिकारिक मान्यता उस वक्त दी गई, जब संयुक्त राष्ट्र ने इसे वार्षिक तौर पर एक थीम के साथ मनाना शुरू किया। अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस की पहली थीम थी- सेलीब्रेटिंग द पास्ट, प्लानिंग फ़ॉर द फ्यूचर
  • वर्ष 2015 की थीम थी- सशक्त महिला-सशक्त मानवता। महिलाओं को सशक्त करने का अर्थ है 'इंसानियत को बुलंद करना'।
  • वर्ष 2021 की थीम है- चुनौती को चुनो। यह थीम इस विचार से चुना गया है कि बदलती हुई दुनिया एक चुनौतीपूर्ण दुनिया है और व्यक्तिगत तौर पर हम सब अपने विचार और कार्य के लिए ज़िम्मेदार हैं। अभियान में कहा गया है कि "हम सब लैंगिक भेदभाव और असमानता को चुनौती दे सकते हैं। हम सब महिलाओं की उपलब्धियों का जश्न मना सकते हैं। सामूहिक रूप से, हम सब एक समावेशी दुनिया बनाने में योगदान दे सकते हैं"।
  • वर्ष 2022 की थीम 'जेंडर इक्वालिटी टुडे फॉर ए सस्टेनेबल टुमारो' (Gender Equality Today For A Sustainable Tomorrow) है। इस थीम का अर्थ है कि एक स्थाई और सामान कल के लिए समाज में लैंगिक समानता जरूरी है।

रंग

बैंगनी, हरा और सफ़ेद- ये तीनों अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के रंग हैं। अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस कैंपेन के मुताबिक़, "बैंगनी रंग न्याय और गरिमा का सूचक है। हरा रंग उम्मीद का रंग है। सफ़ेद रंग को शुद्धता का सूचक माना गया है। ये तीनों रंग 1908 में ब्रिटेन की वीमेंस सोशल एंड पॉलिटिकल यूनियन (डब्ल्यूएसपीयू) ने तय किए थे"।

8 मार्च ही क्यों?

महिला दिवस पर डाक टिकट

ये सवाल तो सबके ज़हन में भी उठता ही होगा कि आख़िर 8 मार्च को ही अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस क्यों मनाया जाता है? दरअसल, क्लारा ज़ेटकिन ने महिला दिवस मनाने के लिए कोई तारीख़ पक्की नहीं की थी। सन 1917 में युद्ध के दौरान रूस की महिलाओं ने 'ब्रेड एंड पीस' (यानी खाना और शांति) की मांग की। महिलाओं की हड़ताल ने वहां के सम्राट निकोलस को पद छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया और अंतरिम सरकार ने महिलाओं को मतदान का अधिकार दे दिया। उस समय रूस में जूलियन कैलेंडर का प्रयोग होता था। जिस दिन महिलाओं ने यह हड़ताल शुरू की थी, वह तारीख़ 23 फ़रवरी थी। ग्रेगेरियन कैलेंडर में यह दिन 8 मार्च था और उसी के बाद से अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस 8 मार्च को मनाया जाने लगा।[4]

कई देशों में इस दिवस के अवसर पर राष्ट्रीय अवकाश की घोषणा की जाती है। रूस और दूसरे कई देशों में इस दिन के आस-पास फूलों की कीमत काफी बढ़ जाती है। इस दौरान महिला और पुरुष एक-दूसरे को फूल देते हैं। चीन में ज्यादातर दफ़्तरों में महिलाओं को आधे दिन की छुट्टी दी जाती है। वहीं अमरीका में मार्च का महीना 'विमेन्स हिस्ट्री मंथ' के तौर पर मनाया जाता है।

प्रगति, दुर्गति में परिणीत

समाज में यह विषमता चारों तरफ है और महिलाओं को लेकर भी यह सहज स्वाभाविक है। महिलाओं की प्रगति बदलाव की बयार में दुर्गति में अधिक परिणीत हुई है। हम बार-बार आगे बढ़कर पीछे खिसके हैं। बात चाहे अलग-अलग तरीक़े से किए गए बलात्कार या हत्या की हो, खौफनाक फरमानों की या महिला अस्मिता से जुड़े किसी विलम्बित अदालती फैसले की। कहीं ना कहीं महिला कहलाए जाने वाला वर्ग हैरान और हतप्रभ ही नज़र आया है।[2]

