"ईशानवर्मा" के अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें
 
(4 सदस्यों द्वारा किये गये बीच के 8 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
{{incomplete}}
+
'''ईशानवर्मा''' [[कन्नौज]] के [[मौखरि वंश|मौखरि राजवंश]] का चौथा राजा था। उसके पहले के तीन राजा अधिकतर उत्तर युगीन मागध गुप्तों के सामंत नृपति रहे थे।
*ईशानवर्मा, [[कन्नौज]] के [[मौखरि वंश|मौखरि राजवंश]] का चौथा राजा था।
 
 
*ईशानवर्मा 554 ई. के आसपास राज्य करता था।  
 
*ईशानवर्मा 554 ई. के आसपास राज्य करता था।  
*उसने आंध्र और गौड़ राजाओं पर विजय प्राप्त की।
+
*ईशानवर्मन ने उत्तर गुप्तों का आधिपत्य कन्नौज से हटाकर अपनी स्वतंत्रता घोषित कर ली थी।
*महाराजाधिराज की पदवी धारण करने वाला यह मौखरि राजा था।   
+
*उसकी प्रशस्ति में लिखा है कि- "उसने आन्ध्रों को परास्त किया और गौड़ों को अपनी सीमा के भीतर रहने के लिए मजबूर कर दिया। इसमें संदेह नहीं कि यह प्रशस्ति मात्र प्रशस्ति है, क्योंकि ईशानवर्मन् के [[आन्ध्र वंश|आन्ध्रों]] अथवा [[गौड़]] राजा के संपर्क में आने की संभावना अत्यंत कम थी।
 +
*गौड़ों और मौखरियों के बीच तो स्वयं उत्तर कालीन [[गुप्त वंश|गुप्त]] ही थे, जिनके राजा [[कुमारगुप्त]] ने, जैसा कि उसके [[अभिलेख]] से विदित होता है, ईशानवर्मन को परास्त कर उसके राज्य का कुछ भाग छीन लिया था।<ref>औंकारनाथ उपाध्याय, हिन्दी विश्वकोश, खण्ड 2, पृष्ठ संख्या 38</ref>
 +
*महाराजाधिराज की पदवी धारण करने वाला यह मौखरि राजा था।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=हिन्दी विश्वकोश, खण्ड 2|लेखक= |अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक= नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी|संकलन= भारत डिस्कवरी पुस्तकालय|संपादन= |पृष्ठ संख्या=39 |url=}}</ref>  
  
{{लेख प्रगति
+
{{seealso|मौखरि वंश}}
|आधार=आधार1
+
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
|प्रारम्भिक=
+
<references/>
|माध्यमिक=
+
==संबंधित लेख==
|पूर्णता=
+
{{मौखरि वंश}}
|शोध=
+
[[Category:इतिहास कोश]]
}}
+
[[Category:मौखरि वंश]][[Category:हिन्दी विश्वकोश]]
 
 
[[Category:इतिहास_कोश]]
 
 
__INDEX__
 
__INDEX__

07:03, 30 जून 2018 के समय का अवतरण

ईशानवर्मा कन्नौज के मौखरि राजवंश का चौथा राजा था। उसके पहले के तीन राजा अधिकतर उत्तर युगीन मागध गुप्तों के सामंत नृपति रहे थे।

  • ईशानवर्मा 554 ई. के आसपास राज्य करता था।
  • ईशानवर्मन ने उत्तर गुप्तों का आधिपत्य कन्नौज से हटाकर अपनी स्वतंत्रता घोषित कर ली थी।
  • उसकी प्रशस्ति में लिखा है कि- "उसने आन्ध्रों को परास्त किया और गौड़ों को अपनी सीमा के भीतर रहने के लिए मजबूर कर दिया। इसमें संदेह नहीं कि यह प्रशस्ति मात्र प्रशस्ति है, क्योंकि ईशानवर्मन् के आन्ध्रों अथवा गौड़ राजा के संपर्क में आने की संभावना अत्यंत कम थी।
  • गौड़ों और मौखरियों के बीच तो स्वयं उत्तर कालीन गुप्त ही थे, जिनके राजा कुमारगुप्त ने, जैसा कि उसके अभिलेख से विदित होता है, ईशानवर्मन को परास्त कर उसके राज्य का कुछ भाग छीन लिया था।[1]
  • महाराजाधिराज की पदवी धारण करने वाला यह मौखरि राजा था।[2]

इन्हें भी देखें: मौखरि वंश

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. औंकारनाथ उपाध्याय, हिन्दी विश्वकोश, खण्ड 2, पृष्ठ संख्या 38
  2. हिन्दी विश्वकोश, खण्ड 2 |प्रकाशक: नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 39 |

संबंधित लेख