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'''निघण्टु''' [[वेद|वेदों]] में प्रयुक्त होने वाले कठिन शब्दों का एक कोश है। यास्क ने उसे 'समाम्नाय' नाम से सम्बोधित किया है। [[महाभारत]] के अनुसार<ref>(शांति : 342 86-87)</ref> इसके कर्ता प्रजापति काश्यप हैं। निघण्टु पर केवल एक ही टीका उपलब्ध है, जिसका नाम 'निघंटुनिर्वचन' है।
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'''निघण्टु''' [[वेद|वेदों]] में प्रयुक्त होने वाले कठिन शब्दों का एक कोश है। [[यास्क]] ने उसे 'समाम्नाय' नाम से सम्बोधित किया है। [[महाभारत]] के अनुसार<ref>(शांति : 342 86-87)</ref> इसके कर्ता प्रजापति काश्यप हैं। निघण्टु पर केवल एक ही टीका उपलब्ध है, जिसका नाम 'निघंटुनिर्वचन' है।
 
==अध्याय==
 
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निघण्टु पाँच अध्यायों में लिखा गया है। इसमें [[अग्नि देव|अग्नि]] से लेकर देव पत्नियों तक वैदिक [[देवता|देवताओं]] के नाम आते हैं। यास्क की निरुक्त उसी पर आधारित है। जिस निघण्टु पर यास्क की टीका है, उसमें पांच अध्याय हैं। प्रथम 3 अध्याय, (नैघण्टुक काण्ड) शब्दों की व्याख्या निरुक्त के द्वितीय व तृतीय अध्यायों में की गई है। इसकी शब्द संख्या 1314 है, जिनमें से 230 शब्दों की ही व्याख्या की गई है। चतुर्थ अध्याय को नैगम काण्ड व पंचम अध्याय को दैवत काण्ड कहते हैं। नैगम काण्ड में 3 खंड हैं, जिनमें 62, 64 व 132 पद हैं। वे किसी के पर्याय न होकर स्वतंत्र हैं। नैगम काण्ड के शब्दों का यथार्थ ज्ञान नहीं होता। दैवत काण्ड के 6 खंडों की पद संख्या 3, 13, 32, 36 व 31 हैं, जिनमें विभिन्न वैदिक देवताओं के नाम हैं। इन शब्दों की व्याख्या निरुक्त के 7वें से 12वें अध्याय तक हुई है। डॉक्टर लक्ष्मण स्वरूप के अनुसार, निघण्टु एक ही व्यक्ति की कृति नहीं है, पर विश्वनाथ काशीनाथ राजवाड़े ने इनके कथन का सप्रमाण खंडन किया है।
 
निघण्टु पाँच अध्यायों में लिखा गया है। इसमें [[अग्नि देव|अग्नि]] से लेकर देव पत्नियों तक वैदिक [[देवता|देवताओं]] के नाम आते हैं। यास्क की निरुक्त उसी पर आधारित है। जिस निघण्टु पर यास्क की टीका है, उसमें पांच अध्याय हैं। प्रथम 3 अध्याय, (नैघण्टुक काण्ड) शब्दों की व्याख्या निरुक्त के द्वितीय व तृतीय अध्यायों में की गई है। इसकी शब्द संख्या 1314 है, जिनमें से 230 शब्दों की ही व्याख्या की गई है। चतुर्थ अध्याय को नैगम काण्ड व पंचम अध्याय को दैवत काण्ड कहते हैं। नैगम काण्ड में 3 खंड हैं, जिनमें 62, 64 व 132 पद हैं। वे किसी के पर्याय न होकर स्वतंत्र हैं। नैगम काण्ड के शब्दों का यथार्थ ज्ञान नहीं होता। दैवत काण्ड के 6 खंडों की पद संख्या 3, 13, 32, 36 व 31 हैं, जिनमें विभिन्न वैदिक देवताओं के नाम हैं। इन शब्दों की व्याख्या निरुक्त के 7वें से 12वें अध्याय तक हुई है। डॉक्टर लक्ष्मण स्वरूप के अनुसार, निघण्टु एक ही व्यक्ति की कृति नहीं है, पर विश्वनाथ काशीनाथ राजवाड़े ने इनके कथन का सप्रमाण खंडन किया है।
 
