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*[[पुर्तग़ाल]] देश के लोगों को पुर्तग़ाली कहा जाता है। [[वास्को द गामा]] एक पुर्तग़ाली नाविक थे। वास्को द गामा के द्वारा की गई [[भारत]] यात्राओं ने पश्चिमी यूरोप से केप ऑफ़ गुड होप होकर पूर्व के लिए समुद्री मार्ग खोल दिए थे।  
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[[पुर्तग़ाल]] देश के लोगों को '''पुर्तग़ाली''' कहा जाता है। [[वास्कोडिगामा]] एक पुर्तग़ाली नाविक था। वास्कोडिगामा के द्वारा की गई [[भारत]] यात्राओं ने पश्चिमी यूरोप से 'केप ऑफ़ गुड होप' होकर पूर्व के लिए समुद्री मार्ग खोल दिए थे। जिस स्थान का नाम पुर्तग़ालियों ने [[गोवा]] रखा था, वह आज का छोटा-सा समुद्र तटीय शहर 'गोअ-वेल्हा' है। कालान्तर में उस क्षेत्र को गोवा कहा जाने लगा, जिस पर पुर्तग़ालियों ने क़ब्ज़ा किया था। [[17 मई]], 1498 ई. को वास्कोडिगामा ने भारत के पश्चिमी तट पर स्थित बन्दरगाह [[कालीकट]] पहुँचकर भारत के नये समुद्र मार्ग की खोज की। कालीकट के तत्कालीन शासक 'जमोरिन' ने वास्कोडिगामा का स्वागत किया। जमोरिन का यह व्यापार उस समय भारतीय व्यापार पर अधिकार जमाये हुए अरब व्यापारियों को पसन्द नहीं आया।
*[[गोवा]] में जिस स्थान का नाम पुर्तग़ालियों ने गोवा रखा वह आज का छोटा सा समुद्र तटीय शहर 'गोअ-वेल्हा' है। कालान्तर में उस क्षेत्र को गोवा कहा जाने लगा जिस पर पुर्तग़ालियों ने क़ब्ज़ा किया।
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==पुर्तग़ालियों का भारत आगमन==
*सन 1489 में [[वास्कोडिगामा]] द्वारा [[भारत]] के लिए समुद्री मार्ग की खोज के बाद पुर्तग़ाली यात्री [[भारत]] पहुंचे। सन 1510 में एल्फांसो द अलबुकर्क ने [[विजयनगर]] के सम्राट की सहायता से गोवा पर आक्रमण करके इस पर क़ब्ज़ा कर लिया। सन 1542 में जेसुइट संत फ्रांसिस जेवियर के आगमन से गोवा में धर्म परिवर्तन आरंभ हुआ। 17 वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध के कुछ वर्षो को छोड़कर, जब शिवाजी ने गोवा और उसके आसपास के क्षेत्रों पर अधिकार कर लिया था, पूरे क्षेत्र पर पुर्तग़ालियों का शासन रहा।
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आधुनिक युग में भारत आने वाले यूरोपीय व्यापारियों के रूप के पुर्तग़ाली सर्वप्रथम रहे। 'पोप अलेक्ज़ेण्डर षष्ठ' ने एक आज्ञा पत्र द्वारा पूर्वी समुद्रों में पुर्तग़ालियों को व्यापार करने का एकाधिकार प्रदान किया। प्रथम पुर्तग़ीज तथा प्रथम यूरोपीय यात्री वास्कोडिगामा 90 दिन की समुद्री यात्रा के बाद 'अब्दुल मनीक' नामक गुजराती पथ प्रदर्शक की सहायता से 1498 ई. में कालीकट (भारत) के समुद्री तट पर उतरा।
*भारत के स्वतंत्र होने पर भी गोवा पुर्तग़ालियों के ही अधिकार में रहा। अंतत: 19 दिसंबर, 1961 को गोवा को मुक्त कर दिया गया और इसे [[दमन और दीव]] के साथ मिलाकर [[केंद्रशासित प्रदेश]] बनाया गया।
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वास्कोडिगामा के भारत आगमन से पुर्तग़ालियों एवं भारत के मध्य व्यापार के क्षेत्र में एक नये युग का शुभारम्भ हुआ। वास्कोडिगामा ने भारत आने और जाने पर हुए यात्रा के व्यय के बदले में 60 गुना अधिक कमाई की। धीरे-धीरे पुर्तग़ालियों का भारत आने का क्रम जारी हो गया। पुर्तग़ालियों के भारत आने के दो प्रमुख उद्देश्य थे-
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#अरबों और वेनिस के व्यापारियों का [[भारत]] से प्रभाव समाप्त करना।
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====प्रथम क़िले का निर्माण====
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[[9 मार्च]], 1500 ई. को 13 जहाज़ों के एक बेड़े का नायक बनकर 'पेड्रों अल्वारेज केब्राल' जल-मार्ग द्वारा लिस्बन से भारत के लिए रवाना हुआ। वास्कोडिगामा के बाद भारत आने वाला यह दूसरा पुर्तग़ाली यात्री था। पुर्तग़ाली व्यापारियों ने भारत में कालीकट, [[गोवा]], [[दमन और दीव]] एवं हुगली के बंदरगाहों में अपनी व्यापारिक कोठियाँ स्थापित कीं। पूर्वी जगत के काली मिर्च और मसालों के व्यापार पर एकाधिकार प्राप्त करने के उद्देश्य से पुर्तग़ालियों ने 1503 ई. में [[कोचीन]] (भारत) में अपने पहले दुर्ग की स्थापना की। पुर्तग़ालियों के वे वायसराय, जिन्होंने पुर्तग़ालियों को भारत में अपने पैर जमाने के लिये भरपूर योगदान किया, उनके नाम इस प्रकार हैं-
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==संबंधित लेख==
 