सृष्टि सृजन में योगदान

'अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस' मनाती हुई महिलाएँ

सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा के बाद सृष्टि सृजन में यदि किसी का योगदान है तो वो नारी का है। अपने जीवन को दांव पर लगा कर एक जीव को जन्म देने का साहस ईश्वर ने केवल महिला को प्रदान किया है। हालाँकि तथा-कथित पुरुष प्रधान समाज में नारी की ये शक्ति उसकी सबसे बड़ी कमज़ोरी मानी जाती है। आज समाज के दोहरे मापदंड नारी को एक तरफ पूज्यनीय बताते है तो दूसरी ओर उसका शोषण करते हैं। यह नारी जाति का अपमान है। औरत समाज से वही सम्मान पाने की अधिकारिणी है जो समाज पुरुषों को उसकी अनेकों ग़लतियों के बाद भी पुन: एक अच्छा आदमी बनने का अधिकार प्रदान करता है।

शक्ति प्रधान समाज का अंग

नारी को आरक्षण की ज़रूरत नहीं है। उन्हें उचित सुविधाओं की आवश्यकता है, उनकी प्रतिभाओं और महत्त्वकांक्षाओं के सम्मान की और सबसे बढ़ कर तो ये है कि समाज में नारी ही नारी को सम्मान देने लगे तो ये समस्या काफ़ी हद तक कम हो सकती है। महिला अपनी शक्ति को पहचाने और पुरुषों की झूठी प्रशंसा से बचे और सोच बदले कि वे पुरुष प्रधान समाज की नहीं बल्कि शक्ति प्रधान समाज का अंग है और शक्ति प्राप्त करना ही उनका लक्ष्य है और वो केवल एक दिन की सहानुभूति नहीं अपितु हर दिन अपना हक एवं सम्मान चाहती है।[5]

'अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस' मनाती हुई महिलाएँ

पूंजीवादी शोषण के ख़िलाफ़

'अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस' लगभग सौ वर्ष पूर्व, पहली बार मनाया गया था, जब पूंजीवाद और साम्राज्यवाद तेज़ी से विकसित हो रहे थे और लाखों महिलायें मज़दूरी करने निकल पड़ी थीं। महिलाओं को पूंजीवाद ने मुक्त कराने के बजाय, कारख़ानों में ग़ुलाम बनाया, उनके परिवारों को अस्त-व्यस्त कर दिया, उन पर महिला, मज़दूर और गृहस्थी होने के बहुतरफा बोझ डाले तथा उन्हें अपने अधिकारों से वंचित किया। महिला मज़दूर एकजुट हुईं और बड़ी बहादुरी व संकल्प के साथ, सड़कों पर उतर कर संघर्ष करने लगीं। अपने दिलेर संघर्षों के ज़रिये, वे शासक वर्गों व शोषकों के ख़िलाफ़ संघर्ष में कुछ जीतें हासिल कर पायीं। इसी संघर्ष और कुरबानी की परंपरा 'अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस' पर मनायी जाती है। 'अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस' पूंजीवादी शोषण के ख़िलाफ़ और शोषण-दमन से मुक्त नये समाज के लिये संघर्ष, यानि समाजवाद के लिये संघर्ष के साथ नज़दीकी से जुड़ा रहा। समाजवादी व कम्युनिस्ट आन्दोलन ने सबसे पहले संघर्षरत महिलाओं की मांगों को अपने व्यापक कार्यक्रम में शामिल किया। जिन देशों में बीसवीं सदी में समाजवाद की स्थापना हुई, वहाँ महिलाओं को मुक्त कराने के सबसे सफल प्रयास किये गये थे।

अपराधीकरण और असुरक्षा का शिकार

'अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस' के अवसर पर विभिन्न कार्यक्रम