==मत भ्रांतियाँ==
 
==मत भ्रांतियाँ==
 
कतिपय विद्वान निरुक्त व निघण्टु दोनों का ही रचयिता यास्क को ही स्वीकार करते हैं। स्वामी दयानंद व पंडित भगवद्दत्त के अनुसार, जितने निरुक्तकार हैं, वे सभी निघण्टु के रचयिता हैं। आधुनिक विद्वान सर्वश्री राय, कर्मकर, लक्ष्मण स्वरूप तथा प्राचीन टीकाकार स्कंद, दुर्ग व महेश्वर ने निघण्टु के प्रणेता अज्ञातनामा लेखक को माना है। दुर्ग के अनुसार निघण्टु श्रुतर्षियों द्वारा किया गया संग्रह है। अभी तक निश्चित् रूप से यह मत प्रकट नहीं किया जा सका है कि निघण्टु का प्रणेता कौन है। निघण्टु पर केवल एक ही टीका उपलब्ध है, जिसका नाम है ‘निघंटुनिर्वचन’। देवराज यज्वा नामक एक दाक्षिणात्य पंडित इस टीका के लेखक हैं। उन्होंने नैघंटुक काण्ड का ही निर्वचन विस्तारपूर्वक किया है। तुलनात्मक दृष्टि से अन्य कांडों का निर्वचन उत्यल्प है। इस टीका उपोद्घात, वेद भाष्याकारों का [[इतिहास]] जानने के लिए अत्यन्त उपयुक्त सिद्ध हुआ। देवराज यज्वा के काल के बारे में मतभेद हैं। कोई उन्हें [[सायण]] के पहले का मानते हैं तो कोई बाद का। किन्तु श्री बल्देव उपाध्याय के मतानुसार उन्हें सायण के पहले का मानना ही उचित रहेगा। [[भास्कराचार्य]] नामक एक प्रसिद्ध तांत्रिक ने एक छोटा-सा [[ग्रन्थ]] लिखकर निघण्टु के सभी शब्दों को [[अमरकोश]] की पद्धति पर श्लोकबद्ध किया है।<ref>सं.वा.को. (द्वितीय खण्ड) पृष्ठ संख्या- 162</ref>
 
कतिपय विद्वान निरुक्त व निघण्टु दोनों का ही रचयिता यास्क को ही स्वीकार करते हैं। स्वामी दयानंद व पंडित भगवद्दत्त के अनुसार, जितने निरुक्तकार हैं, वे सभी निघण्टु के रचयिता हैं। आधुनिक विद्वान सर्वश्री राय, कर्मकर, लक्ष्मण स्वरूप तथा प्राचीन टीकाकार स्कंद, दुर्ग व महेश्वर ने निघण्टु के प्रणेता अज्ञातनामा लेखक को माना है। दुर्ग के अनुसार निघण्टु श्रुतर्षियों द्वारा किया गया संग्रह है। अभी तक निश्चित् रूप से यह मत प्रकट नहीं किया जा सका है कि निघण्टु का प्रणेता कौन है। निघण्टु पर केवल एक ही टीका उपलब्ध है, जिसका नाम है ‘निघंटुनिर्वचन’। देवराज यज्वा नामक एक दाक्षिणात्य पंडित इस टीका के लेखक हैं। उन्होंने नैघंटुक काण्ड का ही निर्वचन विस्तारपूर्वक किया है। तुलनात्मक दृष्टि से अन्य कांडों का निर्वचन उत्यल्प है। इस टीका उपोद्घात, वेद भाष्याकारों का [[इतिहास]] जानने के लिए अत्यन्त उपयुक्त सिद्ध हुआ। देवराज यज्वा के काल के बारे में मतभेद हैं। कोई उन्हें [[सायण]] के पहले का मानते हैं तो कोई बाद का। किन्तु श्री बल्देव उपाध्याय के मतानुसार उन्हें सायण के पहले का मानना ही उचित रहेगा। [[भास्कराचार्य]] नामक एक प्रसिद्ध तांत्रिक ने एक छोटा-सा [[ग्रन्थ]] लिखकर निघण्टु के सभी शब्दों को [[अमरकोश]] की पद्धति पर श्लोकबद्ध किया है।<ref>सं.वा.को. (द्वितीय खण्ड) पृष्ठ संख्या- 162</ref>
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==

