मई दिवस

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मई दिवस या 'मजदूर दिवस' या 'श्रमिक दिवस' 1 मई को सारे विश्व में मनाया जाता है। 'मई दिवस' के विषय में अधिकांश तथ्य उजागर हो चुके हैं, फिर भी कुछ ऐसे पहलू हैं, जो अभी तक अज्ञात है। कुछ भ्रांतियों का स्पष्टीकरण और इस विषय पर भारत तथा विश्व के बारे में कम ज्ञात तथ्यों को उजागर करने की आवश्यकता है। यह उल्लेखनीय है कि 'श्रमिक दिवस' का उदय 'मई दिवस' के रूप में नहीं हुआ था। वास्तव में अमरीका में श्रमिक दिवस मनाने की पुरानी परम्परा रही है, जो बहुत पहले से ही चली आ रही थी। मई दिवस भारत में 1923 ई. में पहली बार मनाया गया था।

इतिहास

अमरीका में 'मजदूर आंदोलन' यूरोप व अमरीका में आए औद्योगिक सैलाब का ही एक हिस्सा था। इसके फलस्वरूप जगह-जगह आंदोलन हो रहे थे। इनका संबंध 1770 के दशक की अमरीका की आज़ादी की लड़ाई तथा 1860 ई. का गृहयुद्ध भी था। इंग्लैंड के मजदूर संगठन विश्व में सबसे पहले अस्तित्व में आए थे। यह समय 18वीं सदी का मध्य काल था। मजदूर एवं ट्रेंड यूनियन संगठन 19वीं सदी के अंत तक बहुत मजबूत हो गए थे, क्योंकि यूरोप के दूसरे देशों में भी इस प्रकार के संगठन अस्तित्व में आने शुरू हो गए थे। अमरीका में भी मजदूर संगठन बन रहे थे। वहाँ मजदूरों के आरम्भिक संगठन 18वीं सदी के अंत में और 19वीं सदी के आरम्भ में बनने शुरू हुए। मिसाल के तौर पर फ़िडेलफ़िया के शूमेकर्स[1] के संगठन, बाल्टीमोर के टेलर्स[2] के संगठन तथा न्यूयार्क के प्रिन्टर्स के संगठन 1792 में बन चुके थे। फ़र्नीचर बनाने वालों में 1796 में और 'शिपराइट्स' में 1803 में संगठन बने। हड़ताल तोड़ने वालों के ख़िलाफ़ पूरे अमरीका में संघर्ष चला, जो उस देश में संगठित मजदूरों का अपनी तरह एक अलग ही आंदोलन था। हड़ताल तोड़ना घोर अपराध माना जाता था और हड़ताल तोड़ने वालों को तत्काल यूनियन से निकाल दिया जाता था।

कार्य समय घटाने का माँग

अमरीका में 18वें दशक में ट्रेंड यूनियनों का शीघ्र ही विस्तार होता गया। विशिष्ट रूप से 1833 और 1837 के समय। इस दौरान मजदूरों के जो संगठन बने, उनमें शामिल थे- बुनकर, बुक वाइन्डर, दर्जी, जूते बनाने वाले लोग, फ़ैक्ट्री आदि में काम करने वाले पुरुष तथा महिला मजदूरों के संगठन। 1836 में '13 सिटी इंटर ट्रेंड यूनियन ऐसासिएशन' मोजूद थीं, जिसमें 'जनरल ट्रेंड यूनियन ऑफ़ न्यूयार्क' (1833) भी शामिल थी, जो अति सक्रिय थी। इसके पास स्थाई स्ट्राइक फ़ंड भी था, तथा एक दैनिक अख़बार भी निकाला जाता था। राष्ट्रव्यापी संगठन बनाने की कोशिश भी की गयी यानी 'नेशनल ट्रेंड्स यूनियन', जो 1834 में बनायी गयी थी। दैनिक काम के घंटे घटाने के लिए किया गया संघर्ष अति आरम्भिक तथा प्रभावशाली संघर्षों में एक था, जिसमें अमरीकी मजदूर 'तहरीक' का योगदान था। 'न्यू इंग्लैंड के वर्किंग मेन्स ऐसासिएशन' ने सन 1832 में काम के घंटे घटाकर 10 घंटे प्रतिदिन के संघर्ष की शुरुआत की।

