"अमरुशतक" के अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें
 
(एक अन्य सदस्य द्वारा किये गये बीच के 2 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
*8वीं शती विक्रमी का [[संस्कृत]]-काव्यग्रंथ जिसमें प्रेमियों की श्रृंगारिक अवस्थाओं और भावों का अनुपम चित्रण है।  
+
'''अमरूशतक''' 8वीं शती विक्रमी का [[संस्कृत]]-काव्यग्रंथ जिसमें प्रेमियों की श्रृंगारिक अवस्थाओं और भावों का अनुपम चित्रण है।  
*इसके रचयिता 'अमरु/ अमरुक' थे।
+
*इसके रचयिता महाकवि 'अमरु/ अमरुक' थे, इस ग्रंथ में इनके पद्यों का संग्रह है।
 +
*अमरूशतक नाम से शतक है, परंतु इसके पद्यों की संख्या एक सौ से कहीं अधिक है। सूक्तिसंग्रहों में अमरूक के नाम से निर्दिष्ट पद्यों को मिलाकर समस्त श्लोकों की संख्या 163 है।
 +
*इस शतक की प्रसिद्धि का कुछ परिचय इसकी [[विपुल]] टीकाओं से लग सकता है। इसके ऊपर दस व्याख्याओं की रचना विभिन्न शताब्दियों में की गई जिनमें अर्जुन वर्मदेव (13वीं सदी का पूर्वार्ध) की 'रसिक संजीवनी' अपनी विद्वत्ता तथा मार्मिकता के लिए प्रसिद्ध है।
 +
*[[आनंदवर्धन]] की सम्मति में अमरूक के [[मुक्तक]] इतने सरस तथा भावपूर्ण हैं, कि अल्पकाय होने पर भी वे प्रबंधकाव्य की समता रखते हैं।
 +
*[[संस्कृत]] के आलंकारिकों ने ध्वनिकाव्य के उदाहरण के लिए इसके बहुत से पद्य उद्धृत कर इनकी साहित्यिक सुषमा का परिचय दिया है।
 +
*अमरूक शब्दकवि नहीं हैं, प्रत्युत रसकवि हैं जिनका मुख्य लक्ष्य काव्य में [[रस]] का प्रचुर उन्मेष है।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=हिन्दी विश्वकोश, खण्ड 1|लेखक= |अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक= नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी|संकलन= भारत डिस्कवरी पुस्तकालय|संपादन= |पृष्ठ संख्या=202 |url=}}</ref>
 +
*अमरूशतक के पद्य [[श्रृंगार रस]] से पूर्ण हैं तथा प्रेम के जीते जागते चटकीले चित्र खींचने में विशेष समर्थ हैं। प्रेमी और प्रेमिकाओं की विभिन्न अवस्थाओं में विद्यमान श्रृंगारी मनोवृत्तियों का अतीव सूक्ष्म और मनोवैज्ञानिक विश्लेषण इन सरस श्लोकों की प्रधान विशिष्टता है। कहीं पति को परदेश जाने की तैयारी करते देखकर कामिनी की हृदयविह्वलता का चित्र है, तो कहीं पति के आगमन का समाचार सुनकर सुंदरी की हर्ष से छलकती हुई ऑखों और विकसित स्मित का रुचिक चित्रण हैं।
 +
*हिंदी के महाकवि [[बिहारी]] तथा [[पद्माकर]] ने अमरूक के अनेक पद्यों का सरस अनुवाद प्रस्तुत किया है।<ref>सं.ग्रं.-बलदेव उपाध्याय: संस्कृत साहित्य का इतिहास, काशी, पंचम सं. 1958; दासगुप्त तथा दे: हिस्ट्री ऑव क्लैसिकल लिटरेचर, कलकता, 1935।</ref>
 +
 
 +
 
 +
 
 +
 
 +
 
 +
 
 +
 
  
 
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
 
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
पंक्ति 10: पंक्ति 24:
 
==संबंधित लेख==
 
==संबंधित लेख==
 
[[Category:कवि]]
 
[[Category:कवि]]
[[Category:साहित्य_कोश]]
+
[[Category:साहित्य_कोश]][[Category:हिन्दी विश्वकोश]]
 
__INDEX__
 
__INDEX__

12:38, 30 मई 2018 के समय का अवतरण

अमरूशतक 8वीं शती विक्रमी का संस्कृत-काव्यग्रंथ जिसमें प्रेमियों की श्रृंगारिक अवस्थाओं और भावों का अनुपम चित्रण है।

  • इसके रचयिता महाकवि 'अमरु/ अमरुक' थे, इस ग्रंथ में इनके पद्यों का संग्रह है।
  • अमरूशतक नाम से शतक है, परंतु इसके पद्यों की संख्या एक सौ से कहीं अधिक है। सूक्तिसंग्रहों में अमरूक के नाम से निर्दिष्ट पद्यों को मिलाकर समस्त श्लोकों की संख्या 163 है।
  • इस शतक की प्रसिद्धि का कुछ परिचय इसकी विपुल टीकाओं से लग सकता है। इसके ऊपर दस व्याख्याओं की रचना विभिन्न शताब्दियों में की गई जिनमें अर्जुन वर्मदेव (13वीं सदी का पूर्वार्ध) की 'रसिक संजीवनी' अपनी विद्वत्ता तथा मार्मिकता के लिए प्रसिद्ध है।
  • आनंदवर्धन की सम्मति में अमरूक के मुक्तक इतने सरस तथा भावपूर्ण हैं, कि अल्पकाय होने पर भी वे प्रबंधकाव्य की समता रखते हैं।
  • संस्कृत के आलंकारिकों ने ध्वनिकाव्य के उदाहरण के लिए इसके बहुत से पद्य उद्धृत कर इनकी साहित्यिक सुषमा का परिचय दिया है।
  • अमरूक शब्दकवि नहीं हैं, प्रत्युत रसकवि हैं जिनका मुख्य लक्ष्य काव्य में रस का प्रचुर उन्मेष है।[1]
  • अमरूशतक के पद्य श्रृंगार रस से पूर्ण हैं तथा प्रेम के जीते जागते चटकीले चित्र खींचने में विशेष समर्थ हैं। प्रेमी और प्रेमिकाओं की विभिन्न अवस्थाओं में विद्यमान श्रृंगारी मनोवृत्तियों का अतीव सूक्ष्म और मनोवैज्ञानिक विश्लेषण इन सरस श्लोकों की प्रधान विशिष्टता है। कहीं पति को परदेश जाने की तैयारी करते देखकर कामिनी की हृदयविह्वलता का चित्र है, तो कहीं पति के आगमन का समाचार सुनकर सुंदरी की हर्ष से छलकती हुई ऑखों और विकसित स्मित का रुचिक चित्रण हैं।
  • हिंदी के महाकवि बिहारी तथा पद्माकर ने अमरूक के अनेक पद्यों का सरस अनुवाद प्रस्तुत किया है।[2]





पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. हिन्दी विश्वकोश, खण्ड 1 |प्रकाशक: नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 202 |
  2. सं.ग्रं.-बलदेव उपाध्याय: संस्कृत साहित्य का इतिहास, काशी, पंचम सं. 1958; दासगुप्त तथा दे: हिस्ट्री ऑव क्लैसिकल लिटरेचर, कलकता, 1935।

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख