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'''झगडालू मेंढक''' [[पंचतंत्र]] की प्रसिद्ध कहानियों में से एक है जिसके रचयिता [[विष्णु शर्मा|आचार्य विष्णु शर्मा]] हैं।
;झगडालू मेंढक
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==कहानी==
 
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<poem style="background:#fbf8df; padding:15px; font-size:16px; border:1px solid #003333; border-radius:5px">
एक कुएं में बहुत से मेंढक रहते थे। उनके राजा का नाम था गंगदत्त। गंगदत्त बहुत झगडालू स्वभाव का था। आसपास दो तीन और भी कुएं थे। उनमें भी मेंढक रहते थे। हर कुएं के मेंढकों का अपना राजा था। हर राजा से किसी न किसी बात पर गंगदत्त का झगडा चलता ही रहता था। वह अपनी मूर्खता से कोई गलत काम करने लगता और बुद्धिमान मेंढक रोकने की कोशिश करता तो मौका मिलते ही अपने पाले गुंडे मेंढकों से पिटवा देता। कुएं के मेंढकों में भीतर गंगदत्त के प्रति रोष बढता जा रहा था। घर में भी झगडों से चैन न था। अपनी हर मुसीबत के लिए दोष देता।
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          एक कुएं में बहुत से मेंढक रहते थे। उनके राजा का नाम था गंगदत्त। गंगदत्त बहुत झगडालू स्वभाव का था। आसपास दो तीन और भी कुएं थे। उनमें भी मेंढक रहते थे। हर कुएं के मेंढकों का अपना राजा था। हर राजा से किसी न किसी बात पर गंगदत्त का झगडा चलता ही रहता था। वह अपनी मूर्खता से कोई ग़लत काम करने लगता और बुद्धिमान मेंढक रोकने की कोशिश करता तो मौक़ा मिलते ही अपने पाले गुंडे मेंढकों से पिटवा देता। कुएं के मेंढकों में भीतर गंगदत्त के प्रति रोष बढता जा रहा था। घर में भी झगडों से चैन न था। अपनी हर मुसीबत के लिए दोष देता।
 
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एक दिन गंगदत्त का पडौसी मेंढक राजा से खूब झगडा हुआ। खूब तू-तू मैं-मैं हुई। गंगदत्त ने अपने कुएं में आकर बताया कि पडौसी राजा ने उसका अपमान किया हैं। अपमान का बदला लेने के लिए उसने अपने मेंढकों को आदेश दिया कि पडौसी कुएं पर हमला करें। सब जानते थे कि झगडा गंगदत्त ने ही शुरू किया होगा।
एक दिन गंगदत्त पडौसी मेंढक राजा से खूब झगडा। खूब तू-तू मैं-मैं हुई। गंगदत्त ने अपने कुएं आकर बताया कि पडौसी राजा ने उसका अपमान किया हैं। अपमान का बदला लेने के लिए उसने अपने मेंढकों को आदेश दिया कि पडौसी कुएं पर हमला करें सब जानते थे कि झगडा गंगदत्त ने ही शुरु किया होगा।
 
 
 
 
कुछ स्याने मेंढकों तथा बुद्धिमानों ने एकजुट होकर एक स्वर में कहा 'राजन, पडौसी कुएं में हमसे दुगने मेंढक हैं। वे स्वस्थ व हमसे अधिक ताकतवर हैं। हम यह लडाई नहीं लडेंगे।'
 
कुछ स्याने मेंढकों तथा बुद्धिमानों ने एकजुट होकर एक स्वर में कहा 'राजन, पडौसी कुएं में हमसे दुगने मेंढक हैं। वे स्वस्थ व हमसे अधिक ताकतवर हैं। हम यह लडाई नहीं लडेंगे।'
 