'प्रथम अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस' के मनाये जाने के लगभग सौ वर्ष बाद हमें नज़र आता है, कि एक तरफ, दुनिया की लगभग हर सरकार और सरमायदारों के कई अन्य संस्थान अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर ख़ूब धूम मचाते हैं। वे महिलाओं के लिये कुछ करने के बड़े-बड़े वादे करते हैं। दूसरी ओर, सारी दुनिया में लाखों महिलायें आज भी हर प्रकार के शोषण और दमन का शिकार बनती रहती हैं। वर्तमान उदारीकरण और भूमंडलीकरण के युग में पूंजी पहले से कहीं ज़्यादा आज़ादी के साथ, मज़दूरी, बाज़ार और संसाधनों की तलाश में, दुनिया के कोने-कोने में पहुँच रही है। विश्व में पूरे देश, इलाके और अर्थव्यवस्था के क्षेत्र विकास के नाम पर तबाह हो रहे हैं और करोड़ों मेहनतकशों की ज़िन्दगी बरबाद हो रही हैं। जहाँ हिन्दुस्तान में हज़ारों की संख्या में किसान कृषि क्षेत्र में तबाही की वजह से खुदकुशी कर रहे हैं, मिल-कारख़ाने बंद किये जा रहे हैं, लोगों को रोज़गार की तलाश में घर-वार छोड़कर शहरों को जाना पड़ता है, शहरों में उन्हें न तो नौकरी मिलती है न सुरक्षा और बेहद गंदी हालतों में जीना पड़ता है। महिलायें, जो दुगुने व तिगुने शोषण का सामना करती हैं, जिन्हें घर-परिवार में भी ख़ास ज़िम्मेदारियाँ निभानी पड़ती हैं, जो बढ़ते अपराधीकरण और असुरक्षा का शिकार बनती हैं, इन परिस्थितियों में महिलायें बहुत ही उत्पीड़ित हैं।

न्याय

विश्व में बीते सौ वर्षों में महिलाओं के अनुभवों से हम यह अहम सबक लेते हैं कि महिलाओं का उद्धार पूंजीवादी विकास से नहीं हो सकता। बल्कि, महिलाओं का और ज़्यादा शोषण करने के लिये, महिलाओं को दबाकर रखने के लिये, पूंजीवाद समाज के सबसे प्रतिक्रियावादी ताकतों और तत्वों के साथ गठजोड़ बना लेता है। जो भी महिलाओं की उन्नति और उद्धार चाहते हैं, उन्हें इस सच्चाई का सामना करना पड़ेगा। जो व्यवस्था मानव श्रम के शोषण के आधार पर पनपती है, वह महिलाओं को कभी न्याय नहीं दिला सकती।

महिला आन्दोलन

'अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस' मनाती हुई महिलाएँ

भारत में महिला आन्दोलन पर यह दबाव और भी बढ़ गया है क्योंकि कम्युनिस्ट आन्दोलन की सबसे बड़ी पार्टियाँ और उनके महिला संगठन भी इसी रास्ते पर चलते हैं। इन संगठनों ने एक नयी सामाजिक व्यवस्था के लिये संघर्ष तो छोड़ ही दिया है। महिला आन्दोलन को विचारधारा से न बंधे हुए होने के नाम पर बहुत ही तंग या तत्कालीन मुद्दों तक सीमित रखा गया है। महिला आन्दोलन पर कई लोगों ने ऐसा विचार थोप रखा है कि महिलाओं की चिंता के विषय इतने महिला-विशिष्ट हैं, कि महिलाओं के उद्धार के संघर्ष का सभी मेहनतकशों के उद्धार के संघर्ष से कोई संबंध ही नहीं है। इस तरह से यह नकारा जाता है कि निजी सम्पत्ति ही परिवार और समाज में महिलाओं के शोषण-दमन का आधार है। ऐसी ताकतों ने इस प्रकार से महिला आन्दोलन को राजनीतिक जागरुकता से दूर रखने का पूरा प्रयास किया है, ताकि महिला आन्दोलन पंगू रहे और महिलाओं के उद्धार के संघर्ष को अगुवाई देने के काबिल ही न रहे।
हिन्दुस्तान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी इस अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर देश की सभी संघर्षरत महिलाओं से आह्वान करती है कि आपका भविष्य समाजवाद में है, वर्तमान व्यवस्था के विकल्प के लिये संघर्ष में है। सिर्फ़ वही समाज जो परजीवियों व शोषकों के दबदबे से मुक्त है, वही महिलाओं को समानता, इज्ज़त, सुरक्षा व खुशहाली का जीवन दिला सकती है। पर ऐसी व्यवस्था की रचना तभी हो पायेगी जब महिलायें, जो समाज का आधा हिस्सा हैं, खुद एकजुट होकर इसके लिये संघर्ष में आगे आयेंगी। जैसे-जैसे महिलायें अपने उद्धार के लिये संघर्ष को और तेज़ करेंगी, अधिक से अधिक संख्या में इस संघर्ष में जुड़ने के लिये आगे आयेंगी, वैसे-वैसे वह दिन नज़दीक आता जायेगा जब अपने व अपने परिजनों के लिये बेहतर जीवन सुनिश्चित करने का महिलाओं का सपना साकार होगा।

