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* कलियुग में रहना है या सतयुग में: यह तो स्वयं चुनो, तुम्हारा युग तुम्हारे पास है।  ~ विनोबा  
 
* कलियुग में रहना है या सतयुग में: यह तो स्वयं चुनो, तुम्हारा युग तुम्हारे पास है।  ~ विनोबा  
 
* यश त्याग से मिलता है, धोखे से नहीं।  ~ प्रेमचंद
 
* यश त्याग से मिलता है, धोखे से नहीं।  ~ प्रेमचंद
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===कौन है स्थितिप्रज्ञ===
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* दुखों में जिसका मन उदास नहीं होता, सुखों में जिसकी आसक्ति नहीं होती तथा जो राग, भय व क्रोध से रहित होता है, वही स्थितिप्रज्ञ है।  ~ वेदव्यास
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* आत्मज्ञानी साधक को ऊंची या नीची किसी भी स्थिति में न हर्षित होना चाहिए, न कुपित।  ~ आचारांग
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* प्यार से विष भी पिला सकते हैं, लेकिन बलपूर्वक दूध पिलाना मुश्किल है।  ~ कुंदकूरि वीरेशलिंग पंतुलु
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* स्नेह शून्य सब वस्तुओं को अपने लिए मानते हैं। स्नेह संपन्न अपने शरीर को भी दूसरों का मानते हैं।  ~ तिरुवललुवर
  
 
===कायर दैव का भरोसा करता है===
 
===कायर दैव का भरोसा करता है===
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* प्रत्येक मनुष्य जिससे मैं मिलता हूं किसी न किसी रीति में मुझसे श्रेष्ठ होता है, इसलिए मैं उससे कुछ शिक्षा लेता हूं।  ~ एमर्सन  
 
* प्रत्येक मनुष्य जिससे मैं मिलता हूं किसी न किसी रीति में मुझसे श्रेष्ठ होता है, इसलिए मैं उससे कुछ शिक्षा लेता हूं।  ~ एमर्सन  
 
* गुण ही गुण को परखते हैं जैसे हीरे की परख जौहरी ही करते हैं।  ~ अज्ञात
 
* गुण ही गुण को परखते हैं जैसे हीरे की परख जौहरी ही करते हैं।  ~ अज्ञात
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===गूढ़ बातें दूसरों को न बताएं===
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* बुद्धिमान को चाहिए कि वह धन का नाश, मन का संताप, घर के दोष, किसी के द्वारा ठगा जाना और अमानित होना-इन बातों को किसी के समक्ष न कहे।  ~ चाणक्यनीति
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* ज्ञानी पुरुष का मन पहले प्रौढ़ होता है उसके पश्चात् शरीर, परन्तु मूर्ख का शरीर पहले प्रौढ़ अवस्था प्राप्त करता है और मस्तिष्क कभी भी परिपक्व नहीं होता।  ~ सुभाषित रत्नमाला
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* जो एक अपने को नमा लेता है-जीत लेता है, वह समग्र संसार को जीत लेता है।  ~ आचारांग
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* विद्वानों के मुख से सहसा बातें बाहर नहीं निकलतीं और यदि कहीं निकली तो हाथी के दांत की तरह कभी परावर्तित नहीं होतीं।  ~ भामिनी-विलास
  
 
===गुणों से गुरुता होती है===
 
===गुणों से गुरुता होती है===
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* गुणों से गुरुता होती है, न कि बाह्य आकार से।  ~ भारवि  
 
* गुणों से गुरुता होती है, न कि बाह्य आकार से।  ~ भारवि  
 
* गुणवान हो और गुणों का आदर भी करता हो -ऐसा सरल मनुष्य विरला ही होता है।  ~ मनुस्मृति
 
* गुणवान हो और गुणों का आदर भी करता हो -ऐसा सरल मनुष्य विरला ही होता है।  ~ मनुस्मृति
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===गुणी पुरुषों के संपर्क से मिलती है गुरुता===
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* जिसने शीतल एवं शुभ्र सज्जन-संगति रूपी गंगा में स्नान कर लिया उसको दान, तीर्थ तप तथा यज्ञ से क्या प्रयोजन?  ~ वाल्मीकि
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* गुणी पुरुषों के संपर्क से छोटा व्यक्ति भी गुरुता प्राप्त कर लेता है।  ~ क्षेमेंद्र
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* कांच भी कंचन का संग पा जाने पर मरकत मणि की शोभा प्राप्त कर लेता है। उसी प्रकार सज्जनों का साथ करने से मूर्ख भी विद्वान बन जाता है।  ~ नारायण पंडित
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* गंगा पाप का, चंद्रमा ताप का और कल्पवृक्ष दीनता के अभिशाप का अपहरण करता है, परंतु सत्संग पाप, ताप और दैन्य- तीनों का तत्काल नाश कर देता है।  ~ गर्गसंहिता
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* कोई भी वस्तु महान का आश्रय पाकर उत्कर्ष प्राप्त करती है।  ~ हर्ष
  
 
==घ==
 
==घ==
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* आपका कोई भी काम महत्वहीन हो सकता है पर महत्वपूर्ण यह है कि आप कुछ करें।  ~ महात्मा गांधी  
 
* आपका कोई भी काम महत्वहीन हो सकता है पर महत्वपूर्ण यह है कि आप कुछ करें।  ~ महात्मा गांधी  
 
* उड़ने की अपेक्षा जब हम झुकते हैं तब विवेक के अधिक निकट होते हैं।  ~ अज्ञात  
 
* उड़ने की अपेक्षा जब हम झुकते हैं तब विवेक के अधिक निकट होते हैं।  ~ अज्ञात  
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===जल से सींचने पर पेड़ बढ़ते हैं===
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* पानी में तेल, दुर्जन में गुप्त बात, सत्पात्र में दान और विद्वान व्यक्ति में शास्त्र का उपदेश थोड़ा भी हो, तो स्वयं फैल जाता।  ~ चाणक्यनीति
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* न शत्रु न शस्त्र, न अग्नि, न विष और न दारुण रोग ही मनुष्य को उतना संतप्त करते हैं। जितनी कड़वी वाणी।  ~ नीतिविदषाष्टिका
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* जल से सींचने पर पेड़ बढ़ते हैं, पत्थरों का ढेर नहीं। योग्य ही अपने अनुकूल आचरण पाकर पदार्थ बन जाता है।  ~ सुभाषितावलि
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* अर्थ से ही अर्थ उसी प्रकार प्राप्त किया जाता है जिस प्रकार हाथी से हाथी प्राप्त किएजाते हैं।  ~ कौटिल्य
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===जो शांति से सहन करता है, वही आहत होता है===
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* ईश्वर उससे संतुष्ट होता है जो सब धर्मों के उपदेशों को सुनता है, सभी देवताओं की उपासना करता है, जो ईर्ष्या से मुक्त है और क्रोध को जीत चुका है।  ~ विष्णुधर्मोत्तर पुराण
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* जो शांत भाव से सहन करता है, वही गंभीर रूप से आहत होता है।  ~ रवीन्द्रनाथ ठाकुर
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* दो व्यक्तियों के एक चित्त होने पर कोई कार्य असाध्य नहीं होता।  ~ सोमदेव
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* यदि तुम में सहनशक्ति हो तो तुम्हें किसी बात की कमी नहीं होगी।  ~ आदिभट्टल नारायणदासु
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* सहयोग प्रेम की सामान्य अभिव्यक्ति के अतिरिक्त कुछ नहीं है।  ~ रामतीर्थ
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===जीतता वह है जिसमें===
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* वाक्पटु, निरालस्य व निर्भीक व्यक्ति से विरोध करके कोई नहीं जीत सकता।  ~ तिरुवल्लुर
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* वह विजय महान होती है जो बिना रक्तपात के मिलती है।  ~ स्पेनी लोकोक्ति
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* जीतता वह है जिसमें शौर्य होता है, धैर्य होता है, साहस होता है, सत्व होता है, धर्म होता है।  ~ हजारीप्रसाद द्विवेदी
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* अक्रोध से क्रोध को जीतें, दुष्ट को भलाई से जीतें, कृपण को दान से जीतें, झूठ बोलने वाले को सत्य से जीतें।  ~ धम्मपद
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* विजय के लिए केवल एक सत्याग्रही ही काफी है।  ~ महात्मा गांधी
  