 
गंगदत्त सन्न रह गया और बुरी तरह तिलमिला गया। मन ही मन में उसने ठान ली कि इन गद्दारों को भी सबक सिखाना होगा। गंगदत्त ने अपने बेटों को बुलाकर भडकाया 'बेटा, पडौसी राजा ने तुम्हारे पिताश्री का घोर अपमान किया हैं। जाओ, पडौसी राजा के बेटों की ऐसी पिटाई करो कि वे पानी मांगने लग जाएं।'
 
गंगदत्त सन्न रह गया और बुरी तरह तिलमिला गया। मन ही मन में उसने ठान ली कि इन गद्दारों को भी सबक सिखाना होगा। गंगदत्त ने अपने बेटों को बुलाकर भडकाया 'बेटा, पडौसी राजा ने तुम्हारे पिताश्री का घोर अपमान किया हैं। जाओ, पडौसी राजा के बेटों की ऐसी पिटाई करो कि वे पानी मांगने लग जाएं।'
 
 
गंगदत्त के बेटे एक दूसरे का मुंह देखने लगे। आखिर बडे बेटे ने कहा 'पिताश्री, आपने कभी हमें टर्राने की इजाजत नहीं दी। टर्राने से ही मेंढकों में बल आता हैं, हौसला आता हैं और जोश आता हैं। आप ही बताइए कि बिना हौसले और जोश के हम किसी की क्या पिटाई कर पाएंगे?'
 
गंगदत्त के बेटे एक दूसरे का मुंह देखने लगे। आखिर बडे बेटे ने कहा 'पिताश्री, आपने कभी हमें टर्राने की इजाजत नहीं दी। टर्राने से ही मेंढकों में बल आता हैं, हौसला आता हैं और जोश आता हैं। आप ही बताइए कि बिना हौसले और जोश के हम किसी की क्या पिटाई कर पाएंगे?'
 
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अब गंगदत्त सबसे चिढ गया। एक दिन वह कुढता और बडबडाता कुएं से बाहर निकल इधर-उधर घूमने लगा। उसे एक भयंकर [[नाग]] पास ही बने अपने बिल में घुसता नजर आया। उसकी आँखेंं चमकी। जब अपने दुश्मन बन गए हो तो दुश्मन को अपना बनाना चाहिए। यह सोच वह बिल के पास जाकर बोला 'नागदेव, मेरा प्रणाम।'
अब गंगदत्त सबसे चिढ गया। एक दिन वह कुढता और बडबडाता कुएं से बाहर निकल इधर-उधर घूमने लगा। उसे एक भयंकर नाग पास ही बने अपने बिल में घुसता नजर आया। उसकी आंखें चमकी। जब अपने दुश्मन बन गए हो तो दुश्मन को अपना बनाना चाहिए। यह सोच वह बिल के पास जाकर बोला 'नागदेव, मेरा प्रणाम।'
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नागदेव फुफकारा 'अरे मेंढक मैं तुम्हारा बैरी हूं। तुम्हें खा जाता हूं और तू मेरे बिल के आगे आकर मुझे आवाज़ दे रहा हैं।
 
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गंगदत्त टर्राया 'हे नाग, कभी-कभी शत्रुओं से ज़्यादा अपने दु:ख देने लगते हैं। मेरा अपनी जाति वालों और सगों ने इतना घोर अपमान किया हैं कि उन्हें सबक सिखाने के लिए मुझे तुम जैसे शत्रु के पास सहायता मांगने आना पडा हैं। तुम मेरी दोस्ती स्वीकार करो और मजे करो।'
नागदेव फुफकारा 'अरे मेंढक मैं तुम्हारा बैरी हूं। तुम्हें खा जाता हूं और तू मेरे बिल के आगे आकर मुझे आवाज दे रहा हैं।
 
 
 
गंगदत्त टर्राया 'हे नाग, कभी-कभी शत्रुओं से ज्यादा अपने दुख देने लगते हैं। मेरा अपनी जाति वालों और सगों ने इतना घोर अपमान किया हैं कि उन्हें सबक सिखाने के लिए मुझे तुम जैसे शत्रु के पास सहायता मांगने आना पडा हैं। तुम मेरी दोस्ती स्वीकार करो और मजे करो।'
 
 
 
 
नाग ने बिल से अपना सिर बाहर निकाला और बोला 'मजे, कैसे मजे?'
 
