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==भारतीय प्रक्षेपण यानों द्वारा उपग्रह प्रक्षेपण==
 
==भारतीय प्रक्षेपण यानों द्वारा उपग्रह प्रक्षेपण==
 
{| class="wikitable" cellpadding="5"
 
|-
 
!क्रम
 
!प्रक्षेपक यान
 
!उपग्रह
 
!प्रक्षेपण तिथि
 
!परिणाम
 
|-
 
|1
 
|एसएलवी-3
 
|रोहिणी
 
|10अगस्त, 1979
 
|आंशिक सफल
 
|-
 
|2
 
|एसएलवी-3
 
|रोहिणी
 
|18जुलाई, 1980
 
|सफल
 
|-
 
|3
 
|एसएलवी-3
 
|रोहिणी
 
|31मई, 1981
 
|असफल
 
|-
 
|4
 
||एसएलवी-3
 
|रोहिणी
 
|17अप्रॅल, 1983
 
|सफल
 
|-
 
|5
 
|एएसएलवी-डी1
 
|स्त्रोस-1
 
|24मार्च, 1987
 
|असफल
 
|-
 
|6
 
|एएसएलवी-डी2
 
|स्त्रोस-2
 
|13जुलाई, 1988
 
|असफल
 
|-
 
|7
 
|एएसएलवी-डी3
 
|स्त्रोस-3
 
|20मई, 1992
 
|सफल
 
|-
 
|8
 
|पीएसएलवी-डी1
 
|आईआरएस-1ई॰
 
|20सितम्बर, 1993
 
|असफल
 
|-
 
|9
 
|एएसएलवी-डी4
 
|स्त्रोस-4
 
|04अप्रॅल, 1994
 
|सफल
 
|-
 
|10
 
|पीएसएलवी-डी2
 
|आईआरएस-पी2
 
|15अक्टूबर, 1994
 
|सफल
 
|-
 
|11
 
|पीएसएलवी-डी3
 
|आईआरएस-पी3
 
|21मार्च, 1996
 
|सफल
 
|-
 
|12
 
|पीएसएलवी-सी1
 
|आईआरएसडी-1डी
 
|29सितम्बर, 1997
 
|सफल
 
|-
 
|13
 
|पीएसएलवी-सी2
 
|आईआरएस-पी4, किटसैट(द॰कोरिया) व टपसैट(जर्मनी)
 
|26मई, 1999
 
|सफल
 
|-
 
|14
 
|जीएसएलवी-डी1
 
|जी सैट
 
|18मई, 2001
 
|सफल
 
|-
 
|15
 
|पीएसएलवी-सी3
 
|टीईएस(भारत), प्रोबा(बेल्जियम) व बर्ड(जर्मनी)
 
|20अक्टूबर, 2001
 
|सफल
 
|-
 
|16
 
|पीएसएलवी-सी4
 
|मैटसैट (कल्पना-1)
 
|12सितम्बर2002
 
|सफल
 
|-
 
|17
 
|पीएसएलवी-डी2
 
|जी सैट-2
 
|08मई, 2003
 
|सफल
 
|-
 
|18
 
|पीएसएलवी-सी5
 
|आईआरएस-पी6
 
|17अक्टूबर, 2003
 
|सफल
 
|-
 
|19
 
|जीएसएलवीएफ-1
 
|एडूसैट
 
|20सितम्बर, 2004
 
|सफल
 
|-
 
|20
 
|पीएसएलवी-सी6
 
|कार्टोसैट व हैमसैट
 
|05मई, 2005
 
|सफल
 
|-
 
|21
 
|जीएसएलवी-4सी
 
|इन्सैट-4सी
 
|10जुलाई, 2006
 
|असफल
 
|-
 
|22
 
|पीएसएलवी-एफ2
 
|एसआरई-1(भारत), कार्टोसैट-2(भारत), लापान ट्यूबसैट(इन्डोनेशिया), पेहुएन सैट-1(अर्जेंटीना)
 
|10जनवरी, 2007
 
|सफल
 
|-
 
|23
 
|पीएसएलवी-सी8
 
|एजाइल(इटली)
 
|23अप्रॅल, 2007
 
|सफल
 
|-
 
|24
 
|पीएसएलवी-सी10
 
|टेकसार(इस्त्रायल)
 
