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*[[विक्रमादित्य प्रथम]] की मृत्यु के बाद उसका पुत्र विनयादित्य [[वातापी कर्नाटक|वातापी साम्राज्य]] का स्वामी बना।
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*'''विनयादित्य''' (680 से 696 ई.), [[विक्रमादित्य प्रथम]] का पुत्र और राजसिंहासन का उत्तराधिकारी था।
 
*उसके समय में [[चालुक्य साम्राज्य]] की शक्ति अक्षुण्ण बनी रही।
 
*उसके समय में [[चालुक्य साम्राज्य]] की शक्ति अक्षुण्ण बनी रही।
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*अभिलेखों में इसका उल्लेख 'त्रैराज्यपल्लवपति' के रूप में किया गया है।
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*'जेजुरी ताम्रपत्र' के अनुसार- विनयादित्य ने अपने शासन के ग्यारहवें एवं चौदहवें वर्ष में [[पल्लव वंश|पल्लवों]], कलभों, [[मालव|मालवों]] एवं [[चोल वंश|चोलों]] पर विजय प्राप्त की थी।
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*मालवों कों जीतने के उपरान्त विनयादित्य ने 'सकलोत्तरपथनाथ' की उपाधि धारण की थी।
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*इसके अतिरिक्त उसने 'युद्धमल्ल', 'भट्टारक', 'महाराजाधिराज', 'राजाश्रय' आदि की उपाधियाँ धारण कीं।
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*'सिरसी लेख' में उसे 'सकलोन्तरापथनाथ', 'पलिध्वज', 'पंचमहाशब्द', 'पद्मरागमणि' आदि का प्राप्त कहा गया है।
  
 
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09:28, 15 फ़रवरी 2011 का अवतरण

  • विनयादित्य (680 से 696 ई.), विक्रमादित्य प्रथम का पुत्र और राजसिंहासन का उत्तराधिकारी था।
  • उसके समय में चालुक्य साम्राज्य की शक्ति अक्षुण्ण बनी रही।
  • अभिलेखों में इसका उल्लेख 'त्रैराज्यपल्लवपति' के रूप में किया गया है।
  • 'जेजुरी ताम्रपत्र' के अनुसार- विनयादित्य ने अपने शासन के ग्यारहवें एवं चौदहवें वर्ष में पल्लवों, कलभों, मालवों एवं चोलों पर विजय प्राप्त की थी।
  • मालवों कों जीतने के उपरान्त विनयादित्य ने 'सकलोत्तरपथनाथ' की उपाधि धारण की थी।
  • इसके अतिरिक्त उसने 'युद्धमल्ल', 'भट्टारक', 'महाराजाधिराज', 'राजाश्रय' आदि की उपाधियाँ धारण कीं।
  • 'सिरसी लेख' में उसे 'सकलोन्तरापथनाथ', 'पलिध्वज', 'पंचमहाशब्द', 'पद्मरागमणि' आदि का प्राप्त कहा गया है।


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