नाग ने बिल से अपना सिर बाहर निकाला और बोला 'मजे, कैसे मजे?'
 
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गंगदत्त ने कहा 'मैं तुम्हें इतने मेंढक खिलाऊंगा कि तुम मुटाते-मुटाते [[अजगर]] बन जाओगे।'
गंगदत्त ने कहा 'मैं तुम्हें इतने मेंढक खिलाऊंगा कि तुम मुटाते-मुटाते अजगर बन जाओगे।'
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नाग ने शंका व्यक्त की 'पानी में मैं जा नहीं सकता। कैसे पकडूंगा मेंढक?'
 
 
नाग ने शंका व्यक्त की 'पानी में मैं जा नहीं सकता। कैसे पकडूंगा मेडक?'
 
 
 
 
गंगदत्त ने ताली बजाई 'नाग भाई, यहीं तो मेरी दोस्ती तुम्हारे काम आएगी। मैने पडौसी राजाओं के कुओं पर नजर रखने के लिए अपने जासूस मेडकों से गुप्त सुरंगें खुदवा रखी हैं। हर कुएं तक उनका रास्ता जाता हैं। सुरंगें जहां मिलती हैं। वहां एक कक्ष हैं। तुम वहां रहना और जिस-जिस मेंढक को खाने के लिए कहूं, उन्हें खाते जाना।'
 
गंगदत्त ने ताली बजाई 'नाग भाई, यहीं तो मेरी दोस्ती तुम्हारे काम आएगी। मैने पडौसी राजाओं के कुओं पर नजर रखने के लिए अपने जासूस मेडकों से गुप्त सुरंगें खुदवा रखी हैं। हर कुएं तक उनका रास्ता जाता हैं। सुरंगें जहां मिलती हैं। वहां एक कक्ष हैं। तुम वहां रहना और जिस-जिस मेंढक को खाने के लिए कहूं, उन्हें खाते जाना।'
 
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नाग गंगदत्त से दोस्ती के लिए तैयार हो गया। क्योंकि उसमें उसका लाभ ही लाभ था। एक मूर्ख बदले की भावना में अंधे होकर अपनों को दुश्मन के पेट के हवाले करने को तैयार हो तो दुश्मन क्यों न इसका लाभ उठाए?
नाग गंगदत्त से दोस्ती के लिए तैयार हो गया। क्योंकि उसमें उसका लाभ ही लाभ था। एक मूर्ख बदले की भावना में अंधे होकर अपनों को दुशमन के पेट के हवाले करने को तैयार हो तो दुश्मन क्यों न इसका लाभ उठाए?
 
 
 
 
नाग गंगदत्त के साथ सुरंग कक्ष में जाकर बैठ गया। गंगदत्त ने पहले सारे पडौसी मेंढक राजाओं और उनकी प्रजाओं को खाने के लिए कहा। नाग कुछ सप्ताहों में सारे दूसरे कुओं के मेंढक सुरंगों के रास्ते जा-जाकर खा गया। जब सब समाप्त हो गए तो नाग गंगदत्त से बोला 'अब किसे खाऊं? जल्दी बता। चौबीस घंटे पेट फुल रखने की आदत पड गई हैं।'
 
नाग गंगदत्त के साथ सुरंग कक्ष में जाकर बैठ गया। गंगदत्त ने पहले सारे पडौसी मेंढक राजाओं और उनकी प्रजाओं को खाने के लिए कहा। नाग कुछ सप्ताहों में सारे दूसरे कुओं के मेंढक सुरंगों के रास्ते जा-जाकर खा गया। जब सब समाप्त हो गए तो नाग गंगदत्त से बोला 'अब किसे खाऊं? जल्दी बता। चौबीस घंटे पेट फुल रखने की आदत पड गई हैं।'
 