|21जनवरी, 2008
 
|सफल
 
|-
 
|25
 
|पीएसएलवी-सी9
 
|कार्टोसैट-2ए, IMS-1 व8 अन्य विदेशी नैनों उपग्रह
 
|28अप्रॅल, 2008
 
|सफल
 
|-
 
|26
 
|पीएसएलवी-सी11
 
|चन्द्रयान-1
 
|22अक्टूबर, 2008
 
|सफल
 
|-
 
|27
 
|पीएसएलवी-सी12
 
|रीसैट-2 व अनुसैट
 
|20अप्रॅल, 2009
 
|सफल
 
|-
 
|28
 
|पीएसएलवी-सी14
 
|ओशसैट-2
 
|23सितम्बर, 2009
 
|सफल
 
|}
 
 
 
 
भारत में प्रक्षेपास्त्र कार्यक्रम का विकास इस प्रकार हुआ-
 
भारत में प्रक्षेपास्त्र कार्यक्रम का विकास इस प्रकार हुआ-
 
*1967 में भारत ने अंतरिक्ष शोध और उपग्रह प्रक्षेपास्त्र कार्यक्रम प्रारम्भ किया और वर्ष 1972 तक रॉकेट रोहिणी-560 का परीक्षण कर लिया गया। रोहिणी-560 की मारक क्षमता लगभग 100 किलो भार के साथ 334 किलोमीटर दूर तक थी।
 
*1967 में भारत ने अंतरिक्ष शोध और उपग्रह प्रक्षेपास्त्र कार्यक्रम प्रारम्भ किया और वर्ष 1972 तक रॉकेट रोहिणी-560 का परीक्षण कर लिया गया। रोहिणी-560 की मारक क्षमता लगभग 100 किलो भार के साथ 334 किलोमीटर दूर तक थी।

05:23, 14 अगस्त 2010 का अवतरण

भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम

विकासशील अर्थव्‍यवस्‍था और उससे जुड़ी समस्‍याओं से घिरे होने के बावज़ूद भारत ने अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी को प्रभावी ढंग से विकसित किया है और उसे अपने तीव्र विकास के लिए इस्‍तेमाल भी किया है तथा आज विश्‍व के अन्‍य देशों को विभिन्‍न अंतरिक्ष सेवाएं उपलब्‍ध करा रहा है। 1960 के दशक के प्रारंभिक वर्षों में अंतरिक्ष अनुसंधान की शुरूआत भारत में मुख्‍यत: साउंडिंग रॉकेटों की मदद से हुई। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) की स्‍थापना 1969 में की गई। भारत सरकार द्वारा 1972 में 'अंतरिक्ष आयोग' और 'अंतरिक्ष विभाग' के गठन से अंतरिक्ष शोध गतिविधियों को अतिरिक्‍त गति प्राप्‍त हुई। 'इसरो' को अंतरिक्ष विभाग के नियंत्रण में रखा गया। भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के इतिहास में 70 का दशक प्रयोगात्‍मक युग था जिस दौरान 'आर्यभट्ट', 'भास्‍कर', 'रोहिणी' तथा 'एप्‍पल' जैसे प्रयोगात्‍मक उपग्रह कार्यक्रम चलाए गए। इन कार्यक्रमों की सफलता के बाद 80 का दशक संचालनात्‍मक युग बना जबकि 'इन्सेट' तथा 'आईआरएस' जैसे उपग्रह कार्यक्रम शुरू हुए। आज इन्सेट तथा आईआरएस इसरो के प्रमुख कार्यक्रम हैं। अंतरिक्ष यान के स्‍वदेश में ही प्रक्षेपण के लिए भारत का मजबूत प्रक्षेपण यान कार्यक्रम है। यह अब इतना परिपक्‍व हो गया है कि प्रक्षेपण की सेवाएं अन्‍य देशों को भी उपलब्‍ध कराता है। इसरो की व्‍यावसायिक शाखा एंट्रिक्‍स, भारतीय अंतरिक्ष सेवाओं का विपणन विश्‍व भर में करती है। भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम की खास विशेषता अंतरिक्ष में जाने वाले अन्‍य देशों, अंतरराष्ट्रीय संगठनों और विकासशील देशों के साथ प्रभावी सहयोग है।