श्रमिकों की सफलता

1835 तक अमरीकी मजदूरों ने काम के 10 घंटे प्रतिदिन का अधिकार देश के कुछ हिस्सों में प्राप्त कर लिया था। उस वर्ष मजदूर यूनियनों की एक आम हड़ताल फ़िलाडेलफ़िया में हुई। शहर के प्रशासकों को मजबूरन इस मांग को मानना पड़ा। 10 घंटे काम का पहला क़ानून 1847 में न्यायपालिका द्वारा पास करवाकर हेम्पशायर में लागू किया गया। इसी प्रकार के क़ानून मेन तथा पेन्सिल्वानिया राज्यों द्वारा 1848 में पास किए गए। 1860 के दशक के शुरूआत तक 10 घंटे काम का दिन पूरे अमरीका में लागू हो गया।

प्रथम मजदूर राजनैतिक पार्टी सन 1828 ई. में फ़िलाडेल्फ़िया, अमरीका में बनी थी। इसके बाद ही 6 वर्षों में 60 से अधिक शहरों में मजदूर राजनैतिक पार्टियों का गठन हुआ। इनकी मांगों में राजनैतिक सामाजिक मुद्दे थे, जैसे-

  1. 10 घंटे का कार्य दिवस
  2. बच्चों की शिक्षा
  3. सेना में अनिवार्य सेवा की समाप्ति
  4. कर्जदारों के लिए सज़ा की समाप्ति
  5. मजदूरी की अदायगी मुद्रा में
  6. आयकर का प्रावधान इत्यादि।


मजदूर पार्टियों ने नगर पालिकाओं तथा विधान सभाओं इत्यादि में चुनाव भी लड़े। सन 1829 में 20 मजदूर प्रत्याशी फ़ेडरेलिस्टों तथा डेमोक्रेट्स की मदद से फ़िलाडेलफ़िया में चुनाव जीत गए। 10 घंटे कार्य दिवस के संघर्ष की बदौलत न्यूयार्क में वर्किंग मैन्स पार्टी बनी। 1829 के विधानसभा चुनाव में इस पार्टी कोे 28 प्रतिशत वोट मिले तथा इसके प्रत्याशियों को विजय हासिल हुई।अमरीका में फैक्ट्री मजदूरों की पहली रेकार्ड में शामिल हड़ताल सन् 1828 में हुई। कारण यह था कि न्यू जर्सी के पेटरसन में मिल मालिकों ने भोजन अवकाश का समय 12 बजे के बजाय 1 बजे करने की कोशिश की। मजदूर अधिकतर बच्चे थे। उन्हें डर था कि मालिकों का अगला कदम भोजन अवकाश समाप्त करने का हो सकता है। हड़ताल तुड़वाने के लिए सेना को बुलाया गया।

18 मई 1882 में सेन्ट्रल लेबर यूनियन ऑफ न्यूयार्क की एक बैठक में पीटर मैग्वार ने एक प्रस्ताव रखा जिसमें एक दिन मजदूर उत्सव मनाने की बात थी। उसने इसके लिए सितम्बर के पहले सोमवार का दिन सुझाया। वह साल का वह समय था जो जुलाई और ‘धन्यवाद देने वाला दिन’ के बीच में पड़ता था।विभिन्न व्यवसायों के 30,000 से अधिक मजदूरों ने 5 दिसम्बर को न्यूयार्क की सड़कों पर परेड निकाली तथा नारा दिया: “8 घंटे काम के दिए, 8 घंटे आराम के लिए तथा 8 घंटे हमारी मर्जी पर।“ इसे 1883 में दोहराया गया। 1884 में न्यूयार्क सेंट्रल लेबर यूनियन ने मजदूर दिवस परेड के लिए सितम्बर माह के पहले सोमवार का दिन तय किया। यह सितम्बर की पहली तारीख को पड़ रहा था। दूसरे शहरों में भी इस दिन को अंतर्राष्ट्रीय त्योहार के रूप में कई शहरों में मार्च निकाले गए। मजदूरों ने लाल झंडे, बैनरों तथा बाजूबंदों का प्रदर्शन, मीटिंगों, प्रदर्शनों तथा दूसरे मौकों पर किया।सन् 1884 में एफओटीएलयू ने हर वर्ष सितम्बर के पहले सोमवार को मजदूरों के राष्ट्रीय अवकाश मनाने का निर्णया लिया। पूरे देश में इसका आह्वान किया गया। 7 सितम्बर 1883 को पहली बार राष्ट्रीय पैमाने पर सितम्बर के पहले सोमवार को मजदूर अवकाश दिवस के रूप में मनाया गया। इसके साथ ही अधिक से अधिक राज्यों ने मजदूर दिवस के दिन छुट्टी मनाना शुरू कर दिया।