भारत की प्रसिद्ध महिलाएँ
इंदिरा गाँधी प्रतिभा पाटिल मदर टेरेसा लता मंगेशकर एम. एस. सुब्बुलक्ष्मी किरण बेदी सरोजिनी नायडू अमृता प्रीतम मीरा कुमार सुचेता कृपलानी बछेन्द्री पाल कर्णम मल्लेश्वरी कल्पना चावला ऐश्वर्या राय सुष्मिता सेन मैरी कॉम साइना नेहवाल

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर कविता

(1) सुभद्रा कुमारी चौहान द्वारा[6]

मैंने हँसाना सीखा है
मैं नहीं जानती रोना।
बरसा करता पल-पल पर
मेरे जीवन में सोना॥

मैं अब तक जान न पाई
कैसी होती है पीड़ा।
हँस-हँस जीवन में मेरे
कैसे करती है क्रीडा॥

जग है असार, सुनती हूँ
मुझको सुख-सार दिखाता।
मेरी आँखों के आगे
सुख का सागर लहराता।

उत्साह-उमंग निरंतर
रहते मेरे जीवन में।
उल्लास विजय का हँसता
मेरे मतवाले मन में।

आशा आलोकित करती
मेरे जीवन को प्रतिक्षण।
हैं स्वर्ण-सूत्र से वलयित
मेरी असफलता के घन।

सुख भरे सुनहले बादल
रहते हैं मुझको घेरे।
विश्वास प्रेम साहस हैं
जीवन के साथी मेरे।[7]

(2) धीरेन्द्र सिंह द्वारा

आसमान सा है जिसका विस्तार
चॉद-सितारों का जो सजाए संसार
धरती जैसी है सहनशीलता जिसमें
है नारी हर जीवन का आधार

कभी फूल सा रंग-सुगंध लगे
कभी चींटी सा बोझ उठाए अपार
कभी स्नेह का लगे दरिया निर्झर
कभी बने किसी का परम आधार

चूल्हा-चौका रिश्तों-नातों की वेणी
हर घर की यह गरिमामय श्रृंगार
आज कहाँ से कहाँ पहुँच गई है
हर नैया की बन सशक्त पतवार

घर से दफ़्तर चूल्हे से चंदा तक
पुरुष संग अब दौड़े यह नार
महिला दिवस है शक्ति दिवस भी
पुरुष नज़रिया में हो और सुधार[8]