  • वर्ष 2005-06 में भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम की सबसे प्रमुख उपलब्‍धि 'पीएसएलवीसी 6' का सफल प्रक्षेपण रही है।
  • 5 मई, 2005 को 'पोलर उपग्रह प्रक्षेपण यान' (पीएसएलवी-एफसी 6) की नौवीं उड़ान ने श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र (एसडीएससी) से सफलतापूर्वक दो उपग्रहों - 1560 कि.ग्रा. के कार्टोस्‍टार-1 तथा 42 कि.ग्रा. के हेमसेट को पूर्व-निर्धारित पोलर सन सिन्‍क्रोनन आर्बिट (एसएसओ) में पहुंचाया। लगातार सातवीं प्रक्षेपण सफलता के बाद पीएसएलवी-सी 6 की सफलता ने पीएसएलवी की विश्‍वसनीयता को आगे बढ़ाया तथा 600 कि.मी. ऊंचे पोलर एसएसओ में 1600 कि.ग्रा. भार तक के नीतभार को रखने की क्षमता को दर्शाया है।
  • 22 दिसंबर 2005 को इन्सेट-4ए का सफल प्रक्षेपण, जो कि भारत द्वारा अब तक बनाए गए सभी उपग्रहों में सबसे भारी तथा शक्‍तिशाली है, वर्ष 2005-06 की अन्‍य बड़ी उपलब्‍धि थी।
  • इन्सेट-4ए डाररेक्‍ट-टू-होम (डीटीएच) टेलीविजन प्रसारण सेवाएं प्रदान करने में सक्षम है।
  • इसके अतिरिक्‍त, नौ ग्रामीण संसाधन केंद्रों (वीआरसीज) के दूसरे समूह की स्‍थापना करना अंतरिक्ष विभाग की वर्ष के दौरान महत्‍वपूर्ण मौजूदा पहल है। वीआरसी की धारणा ग्रामीण समुदायों की बदलती तथा महत्‍वपूर्ण आवश्‍यकताओं को पूरा करने के लिए अंतरिक्ष व्‍यवस्‍थाओं तथा अन्‍य आईटी औजारों से निकलने वाली विभिन्‍न प्रकार की जानकारी प्रदान करने के लिए संचार साधनों तथा भूमि अवलोकन उपग्रहों की क्षमताओं को संघटित करती है।

