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ठंडे पानी से नहलाती
 
ठंडे पानी से नहलाती
 
ठंडा चन्दन इन्हें लगाती
 
ठंडा चन्दन इन्हें लगाती
 
इनका भोग हमें दे जाती
 
इनका भोग हमें दे जाती
 
तब भी कभी नहीं बोले हैं
 
तब भी कभी नहीं बोले हैं
माँ के ठाकुर जी भोले हैं।
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माँ के ठाकुर जी भोले हैं।<ref>{{cite web |url=http://pustak.org/home.php?bookid=6673# |title=यामा|accessmonthday=31 मार्च |accessyear=2013 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=भारतीय साहित्य संग्रह |language= हिंदी}} </ref>
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इसी प्रकार तारों को देखकर मैंने तुकबन्दी की—
 
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आओ प्यारे तारे आओ
 
तुम्हें झुलाऊँगी झूले में
 
तुम्हें सुलाऊँगी फूलों में
 
तुम जुगनू से उड़कर आओ
 
मेरे आँगन को चमकाओ।
 
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07:37, 7 नवम्बर 2017 के समय का अवतरण

यामा -महादेवी वर्मा
यामा का आवरण पृष्ठ
कवि महादेवी वर्मा
मूल शीर्षक यामा
प्रकाशक लोकभारती प्रकाशन
प्रकाशन तिथि 1940 (पहला संस्करण)
देश भारत
पृष्ठ: 105
भाषा हिंदी
प्रकार काव्य संग्रह
मुखपृष्ठ रचना सजिल्द

यामा एक कविता संग्रह है जिसकी रचायिता महादेवी वर्मा हैं। इसमें उनके चार कविता संग्रह नीहार, नीरजा, रश्मि और सांध्यगीत संकलित किए गए हैं।

कवियित्री कथन

बाबा के उर्दू-फारसी के अबूझ घटाटोप में, पिता के अंग्रेज़ी-ज्ञान के अबूझ कोहरे में मैंने केवल माँ की प्रभाती और लोरी को ही समझा और उसी में काव्य की प्रेरणा को पाया। फर्रूखाबाद के सर्वथा विपरीत संस्कृति वाले गृह में, जबलपुर में रामचरितमानस की एक प्रति और राम जानकी-लक्ष्मण की छोटी-छोटी मूर्तियों-से सजा चाँदी का छोटा सिंहासन लेकर माँ जब पालकी से उतरीं तब उनकी अवस्था 13 वर्ष और पिताजी की 17 वर्ष से अधिक नहीं थी। यह माँ का द्विरागमन था, विवाह तो जब वे दोनों 8 और 12 के थे, तभी हो चुका था। उस परिवार ने कन्याओं को जन्म लेते ही इतनी बार लौटाया था कि फिर कई पीढ़ियों तक किसी कन्या को उस परिवार में जन्म लेने का साहस नहीं हुआ। पर मेरे जन्म के लिए तो बाबा और दादी ने कुलदेवी की मनौती मान रखी थी। अतः मुझे लौटाने का तो प्रश्न ही नहीं उठा वरन् मुझे योग्य बनाने के ऐसे सम्मिलित प्रयत्न आरंभ हुए कि हम इन्दौर न जाते तो मुझे बचपन में ही वृद्धवस्था का सुख मिल जाता। विद्यारंभ के उपरांत पंडित जी की कृपा से मेरा हिन्दी-ज्ञान अन्य विद्यार्थियों की क्षमता से अधिक ही हो गया था। शीतकाल में ठंडे पानी से नहलाकर माँ अपने साथ पूजा में बैठी लेती थीं जिससे स्वभावतः मुझे बहुत कष्ट होता था रामा से यह सुनकर कि सीधे भोले बच्चे शोरगुल नहीं मचाते, मैंने तुकबन्दी की—

ठंडे पानी से नहलाती
ठंडा चन्दन इन्हें लगाती
इनका भोग हमें दे जाती
तब भी कभी नहीं बोले हैं
माँ के ठाकुर जी भोले हैं।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. यामा (हिंदी) भारतीय साहित्य संग्रह। अभिगमन तिथि: 31 मार्च, 2013।

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख