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*[[अर्जुन]] ने अपनी दिग्विजय-यात्रा के प्रसंग में उत्तर-ऋषिकों से घोर युद्ध करने के पश्चात् उन पर विजय प्राप्त की थी। | *[[अर्जुन]] ने अपनी दिग्विजय-यात्रा के प्रसंग में उत्तर-ऋषिकों से घोर युद्ध करने के पश्चात् उन पर विजय प्राप्त की थी। | ||
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*कुछ विद्वान् '''ऋषिक''' को '''यूची''' का ही [[संस्कृत]] रूप समझते हैं। | *कुछ विद्वान् '''ऋषिक''' को '''यूची''' का ही [[संस्कृत]] रूप समझते हैं। | ||
− | *चीनी इतिहास में ई. सन् से पूर्व दूसरी शती में [[यूची कबीला|यूची जाति]] का अपने स्थान या आदि यूची प्रदेश से दक्षिण-पश्चिम की ओर प्रव्रजन करने का उल्लेख मिलता है। | + | *चीनी इतिहास में ई. सन् से पूर्व दूसरी शती में [[यूची कबीला|यूची जाति]] का अपने स्थान या आदि यूची प्रदेश से [[दक्षिण]]-[[पश्चिम]] की ओर प्रव्रजन करने का उल्लेख मिलता है। |
− | *कुशान इसी जाति से सम्बद्ध थे। | + | *'''कुशान''' इसी जाति से सम्बद्ध थे। |
− | *ऋषिकों की भाषा को आर्षी कहा जाता था। | + | *ऋषिकों की भाषा को '''आर्षी''' कहा जाता था। |
*सम्भव है रूसी और ऋषिक शब्दों में भी परस्पर सम्बन्ध हो।<ref>'ऋ' का वैदिक उच्चारण 'रु' था जो [[मराठी भाषा|मराठी]] आदि भाषाओं में आज भी प्रचलित है।</ref> | *सम्भव है रूसी और ऋषिक शब्दों में भी परस्पर सम्बन्ध हो।<ref>'ऋ' का वैदिक उच्चारण 'रु' था जो [[मराठी भाषा|मराठी]] आदि भाषाओं में आज भी प्रचलित है।</ref> | ||
08:27, 15 मई 2018 के समय का अवतरण
'लोहान् परमकाम्बोजानृषिकानुत्तरानपि,
सहितांस्तान् महाराज व्यजयत् पाकशासनि:।'[1]
- अर्जुन ने अपनी दिग्विजय-यात्रा के प्रसंग में उत्तर-ऋषिकों से घोर युद्ध करने के पश्चात् उन पर विजय प्राप्त की थी।
- संदर्भ से अनुमेय है कि उत्तर-ऋषिकों का देश वर्तमान सिन्क्यांग[2] में रहा होगा।
- कुछ विद्वान् ऋषिक को यूची का ही संस्कृत रूप समझते हैं।
- चीनी इतिहास में ई. सन् से पूर्व दूसरी शती में यूची जाति का अपने स्थान या आदि यूची प्रदेश से दक्षिण-पश्चिम की ओर प्रव्रजन करने का उल्लेख मिलता है।
- कुशान इसी जाति से सम्बद्ध थे।
- ऋषिकों की भाषा को आर्षी कहा जाता था।
- सम्भव है रूसी और ऋषिक शब्दों में भी परस्पर सम्बन्ध हो।[3]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ सभा पर्व महाभारत 27, 25
- ↑ चीनी तुर्किस्तान
- ↑ 'ऋ' का वैदिक उच्चारण 'रु' था जो मराठी आदि भाषाओं में आज भी प्रचलित है।