भारतीय प्रक्षेपण यानों द्वारा उपग्रह प्रक्षेपण

भारत में प्रक्षेपास्त्र कार्यक्रम का विकास इस प्रकार हुआ-

  • 1967 में भारत ने अंतरिक्ष शोध और उपग्रह प्रक्षेपास्त्र कार्यक्रम प्रारम्भ किया और वर्ष 1972 तक रॉकेट रोहिणी-560 का परीक्षण कर लिया गया। रोहिणी-560 की मारक क्षमता लगभग 100 किलो भार के साथ 334 किलोमीटर दूर तक थी।
  • 1979 में भारत ने पहली बार उपग्रह प्रक्षेपण यान 'एसएलवी-3' अंतरिक्ष बूस्टर का प्रक्षेपण किया।
  • 1980 में 35 किलो भार वाले रोहिणी-1 उपग्रह का सफल प्रक्षेपण किया गया।
  • 1983 में भारत के 'रक्षा अनुसंधान और विकास संस्थान' (डी आर डी ओ) ने एकीकृत प्रक्षेपास्त्र विकास कार्यक्रम की घोषणा की जिसमें पाँच प्रक्षेपास्त्र विकसित किए जाने थे-
  1. पृथ्वी जो सतह से सतह पर मार करने वाला प्रक्षेपास्त्र है (तरल ईंधन वाला बैलिस्टिक प्रक्षेपास्त्र)।
    1. पृथ्वी-1 जिसकी मारक क्षमता डेढ़ सौ किलोमीटर, एक हज़ार किलोग्राम की क्षमता है। यह सेना के लिए है।
    2. पृथ्वी-2 जिसकी मारक क्षमता ढाई सौ किलोमीटर, पाँच सौ किलोग्राम की क्षमता है। यह वायु सेना के लिए है।
    3. पृथ्वी-3 जिसकी मारक क्षमता साढ़े तीन सौ किलोमीटर, पाँच सौ किलोग्राम की क्षमता है। यह नौसेना के लिए है।
  2. अग्नि जो सतह से सतह पर मार करने वाला प्रक्षेपास्त्र है और जिसकी क्षमता डेढ़ हज़ार किलोमीटर है। यह एक हज़ार किलोग्राम भार वाला अस्त्र ले जा सकता है। इस प्रक्षेपास्त्र का पहला चरण एसएलवी-3 के ठोस ईंधन वाले मोटर का और दूसरा चरण तरल ईंधन वाले पृथ्वी का प्रयोग करता है।
  3. आकाश जो सतह से सतह पर मार करने वाला लंबी दूरी का प्रक्षेपास्त्र है। यह 55 किलोग्राम वजन का अस्त्र ले जा सकता है और अधिकतम 25 किलोमीटर की दूरी तक यह एक साथ पाँच विमानों को निशाना बना सकता है।
  4. त्रिशूल जो सतह से सतह पर या सतह से हवा में मार करने वाला कम दूरी का प्रक्षेपास्त्र है। इसकी मारक दूरी 50 किलोमीटर है और यह रडार के निर्देशों से कार्य करता है।
  5. नाग जो टैंक रोधी प्रक्षेपास्त्र है। यह लगभग चार किलोमीटर की क्षमता वाला प्रक्षेपास्त्र है और निर्देशों के लिए संवेदी प्रौद्योगिकी पर बना है।
  • 1987 में भारत ने आधुनिक उपग्रह प्रक्षेपण यान (ए एस एल वी) का परीक्षण प्रारम्भ किया। चार हज़ार किलोमीटर की क्षमता वाले इस प्रक्षेपण की क्षमता डेढ़ सौ किलोग्राम है। इसमें तीन उपग्रह प्रक्षेपण यान रहते हैं।
  • 1988 में भारत ने 'पृथ्वी' की परीक्षण उड़ान का परीक्षण किया। भारत ने ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (पी एस एल वी) के निर्माण की घोषणा की जिसकी क्षमता लगभग आठ हज़ार किलोमीटर थी। एक हज़ार किलो वजन की क्षमता के इस यान से एक टन का उपग्रह ध्रुवीय कक्षा में स्थापित किया सकता था। यदि इस यान को हथियार प्रणाली की भाँति किया जाए तो यह परमाणु अस्त्र को एक महाद्वीप से दूसरे महाद्वीप तक ले जाने में सक्षम है।
  • 1989 में भारत ने अग्नि का परीक्षण किया और नवंबर में नाग का परीक्षण किया।
  • 1994 के मध्य तक पृथ्वी-1 का प्रारम्भिक उत्पादन प्रारम्भ हो गया था। भारतीय सेना ने 100 पृथ्वी-1 प्रक्षेपास्त्र लेने का आदेश दिया जिसे उसकी 333 प्रक्षेपास्त्र ग्रुप के साथ तैनात किया जाना था।
  • 1996 में भारत ने कहा कि वह 'भू-समकालिक उपग्रह प्रक्षेपण यान' विकसित कर रहा है। भारत की योजना जनवरी माह में रूस की जी एस एल वी के लिए सात क्रायोजेनिक इंजन देने की योजना थी।
  • 1998 में भारत में 'भारतीय जनता पार्टी' ने 'पृथ्वी प्रक्षेपास्त्रों' का उत्पादन अधिक करने की योजना के साथ ही मध्यम दूरी के 'अग्नि प्रक्षेपास्त्र' विकसित करने का भी फ़ैसला लिया।
  • क्लिंटन प्रशासन के वरिष्ठ अधिकारी ने अमेरीका में कहा कि भारत के पास 'सागरिका' नाम का समुद्र से जुड़ा प्रक्षेपास्त्र है। सागरिका की क्षमता 200 मील की है और वह परमाणु अस्त्र ले जाने में सक्षम है।
  • 11मई भारत ने त्रिशूल का सफल परीक्षण किया है। यह सतह से सतह और सतह से हवा में मारने वाला प्रक्षेपास्त्र है।