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गंगदत्त ने कहा 'अब मेरे कुएं के सभी स्यानों और बुद्धिमान मेंढकों को खाओ।'
गंगदत्त ने कहा 'अब मेरे कुए के सभी स्यानों और बुद्धिमान मेंढकों को खाओ।'
 
 
 
 
वह खाए जा चुके तो प्रजा की बारी आई। गंगदत्त ने सोचा 'प्रजा की ऐसी तैसी। हर समय कुछ न कुछ शिकायत करती रहती हैं। उनको खाने के बाद नाग ने खाना मांगा तो गंगदत्त बोला 'नागमित्र, अब केवल मेरा कुनबा और मेरे मित्र बचे हैं। खेल खत्म और मेंढक हजम।'
 
वह खाए जा चुके तो प्रजा की बारी आई। गंगदत्त ने सोचा 'प्रजा की ऐसी तैसी। हर समय कुछ न कुछ शिकायत करती रहती हैं। उनको खाने के बाद नाग ने खाना मांगा तो गंगदत्त बोला 'नागमित्र, अब केवल मेरा कुनबा और मेरे मित्र बचे हैं। खेल खत्म और मेंढक हजम।'
 
 
नाग ने फन फैलाया और फुफकारने लगा 'मेंढक, मैं अब कहीं नहीं जाने का। तू अब खाने का इंतजाम कर वर्ना हिस्स।'
 
नाग ने फन फैलाया और फुफकारने लगा 'मेंढक, मैं अब कहीं नहीं जाने का। तू अब खाने का इंतजाम कर वर्ना हिस्स।'
 
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गंगदत्त की बोलती बंद हो गई। उसने नाग को अपने मित्र खिलाए फिर उसके बेटे नाग के पेट में गए। गंगदत्त ने सोचा कि मैं और मेंढकी ज़िन्दा रहे तो बेटे और पैदा कर लेंगे। बेटे खाने के बाद नाग फुफकारा 'और खाना कहां हैं? गंगदत्त ने डरकर मेंढकी की ओर इशार किया। गंगदत्त ने स्वयं के मन को समझाया 'चलो बूढी मेंढकी से छुटकारा मिला। नई जवान मेंढकी से विवाह कर नया संसार बसाऊंगा।'
गंगदत्त की बोलती बंद हो गई। उसने नाग को अपने मित्र खिलाए फिर उसके बेटे नाग के पेट में गए। गंगदत्त ने सोचा कि मैं और मेंढकी जिन्दा रहे तो बेटे और पैदा कर लेंगे। बेटे खाने के बाद नाग फुफकारा 'और खाना कहां हैं? गंगदत्त ने डरकर मेंढकी की ओर इशार किया। गंगदत्त ने स्वयं के मन को समझाया 'चलो बूढी मेंढकी से छुटकारा मिला। नई जवान मेंढकी से विवाह कर नया संसार बसाऊंगा।'
 
 
 
 
मेंढकी को खाने के बाद नाग ने मुंह फाडा 'खाना।'
 
मेंढकी को खाने के बाद नाग ने मुंह फाडा 'खाना।'
 
 
गंगदत्त ने हाथ जोडे 'अब तो केवल मैं बचा हूं। तुम्हारा दोस्त गंगदत्त । अब लौट जाओ।'
 
गंगदत्त ने हाथ जोडे 'अब तो केवल मैं बचा हूं। तुम्हारा दोस्त गंगदत्त । अब लौट जाओ।'
 
 
नाग बोला 'तू कौन-सा मेरा मामा लगता हैं और उसे हडप गया।
 
नाग बोला 'तू कौन-सा मेरा मामा लगता हैं और उसे हडप गया।
  
'''सीखः''' -- अपनो से बदला लेने के लिए जो शत्रु का साथ लेता हैं उसका अंत निश्चित हैं।
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;सीख- अपनों से बदला लेने के लिए जो शत्रु का साथ लेता है उसका अंत निश्चित है।
 
 
 
 
  
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
<references/>
 
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==बाहरी कड़ियाँ==
 
 
 