13:27, 26 दिसम्बर 2012 का अवतरण

निघण्टु वेदों में प्रयुक्त होने वाले कठिन शब्दों का एक कोश है। यास्क ने उसे 'समाम्नाय' नाम से सम्बोधित किया है। महाभारत के अनुसार[1] इसके कर्ता प्रजापति काश्यप हैं। निघण्टु पर केवल एक ही टीका उपलब्ध है, जिसका नाम 'निघंटुनिर्वचन' है।

अध्याय

निघण्टु पाँच अध्यायों में लिखा गया है। इसमें अग्नि से लेकर देव पत्नियों तक वैदिक देवताओं के नाम आते हैं। यास्क की निरुक्त उसी पर आधारित है। जिस निघण्टु पर यास्क की टीका है, उसमें पांच अध्याय हैं। प्रथम 3 अध्याय, (नैघण्टुक काण्ड) शब्दों की व्याख्या निरुक्त के द्वितीय व तृतीय अध्यायों में की गई है। इसकी शब्द संख्या 1314 है, जिनमें से 230 शब्दों की ही व्याख्या की गई है। चतुर्थ अध्याय को नैगम काण्ड व पंचम अध्याय को दैवत काण्ड कहते हैं। नैगम काण्ड में 3 खंड हैं, जिनमें 62, 64 व 132 पद हैं। वे किसी के पर्याय न होकर स्वतंत्र हैं। नैगम काण्ड के शब्दों का यथार्थ ज्ञान नहीं होता। दैवत काण्ड के 6 खंडों की पद संख्या 3, 13, 32, 36 व 31 हैं, जिनमें विभिन्न वैदिक देवताओं के नाम हैं। इन शब्दों की व्याख्या निरुक्त के 7वें से 12वें अध्याय तक हुई है। डॉक्टर लक्ष्मण स्वरूप के अनुसार, निघण्टु एक ही व्यक्ति की कृति नहीं है, पर विश्वनाथ काशीनाथ राजवाड़े ने इनके कथन का सप्रमाण खंडन किया है।

मत भ्रांतियाँ

कतिपय विद्वान निरुक्त व निघण्टु दोनों का ही रचयिता यास्क को ही स्वीकार करते हैं। स्वामी दयानंद व पंडित भगवद्दत्त के अनुसार, जितने निरुक्तकार हैं, वे सभी निघण्टु के रचयिता हैं। आधुनिक विद्वान सर्वश्री राय, कर्मकर, लक्ष्मण स्वरूप तथा प्राचीन टीकाकार स्कंद, दुर्ग व महेश्वर ने निघण्टु के प्रणेता अज्ञातनामा लेखक को माना है। दुर्ग के अनुसार निघण्टु श्रुतर्षियों द्वारा किया गया संग्रह है। अभी तक निश्चित् रूप से यह मत प्रकट नहीं किया जा सका है कि निघण्टु का प्रणेता कौन है। निघण्टु पर केवल एक ही टीका उपलब्ध है, जिसका नाम है ‘निघंटुनिर्वचन’। देवराज यज्वा नामक एक दाक्षिणात्य पंडित इस टीका के लेखक हैं। उन्होंने नैघंटुक काण्ड का ही निर्वचन विस्तारपूर्वक किया है। तुलनात्मक दृष्टि से अन्य कांडों का निर्वचन उत्यल्प है। इस टीका उपोद्घात, वेद भाष्याकारों का इतिहास जानने के लिए अत्यन्त उपयुक्त सिद्ध हुआ। देवराज यज्वा के काल के बारे में मतभेद हैं। कोई उन्हें सायण के पहले का मानते हैं तो कोई बाद का। किन्तु श्री बल्देव उपाध्याय के मतानुसार उन्हें सायण के पहले का मानना ही उचित रहेगा। भास्कराचार्य नामक एक प्रसिद्ध तांत्रिक ने एक छोटा-सा ग्रन्थ लिखकर निघण्टु के सभी शब्दों को अमरकोश की पद्धति पर श्लोकबद्ध किया है।[2]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

भारतीय संस्कृति कोश, भाग-2 |प्रकाशक: यूनिवर्सिटी पब्लिकेशन, नई दिल्ली-110002 |संपादन: प्रोफ़ेसर देवेन्द्र मिश्र |पृष्ठ संख्या: 448 |

  1. (शांति : 342 86-87)
  2. सं.वा.को. (द्वितीय खण्ड) पृष्ठ संख्या- 162

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