इन यूनियनों तथा उनके राष्ट्रों की संस्थाओं ने अपने वर्ग की एकता, खासकर अपने 8 घंटे प्रतिदिन काम की मांग को प्रदर्शित करने हेतु पहली मई को मजदूर दिवस मनाने का फैसला किया। यह 1 मई 1886 से मानाया जायेग, उन्होंने फैसला किया। कुछ राज्यों में पहले से ही आठ घंटे काम का चलन था परन्तु इसे कानूनी मान्यता नहीं थी; इस मांग को लेकर पूरे अमरीका में 1 मई 1886 को हड़ताल हुई।मई 1886 से कुछ वर्षों पहले देशव्यापी हड़ताल तथा संघर्ष के दिन के बारे में सोचा गया। उदाहरण के तौर पर सितम्बर में राष्ट्रव्यापी संघर्ष राष्ट्रीय टेªड यूनियनों द्वारा 1885 और 1886 में तय किए गए।वास्तव में मजदूर दिवस तथा कार्य दिवस संबंधी आंदोलन राष्ट्रीय यूनियनों द्वारा 1885 और 1886 में सितम्बर के लिए सोचा गया था, लेकिन बहुत से कारणों की वजह से, जिसमें व्यापारिक चक्र भी शामिल था, उन्हें मई के लिए परिवर्तित कर दिया। इस समय तक काम के घंटे 10 प्रतिदिन का संघर्ष बदल कर 8 घंटे प्रतिदिन का बन गया।

अब हम भारत में मई दिवस मनाए जाने के कुछ प्रारंभिक उदाहरणों का संक्षेप में वर्णन करेंगे। जहां तक मालूम है, मई दिवस भारत में 1923 में पहली बार मनाया गया था। सिंगारवेलु चेट्टियार देश के आरम्भ के कम्युनिस्टों में से एक तथा प्रभावशाली टेªड यूनियन और मजदूर तहरीक के नेता थे। उन्होंने अप्रैल 1923 में भारत में मई दिवस मनाने का सुझाव दिया क्योंकि दुनिया भर के मजदूर इसे मनाते थे। उन्होंने फिर कहा कि सारे देश में इस मौके पर मीटिंगे होनी चाहिए। मद्रास में मई दिवस मनाने की अपील की गयी। इस अवसर पर वहां दो जनसभाएं हुई तथा दो जुलूस निकाले गए, पहला उत्तरी मद्रास के मजदूरों का हाईकोर्ट ‘बीच’ पर तथा दूसरा दक्षिण मद्रास के ट्रिप्लिकेन ‘बीच’ पर। सिंगारवेलू ने इस दिन मजदूर किसान पार्टी की स्थापना की घोषणा की तथा उसके घोषणा पत्र पर प्रकाश डाला। कई कांग्रेसी नेताओं ने भी मीटिंगों में भाग लिया।सिंगारवेलू ने हाईकार्ट ‘बीच’ की बैठक की अध्यक्षता की। उनकी दूसरी बैठक की अध्यक्षता एस. कृष्णास्वामी शर्मा ने की तथा पार्टी का घोषणा पत्र पीएस वेलायुथम द्वारा पढ़ा गया।बैठकों की रिपोर्ट कई दैनिक समाचार पत्रों में छपी। मास्को से छपने वाले वैनगार्ड ने इसे भारत में पहला मई दिवस बताया। (15 जून 1923)फिर दुबारा 1927 सिंगारवेलु की पहल पर मई दिवस मनाया गया, लेकिन इस बार उनके घर मद्रास में। इस मौके पर उन्होंने मजदूरों तथा अन्य लोगों को दोपहर की दावत दी। शाम को एक विशाल जूलुस निकाला गया जिसने बाद में एक जनसभा का रूप ले लिया, इस बैठक की अध्यक्षता डा. पी. वारादराजुलू ने की। यह कहा जाता है तत्काल लाल झंडा उपलब्ध न होने के कारण सिंगारवेलु ने अपनी लड़की की लाल साड़ी का झंडा बनाकर अपने घर पर लहराया।इस प्रकार हम मजदूर वर्ग के संघर्ष और मई दिवस तथा खासकर लाल झंडे के इतिहास के कई दिलचस्प तथा ज्ञानवर्धन प्रकरण पाते हैं।


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शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. जूता बनाने वालों
  2. दर्जी

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