==संबंधित लेख==
 
==संबंधित लेख==
 
{{पंचतंत्र की कहानियाँ}}
 
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05:16, 4 फ़रवरी 2021 के समय का अवतरण

झगडालू मेंढक पंचतंत्र की प्रसिद्ध कहानियों में से एक है जिसके रचयिता आचार्य विष्णु शर्मा हैं।

कहानी

          एक कुएं में बहुत से मेंढक रहते थे। उनके राजा का नाम था गंगदत्त। गंगदत्त बहुत झगडालू स्वभाव का था। आसपास दो तीन और भी कुएं थे। उनमें भी मेंढक रहते थे। हर कुएं के मेंढकों का अपना राजा था। हर राजा से किसी न किसी बात पर गंगदत्त का झगडा चलता ही रहता था। वह अपनी मूर्खता से कोई ग़लत काम करने लगता और बुद्धिमान मेंढक रोकने की कोशिश करता तो मौक़ा मिलते ही अपने पाले गुंडे मेंढकों से पिटवा देता। कुएं के मेंढकों में भीतर गंगदत्त के प्रति रोष बढता जा रहा था। घर में भी झगडों से चैन न था। अपनी हर मुसीबत के लिए दोष देता।
एक दिन गंगदत्त का पडौसी मेंढक राजा से खूब झगडा हुआ। खूब तू-तू मैं-मैं हुई। गंगदत्त ने अपने कुएं में आकर बताया कि पडौसी राजा ने उसका अपमान किया हैं। अपमान का बदला लेने के लिए उसने अपने मेंढकों को आदेश दिया कि पडौसी कुएं पर हमला करें। सब जानते थे कि झगडा गंगदत्त ने ही शुरू किया होगा।
कुछ स्याने मेंढकों तथा बुद्धिमानों ने एकजुट होकर एक स्वर में कहा 'राजन, पडौसी कुएं में हमसे दुगने मेंढक हैं। वे स्वस्थ व हमसे अधिक ताकतवर हैं। हम यह लडाई नहीं लडेंगे।'
गंगदत्त सन्न रह गया और बुरी तरह तिलमिला गया। मन ही मन में उसने ठान ली कि इन गद्दारों को भी सबक सिखाना होगा। गंगदत्त ने अपने बेटों को बुलाकर भडकाया 'बेटा, पडौसी राजा ने तुम्हारे पिताश्री का घोर अपमान किया हैं। जाओ, पडौसी राजा के बेटों की ऐसी पिटाई करो कि वे पानी मांगने लग जाएं।'
गंगदत्त के बेटे एक दूसरे का मुंह देखने लगे। आखिर बडे बेटे ने कहा 'पिताश्री, आपने कभी हमें टर्राने की इजाजत नहीं दी। टर्राने से ही मेंढकों में बल आता हैं, हौसला आता हैं और जोश आता हैं। आप ही बताइए कि बिना हौसले और जोश के हम किसी की क्या पिटाई कर पाएंगे?'
अब गंगदत्त सबसे चिढ गया। एक दिन वह कुढता और बडबडाता कुएं से बाहर निकल इधर-उधर घूमने लगा। उसे एक भयंकर नाग पास ही बने अपने बिल में घुसता नजर आया। उसकी आँखेंं चमकी। जब अपने दुश्मन बन गए हो तो दुश्मन को अपना बनाना चाहिए। यह सोच वह बिल के पास जाकर बोला 'नागदेव, मेरा प्रणाम।'
नागदेव फुफकारा 'अरे मेंढक मैं तुम्हारा बैरी हूं। तुम्हें खा जाता हूं और तू मेरे बिल के आगे आकर मुझे आवाज़ दे रहा हैं।
गंगदत्त टर्राया 'हे नाग, कभी-कभी शत्रुओं से ज़्यादा अपने दु:ख देने लगते हैं। मेरा अपनी जाति वालों और सगों ने इतना घोर अपमान किया हैं कि उन्हें सबक सिखाने के लिए मुझे तुम जैसे शत्रु के पास सहायता मांगने आना पडा हैं। तुम मेरी दोस्ती स्वीकार करो और मजे करो।'