अपनों का चाहिए साथ

भारत की प्रसिद्ध बैडमिंटन खिलाड़ी साइना नेहवाल जब भी अपने माता-पिता के हाथ में मेडल व कप थामे तस्वीर फेसबुक पर शेयर करती हैं तो उन्हें ढेरों लाइक्स मिलते हैं। पी.वी. सिंधु को जब 'पद्मश्री' मिला तो पूरा परिवार आनंदित था। उनके पिता के मुताबिक़, “पी.वी. की कामयाबी उसकी अपनी मेहनत और लगन की बदौलत है। हमने तो सिर्फ़ उस पर भरोसा किया, उसका साथ दिया।“ आधी आबादी का बड़ा तबका ऐसे ही भरोसे और साथ की बाट जोह रहा है। कितनी ही प्रतिभावान बेटियाँ अपने सपनों को ऐसे ही साथ की बदौलत सच करना चाहती हैं। विंग कमाण्डर पूजा ठाकुर ने जब राजपथ पर बराक ओबामा को गार्ड ऑफ़ ऑनर देने वाली वुमन फ़ोर्स का नेतृत्व किया तो इस ऐतिहासिक उपलब्धि पर हर किसी को गर्व हुआ। पूजा ठाकुर कहती हैं कि- “उस ख़ुशी का कोई मोल नहीं, जो देश के लिए योगदान देने के बाद प्राप्त हुआ।... पर यह एहसास नामुमकिन होता, यदि परिवार का साथ नहीं मिलता। अन्य सामान्य लड़कियों की तरह अपनों का साथ पाकर मेरा भी हौसला बढ़ता गया, उत्साह चौगुना होता गया।“

लगातार आर्थिक प्रगति के बावजूद भारतीय महिलाओं को अभी भी स्वास्थ्य, शिक्षा और कार्यक्षेत्र में असमानता का सामना करना पड़ रहा है। जेनेवा स्थित वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम के वार्षिक लैंगिक समानता इण्डेक्स में भारत अब 114वें स्थान पर खिसक गया है।

सबसे ज़्यादा तनावग्रस्त हैं भारतीय महिलाएँ

दुनिया के प्रमुख विकसित एवं विकासशील देशों में आज की भागदौड़ और आपाधापी से होने वाले तनाव के बारे में किए गए भारतीय महिलाएं के सर्वेक्षण के अनुसार भारत की सर्वाधिक महिलाएँ तनाव में रहती हैं। दुनिया भर में महिलाएं खुद को बेहद तनाव और दबाव में महसूस करती हैं। यह समस्या आर्थिक तौर पर उभरते हुए देशों में ज़्यादा दिख रही है। एक सर्वे में भारतीय महिलाओं ने खुद को सबसे ज़्यादा तनाव में बताया। 21 विकसित और उभरते हुए देशों में कराए गए नीलसन सर्वे में सामने आया कि तेज़ीसे उभरते हुए देशों में महिलाएँ बेहद दबाव में हैं लेकिन उन्हें आर्थिक स्थिरता और अपनी बेटियों के लिए शिक्षा के बेहतर अवसर मिलने की उम्मीद भी दूसरों के मुक़ाबले कहीं ज़्यादा है। सर्वे में 87 प्रतिशत भारतीय महिलाओं ने कहा कि ज़्यादातर समय वे तनाव में रहती हैं और 82 फीसदी का कहना है कि उनके पास आराम करने के लिए वक़्त नहीं होता।[9]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस (हिन्दी) वेबदुनिया। अभिगमन तिथि: 8 नवम्बर, 2011
  2. 2.0 2.1 महिला दिवस (हिन्दी) (एच टी एम) वेबदुनिया। अभिगमन तिथि: 8 नवम्बर, 2011
  3. विश्व महिला दिवस (हिन्दी) (एच टी एम एल) लाइव हिंदुस्तान डॉट कॉम। अभिगमन तिथि: 8 नवम्बर, 2011
  4. 8 मार्च को ही क्यों मनाया जाता है अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस (हिंदी) bbc.com। अभिगमन तिथि: 8 मार्च, 2018।
  5. महिला दिवस (हिन्दी) जागरण जंक्शन। अभिगमन तिथि: 8 नवम्बर, 2011
  6. अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर सुभद्रा कुमारी चौहान की कविता (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 09 मार्च, 2013।
  7. अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस (हिन्दी) (एच टी एम एल) हिन्दी युग्म। अभिगमन तिथि: 8 नवम्बर, 2011
  8. अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस (हिन्दी) (एच टी एम एल) वेबदुनिया। अभिगमन तिथि: 8 नवम्बर, 2011
  9. भारतीय महिलाएं दुनिया में सबसे ज़्यादा तनाव का शिकार हैं (हिन्दी) शोध व सर्वे। अभिगमन तिथि: 27 फ़रवरी, 2015।

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