==संबंधित लेख==

10:00, 13 जुलाई 2011 का अवतरण

पुर्तग़ाल देश के लोगों को पुर्तग़ाली कहा जाता है। वास्कोडिगामा एक पुर्तग़ाली नाविक था। वास्कोडिगामा के द्वारा की गई भारत यात्राओं ने पश्चिमी यूरोप से 'केप ऑफ़ गुड होप' होकर पूर्व के लिए समुद्री मार्ग खोल दिए थे। जिस स्थान का नाम पुर्तग़ालियों ने गोवा रखा था, वह आज का छोटा-सा समुद्र तटीय शहर 'गोअ-वेल्हा' है। कालान्तर में उस क्षेत्र को गोवा कहा जाने लगा, जिस पर पुर्तग़ालियों ने क़ब्ज़ा किया था। 17 मई, 1498 ई. को वास्कोडिगामा ने भारत के पश्चिमी तट पर स्थित बन्दरगाह कालीकट पहुँचकर भारत के नये समुद्र मार्ग की खोज की। कालीकट के तत्कालीन शासक 'जमोरिन' ने वास्कोडिगामा का स्वागत किया। जमोरिन का यह व्यापार उस समय भारतीय व्यापार पर अधिकार जमाये हुए अरब व्यापारियों को पसन्द नहीं आया।

पुर्तग़ालियों का भारत आगमन

आधुनिक युग में भारत आने वाले यूरोपीय व्यापारियों के रूप के पुर्तग़ाली सर्वप्रथम रहे। 'पोप अलेक्ज़ेण्डर षष्ठ' ने एक आज्ञा पत्र द्वारा पूर्वी समुद्रों में पुर्तग़ालियों को व्यापार करने का एकाधिकार प्रदान किया। प्रथम पुर्तग़ीज तथा प्रथम यूरोपीय यात्री वास्कोडिगामा 90 दिन की समुद्री यात्रा के बाद 'अब्दुल मनीक' नामक गुजराती पथ प्रदर्शक की सहायता से 1498 ई. में कालीकट (भारत) के समुद्री तट पर उतरा। वास्कोडिगामा के भारत आगमन से पुर्तग़ालियों एवं भारत के मध्य व्यापार के क्षेत्र में एक नये युग का शुभारम्भ हुआ। वास्कोडिगामा ने भारत आने और जाने पर हुए यात्रा के व्यय के बदले में 60 गुना अधिक कमाई की। धीरे-धीरे पुर्तग़ालियों का भारत आने का क्रम जारी हो गया। पुर्तग़ालियों के भारत आने के दो प्रमुख उद्देश्य थे-

  1. अरबों और वेनिस के व्यापारियों का भारत से प्रभाव समाप्त करना।
  2. ईसाई धर्म का प्रचार करना।

प्रथम क़िले का निर्माण

9 मार्च, 1500 ई. को 13 जहाज़ों के एक बेड़े का नायक बनकर 'पेड्रों अल्वारेज केब्राल' जल-मार्ग द्वारा लिस्बन से भारत के लिए रवाना हुआ। वास्कोडिगामा के बाद भारत आने वाला यह दूसरा पुर्तग़ाली यात्री था। पुर्तग़ाली व्यापारियों ने भारत में कालीकट, गोवा, दमन और दीव एवं हुगली के बंदरगाहों में अपनी व्यापारिक कोठियाँ स्थापित कीं। पूर्वी जगत के काली मिर्च और मसालों के व्यापार पर एकाधिकार प्राप्त करने के उद्देश्य से पुर्तग़ालियों ने 1503 ई. में कोचीन (भारत) में अपने पहले दुर्ग की स्थापना की। पुर्तग़ालियों के वे वायसराय, जिन्होंने पुर्तग़ालियों को भारत में अपने पैर जमाने के लिये भरपूर योगदान किया, उनके नाम इस प्रकार हैं-

  1. फ़्रांसिस्को-द-अल्मेडा
  2. अलफ़ांसो-द-अल्बुकर्क
  3. नीनो-डी-कुन्हा
  4. जोवा-डी-कैस्ट्रो

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