श्रेणी:सुन्दरकाण्ड
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- बचन सुनत कपि मन मुसुकाना
- बचनु न आव नयन भरे बारी
- बदन पइठि पुनि बाहेर आवा
- बन बाग उपबन बाटिका
- बरु भल बास नरक कर ताता
- बहु प्रकार मारन कपि लागे
- बहु बिधि खल सीतहि समुझावा
- बहुरि राम छबिधाम बिलोकी
- बाजहिं ढोल देहिं सब तारी
- बातन्ह मनहि रिझाइ सठ
- बार बार नाएसि पद सीसा
- बार बार पद लागउँ
- बार बार प्रभु चहइ उठावा
- बिकल होसि तैं कपि कें मारे
- बिनती करउँ जोरि कर रावन
- बिनय न मानत जलधि
- बिप्र रूप धरि बचन सुनाए
- बिरह अगिनि तनु तूल समीरा
- बिहसि दसानन पूँछी बाता
- बुध पुरान श्रुति संमत बानी
- बैठेउ सभाँ खबरि असि पाई
- ब्रह्म अस्त्र तेहि साँधा
- ब्रह्मबान कपि कहुँ तेहिं मारा
म
- मंदिर मंदिर प्रति करि सोधा
- मकर उरग झष गन अकुलाने
- मन संतोष सुनत कपि बानी
- मम पुर बसि तपसिन्ह पर प्रीती
- ममता तरुन तमी अँधिआरी
- ममता रत सन ग्यान कहानी
- मर्दि गर्द मिलवहिं दससीसा
- मसक समान रूप कपि धरी
- मातु कुसल प्रभु अनुज समेता
- मातु मोहि दीजे कछु चीन्हा
- मारे निसिचर केहिं अपराधा
- माल्यवंत अति सचिव सयाना
- मास दिवस महुँ कहा न माना
- मिले सकल अति भए सुखारी
- मुनि पुलस्ति निज सिष्य
- मृत्यु निकट आई खल तोही
- मैं निसिचर अति अधम सुभाऊ
- मैं पुनि उर धरि प्रभु प्रभुताई
- मोरें हृदय परम संदेहा
- मोहमूल बहु सूल प्रद
र
- रघुपति कर संदेसु अब
- रहसि जोरि कर पति पग लागी
- रहा न नगर बसन घृत तेला
- राम कपिन्ह जब आवत देखा
- राम काजु सबु करिहहु
- राम कृपा बल पाइ कपिंदा
- राम चरन पंकज उर धरहू
- राम तेज बल बुधि बिपुलाई
- राम दूत मैं मातु जानकी
- राम नाम बिनु गिरा न सोहा
- राम बान अहि गन
- राम बिमुख संपति प्रभुताई
- राम राम तेहिं सुमिरन कीन्हा
- रामचंद्र गुन बरनैं लागा
- रामचरितमानस पंचम सोपान (सुंदरकाण्ड)
- रामचरितमानस सुंदरकाण्ड
- रामानुज दीन्हीं यह पाती
- रामायुध अंकित गृह
- रामु सत्यसंकल्प प्रभु
- रावन क्रोध अनल निज
- रावन जबहिं बिभीषन त्यागा
- रावन दूत हमहि सुनि काना
- रिपु उतकरष कहत सठ दोऊ
- रिषि अगस्ति कीं साप भवानी
स
- सकल चरित तिन्ह देखे
- सकल सुमंगल दायक
- सखा कही तुम्ह नीति उपाई
- सगुन उपासक परहित
- सघ कंध आयत उर सोहा
- सचिव बैद गुर तीनि जौं
- सचिव संग लै नभ पथ गयऊ
- सचिव सभीत बिभीषन जाकें
- सठ सूनें हरि आनेहि मोही
- सपनें बानर लंका जारी
- सब कै ममता ताग बटोरी
- सभय सिंधु गहि पद प्रभु केरे
- समुझत जासु दूत कइ करनी
- सयन किएँ देखा कपि तेही
- सरन गएँ प्रभु ताहु न त्यागा
- सरनागत कहुँ जे तजहिं
- सहज बानि सेवक सुखदायक
- सहज भीरु कर बचन दृढ़ाई
- सहज सूर कपि भालु सब
- सहि सक न भार उदार
- साखामग कै बड़ि मनुसाई
- सादर तेहि आगें करि बानर
- साधु अवग्या कर फलु ऐसा
- सावधान मन करि पुनि संकर
- सिंधु तीर एक भूधर सुंदर
- सीता कै अति बिपति बिसाला
- सीता तैं मम कृत अपमाना
- सीता मन भरोस तब भयऊ
- सुनत कृपानिधि मन अति भाए
- सुनत बचन पद गहि समुझाएसि
- सुनत बचन पुनि मारन धावा
- सुनत बिनीत बचन अति
- सुनत बिभीषनु प्रभु कै बानी
- सुनत बिहसि बोला दसकंधर
- सुनत बिहसि बोले रघुबीरा
- सुनत सभय मन मुख मुसुकाई
- सुनहु देव सचराचर स्वामी
- सुनहु पवनसुत रहनि हमारी
- सुनहु मातु मोहि अतिसय भूखा
- सुनहु सखा निज कहउँ सुभाऊ
- सुनि कपि बचन बहुत खिसिआना
- सुनि प्रभु बचन कहहिं कपि बृंदा
- सुनि प्रभु बचन बिलोकि
- सुनि प्रभु बचन हरष हनुमाना
- सुनि रावन पठए भट नाना
- सुनि लछिमन सब निकट बोलाए
- सुनि सीता दुख प्रभु सुख अयना
- सुनि सुत बध लंकेस रिसाना
- सुनु कपि तोहि समान उपकारी
- सुनु कपीस लंकापति बीरा
- सुनु दसकंठ कहउँ पन रोपी
- सुनु दसमुख खद्योत प्रकासा
- सुनु माता साखामृग
- सुनु लंकेस सकल गुन तोरें
- सुनु सुत तोहि उरिन मैं नाहीं
- सुमति कुमति सब कें उर रहहीं
- सो मनु सदा रहत तोहि पाहीं
- सो सब तव प्रताप रघुराई
- सोइ बिजई बिनई गुन सागर
- सोइ रावन कहुँ बनी सहाई
- स्याम सरोज दाम सम सुंदर