नाग ने बिल से अपना सिर बाहर निकाला और बोला 'मजे, कैसे मजे?'
गंगदत्त ने कहा 'मैं तुम्हें इतने मेंढक खिलाऊंगा कि तुम मुटाते-मुटाते अजगर बन जाओगे।'
नाग ने शंका व्यक्त की 'पानी में मैं जा नहीं सकता। कैसे पकडूंगा मेंढक?'
गंगदत्त ने ताली बजाई 'नाग भाई, यहीं तो मेरी दोस्ती तुम्हारे काम आएगी। मैने पडौसी राजाओं के कुओं पर नजर रखने के लिए अपने जासूस मेडकों से गुप्त सुरंगें खुदवा रखी हैं। हर कुएं तक उनका रास्ता जाता हैं। सुरंगें जहां मिलती हैं। वहां एक कक्ष हैं। तुम वहां रहना और जिस-जिस मेंढक को खाने के लिए कहूं, उन्हें खाते जाना।'
नाग गंगदत्त से दोस्ती के लिए तैयार हो गया। क्योंकि उसमें उसका लाभ ही लाभ था। एक मूर्ख बदले की भावना में अंधे होकर अपनों को दुश्मन के पेट के हवाले करने को तैयार हो तो दुश्मन क्यों न इसका लाभ उठाए?
नाग गंगदत्त के साथ सुरंग कक्ष में जाकर बैठ गया। गंगदत्त ने पहले सारे पडौसी मेंढक राजाओं और उनकी प्रजाओं को खाने के लिए कहा। नाग कुछ सप्ताहों में सारे दूसरे कुओं के मेंढक सुरंगों के रास्ते जा-जाकर खा गया। जब सब समाप्त हो गए तो नाग गंगदत्त से बोला 'अब किसे खाऊं? जल्दी बता। चौबीस घंटे पेट फुल रखने की आदत पड गई हैं।'
गंगदत्त ने कहा 'अब मेरे कुएं के सभी स्यानों और बुद्धिमान मेंढकों को खाओ।'
वह खाए जा चुके तो प्रजा की बारी आई। गंगदत्त ने सोचा 'प्रजा की ऐसी तैसी। हर समय कुछ न कुछ शिकायत करती रहती हैं। उनको खाने के बाद नाग ने खाना मांगा तो गंगदत्त बोला 'नागमित्र, अब केवल मेरा कुनबा और मेरे मित्र बचे हैं। खेल खत्म और मेंढक हजम।'
नाग ने फन फैलाया और फुफकारने लगा 'मेंढक, मैं अब कहीं नहीं जाने का। तू अब खाने का इंतजाम कर वर्ना हिस्स।'
गंगदत्त की बोलती बंद हो गई। उसने नाग को अपने मित्र खिलाए फिर उसके बेटे नाग के पेट में गए। गंगदत्त ने सोचा कि मैं और मेंढकी ज़िन्दा रहे तो बेटे और पैदा कर लेंगे। बेटे खाने के बाद नाग फुफकारा 'और खाना कहां हैं? गंगदत्त ने डरकर मेंढकी की ओर इशार किया। गंगदत्त ने स्वयं के मन को समझाया 'चलो बूढी मेंढकी से छुटकारा मिला। नई जवान मेंढकी से विवाह कर नया संसार बसाऊंगा।'
मेंढकी को खाने के बाद नाग ने मुंह फाडा 'खाना।'
गंगदत्त ने हाथ जोडे 'अब तो केवल मैं बचा हूं। तुम्हारा दोस्त गंगदत्त । अब लौट जाओ।'
नाग बोला 'तू कौन-सा मेरा मामा लगता हैं और उसे हडप गया।

सीख- अपनों से बदला लेने के लिए जो शत्रु का साथ लेता है उसका अंत निश्चित है।

टीका टिप्पणी और संदर्भ

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