अंतरराष्ट्रीय दास प्रथा उन्‍मूलन दिवस

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अंतरराष्ट्रीय दास प्रथा उन्‍मूलन दिवस
दास प्रथा
विवरण 'अंतरराष्ट्रीय दास प्रथा उन्‍मूलन दिवस' प्रत्येक वर्ष 2 दिसम्बर को मनाया जाता है। पूरी दुनिया में आज भी दास प्रथा जैसी अमानवीय प्रथा जारी है और जानवरों की तरह इंसानों की ख़रीद-फ़रोख्त की जाती है।
तिथि 2 दिसम्बर
उद्देश्य संयुक्त राष्ट्र महासभा ने मानव तस्करी और वेश्यावृत्ति को रोकने के लिए एक प्रस्ताव पारित किया था, जिसके बाद से हर साल यह दिवस मनाया जाता है।
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अंतरराष्ट्रीय दास प्रथा उन्‍मूलन दिवस प्रतिवर्ष 2 दिसम्बर को मनाया जाता है। इस दिवस को मनाये जाने का मुख्य उद्देश्य यही है कि "सम्पूर्ण विश्व से दास प्रथा को समाप्त करना है।" दास प्रथा विश्व के अधिकांश देशों में प्राचीन समय से ही व्याप्त रही है। इस प्रथा का उन्मूलन करने के लिए दुनिया भर में भले ही कितने भी प्रयास किए जा रहे हों, लेकिन यह प्रथा किसी-न-किसी रूप में आज भी जीवित है।

संयुक्त राष्ट्र की पहल

संयुक्त राष्ट्र की ओर से 2 दिसंबर को 'अंतरराष्ट्रीय दास प्रथा उन्मूलन दिवस' के तौर पर मनाने की घोषणा की गई है। संयुक्त राष्ट्र महासभा ने मानव तस्करी और वेश्यावृत्ति को रोकने के लिए एक प्रस्ताव पारित किया था, जिसके बाद से हर साल 2 दिसंबर को यह दिवस मनाया जाता है।[1]

बेरोज़गारी का प्रभाव

आज बेरोज़गारी का सामना कर रहे देशों के नागरिकों के दूसरे देशों में घरेलू नौकरों और कामगारों के तौर पर काम करने के रूप में दास प्रथा अब भी कायम है। भारत में भी कई एजेंसियां फ़र्जी दस्तावेजों के आधार पर लोगों को काम के बहाने दूसरे देशों में भेजने के पेशे में धड़ल्ले से लिप्त हैं, जहां इन लोगों को बहुत-सी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। इसके पीछे क़ानून की कमी जिम्मेदार है। भारत से लोगों को फ़र्जी दस्तावेजों से विदेश भेजने के मामले बढ़ते जा रहे हैं। ऐसे मामलों का शिकार होने में महिलाओं और बच्चों की संख्या भी काफ़ी है। हमारे देश में ऐसा कोई क़ानून नहीं है, जिसके तहत देश से बाहर जाने वाले हर नागरिक की सुरक्षा का प्रावधान हो। क़ानून के अभाव में हमारे देश से जो भी नागरिक बाहर जाता है, उसे उसके हाल पर छोड़ दिया जाता है। उसका वहां क्या हाल है, कोई देखने वाला नहीं है। ऐसे मामलों में अंतरराष्ट्रीय स्तर के मानकों के अनुरूप क़ानून होने चाहिए, क्योंकि आतंकवाद के दौर में यह मामला देश की सुरक्षा के लिए भी खतरा हो सकता है। फर्जी पासपोर्ट से लोगों को बाहर भेजने वालों को भी सिर्फ दो साल की सज़ा का प्रावधान है, इसलिए पासपोर्ट अधिनियम के तहत निर्धारित नियमों का भी धड़ल्ले से उल्लंघन होता है। कड़े क़ानून के अभाव में विदेशों में दासों के तौर पर काम कर रहे भारतीयों की संख्या बहुत ज्यादा है।

भारत में समय-समय पर बेरोज़गारी लोगों को फ़र्जी दस्तावेजों के माध्यम से नौकरी के बहाने विदेशों में भेजने और वहां उनके शोषण के मामले सामने आते हैं। कुछ साल पहले केरल की एक महिला को काम के बहाने सऊदी अरब भेजने और वहां उसे एक शेख के यहां घरेलू नौकरानी बनाने का मामला सामने आया था। महिला के मालिक ने उस पर अत्याचार करते हुए उसके शरीर को कीलों से छेद दिया था, जिसके बाद किसी तरह महिला ने अपनी जान बचाई। इस मामले ने एक बार फिर नौकरी के बहाने विदेशों में जाने और वहां दासों की तरह रहने वाले भारतीयों का मामला सुर्खियों में ला दिया।[1]

मेंगलूर में जुलाई, 2010 में हुए विमान हादसे में मारे गए कई लोग भी फ़र्जी पासपोर्ट से खाड़ी देशों में गए थे। हादसे के बाद इस बात का खुलासा हुआ था कि दक्षिण भारत की कई एजेंसियां लोगों को नौकरी के बहाने विदेश भेजकर उन्हें दूसरे धंधों में लिप्त करवा रही है। फ़र्जी पासपोर्ट से लोगों को बाहर भेजने वालों के ख़िलाफ़ कई बार शिकायत की, लेकिन इस धंधे पर लगाम नहीं लग पा रही। बेरोज़गारी के कारण महिलाओं को भी खाड़ी देशों में भेज दिया जाता है, लेकिन वहां उनकी जो हालत होती है, वह कल्पना से भी परे है। कई बार भारतीय नागरिक विदेशों में मर जाते हैं, लेकिन सही पहचान न होने से उनके बारे में कुछ पता नहीं चलता। सरकार से अपील की गई है कि इस बारे में लोगों को जागरुक करने के अलावा नियम तोड़ने वालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की भी ज़रूरत है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 दास प्रथा आज भी कायम (हिंदी) samaylive.com। अभिगमन तिथि: 09 नवम्बर, 2016।

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