"गेरू" के अवतरणों में अंतर
भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
फ़ौज़िया ख़ान (चर्चा | योगदान) |
फ़ौज़िया ख़ान (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
− | + | *गेरू हल्की [[पीला रंग|पीली]] से लेकर गहरी [[लाल रंग|लाल]], [[भूरा रंग|भूरी]] या [[बैंगनी रंग|बैंगनी]] रंग की [[मिट्टी]] जो लोह ऑक्साइड से ढँकी रहती है। | |
+ | *यह दो प्रकार की होती है। एक का आधार चिकनी मिट्टी होती है तथा दूसरे का [[खड़िया]] मिश्रित मिट्टी। दोनों जातियों में से प्रथम का [[रंग]] अधिक शुद्ध तथा दर्शनीय होता है। | ||
+ | *कुछ प्रकार के गेरू पीस लेने पर ही काम में लाने योग्य हो जाते हें, किंतु अन्य को निस्तापित करना पड़ता है, जिससे उनके रंगों में परिवर्तन हो जाता है और तब वे काम के होते हैं। | ||
+ | *प्रसिद्ध गेरू, जिसको रोमन मृत्तिका कहते हैं, प्राकृतिक अवस्था में धूमिल रंग का होता है, किंतु निस्तापित करने पर यह कलाकारों को प्रिय, सुंदर भूरे रंग का हो जाता है। | ||
+ | *जिस गेरू में कार्बनिक पदार्थ अधिक होता है उसे निस्तापित करके वार्निश या तेल में मिलाने पर, शीघ्र सूखने का गुण बढ़ जाता है। | ||
+ | *बहुत सा गेरू कृत्रिम रीति से भी तैयार किया जाता है। | ||
+ | *गेरू का उपयोग [[सोना|सोने]] के [[आभूषण|आभूषणों]] पर ओप या चमक लाने तथा कपड़ा रँगने के विविध प्रकार के रंगों और तैल रंग तैयार करने में होता है।<ref>{{cite book | last = पांडेय | first = सुधाकर | title = हिन्दी विश्वकोश | edition = 1963 | publisher = नागरी प्रचारिणी सभा वाराणसी | location = भारतडिस्कवरी पुस्तकालय | language = [[हिन्दी]] | pages = पृष्ठ सं 473 | chapter = खण्ड 3 }}</ref> | ||
+ | |||
+ | {{प्रचार}} | ||
+ | {{लेख प्रगति|आधार= |प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }} | ||
+ | {{संदर्भ ग्रंथ}} | ||
+ | ==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ||
+ | <references/> | ||
+ | [[Category:नया पन्ना]] | ||
+ | __INDEX__ | ||
+ | [[Category:मिट्टी]] |
11:40, 19 नवम्बर 2011 का अवतरण
- गेरू हल्की पीली से लेकर गहरी लाल, भूरी या बैंगनी रंग की मिट्टी जो लोह ऑक्साइड से ढँकी रहती है।
- यह दो प्रकार की होती है। एक का आधार चिकनी मिट्टी होती है तथा दूसरे का खड़िया मिश्रित मिट्टी। दोनों जातियों में से प्रथम का रंग अधिक शुद्ध तथा दर्शनीय होता है।
- कुछ प्रकार के गेरू पीस लेने पर ही काम में लाने योग्य हो जाते हें, किंतु अन्य को निस्तापित करना पड़ता है, जिससे उनके रंगों में परिवर्तन हो जाता है और तब वे काम के होते हैं।
- प्रसिद्ध गेरू, जिसको रोमन मृत्तिका कहते हैं, प्राकृतिक अवस्था में धूमिल रंग का होता है, किंतु निस्तापित करने पर यह कलाकारों को प्रिय, सुंदर भूरे रंग का हो जाता है।
- जिस गेरू में कार्बनिक पदार्थ अधिक होता है उसे निस्तापित करके वार्निश या तेल में मिलाने पर, शीघ्र सूखने का गुण बढ़ जाता है।
- बहुत सा गेरू कृत्रिम रीति से भी तैयार किया जाता है।
- गेरू का उपयोग सोने के आभूषणों पर ओप या चमक लाने तथा कपड़ा रँगने के विविध प्रकार के रंगों और तैल रंग तैयार करने में होता है।[1]
|
|
|
|
|