 
===ज्यादा कीमत नहीं तो कोई भी तजुर्बा अच्छा===
 
===ज्यादा कीमत नहीं तो कोई भी तजुर्बा अच्छा===

15:47, 18 अक्टूबर 2011 का अवतरण

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अनमोल वचन

अन्तर्दृष्टि

  • हाथ की शोभा दान से है। सिर की शोभा अपने से बड़ो को प्रणाम करने से है। मुख की शोभा सच बोलने से है। दोनों भुजाओं की शोभा युद्ध में वीरता दिखाने से है। हृदय की शोभा स्वच्छता से है। कान की शोभा शास्त्र के सुनने से है। यही ठाट बाट न होने पर भी सज्जनों के भूषण हैं। - चाणक्य
  • संकट के समय धैर्य, अभ्युदय के समय क्षमा अर्थात सब सहन करने की सामर्थ्य, सभा में अच्छा बोलना और युद्ध में वीरता शोभा देती है। - भतृहरि
  • किसी मनुष्य में जन साधारण से विशेष गुण या शक्ति का विकास देखकर उसके संबंध में जो एक स्थायी आनंद पद्बति हृदय में स्थापित हो जाती है उसे श्रद्धा कहते हैं। - रामचंद्र शुक्ल
  • शौर्य किसी में बाहर से पैदा नहीं किया जा सकता। वह तो मनुष्य के स्वभाव में होना चाहिए। - महात्मा गांधी

आलस्य पर विजय

  • जीवन को नियम के अधीन कर देना आलस्य पर विजय पाना और प्रमाद को सदा के लिए विदा कर देना है। - स्वामी अखंडानंद
  • जिज्ञासा बिना ज्ञान नहीं होता। दुख बिना सुख नहीं होता। - महात्मा गांधी
  • ईश्वर बड़े-बड़े साम्राज्यों से विमुख हो जाता है लेकिन छोटे-छोटे पुष्पों से कभी खिन्न नहीं होता। - रवींद्रनाथ टैगोर
  • जब शरीर में सात्विक रस रूपी मेघ बरसते हैं तब आयु रूपी नदी दिन-दिन बढ़ती जाती है। - संत ज्ञानेश्वर
  • मनुष्य की सबसे बड़ी महानता विपत्तियों को सह लेने में है। - अज्ञात

आलोचना एक भयानक चिंगारी है

  • समकालीन व्यक्ति गुण की अपेक्षा मनुष्य की प्रशंसा करते हैं, आने वाले समय में पीढ़ियां मनुष्य की अपेक्षा उसके गुणों का सम्मान किया करेंगी। - कोल्टन
  • गुण ग्राहकता और चापलूसी में अंतर है। गुण ग्राहकता सच्ची होती है और चापलूसी झूठी। गुणग्राहकता ह्रदय से निकलती है और चापलूसी दांतों से। एक नि:स्वार्थ होती है और दूसरी स्वार्थमय। एक की संसार में सर्वत्र प्रशंसा होती है और दूसरे की सर्वत्र निंदा। - डेल कारनेगी
  • आलोचना एक भयानक चिंगारी है-ऐसी चिंगारी, जो अहंकार रूपी बारूद के गोदाम में विस्फोट उत्पन्न कर सकती है और वह विस्फोट कभी-कभी मृत्यु को शीघ्र ले आता है। - डेल कारनेगी
  • जो मनुष्य दूसरे का उपकार करता है वह अपना भी उपकार न केवल परिणाम में अपितु उसी कर्म में करता है, क्योंकि अच्छा कर्म करने का भाव ही स्वयं उचित पुरस्कार है। - सेनेका
  • प्रसन्नता न हमारे अंदर है और न बाहर बल्कि यह ईश्वर के साथ हमारी एकता स्थापित करने वाला एक तत्व है। - पास्कल
  • गरीब वह नहीं है जिसके पास धन नहीं है बल्कि वह है जिसकी अभिलाषाएं बढ़ी हुई हैं। - डेनियल

अनर्थ अवसर की ताक में रहते हैं

  • अनर्थ अवसर की ताक में रहते हैं। - कालिदास
  • विपत्ति में पड़े हुए मनुष्यों का प्रिय करने वाले दुर्लभ होते हैं। - शूदक
  • जब विनाश का समय आता है, जब जीवन पर संकट आता है, तब प्राणी पास के पड़े हुए जाल और फंदे को भी नहीं देखता। - जातक
  • विपत्ति में प्रकृति बदल देना अच्छा है, पर अपने आश्रय के प्रतिकूल चेष्टा करना अच्छा नहीं। - अभिनंद
  • विपत्ति में ही लोगों की असल परीक्षा होती है, समृद्धि में नहीं। - अज्ञात

अहिंसा- तलवार की धार

  • अहिंसा का मार्ग तलवार की धार पर चलने जैसा है। जरा सी गफलत हुई कि नीचे आ गिरे। घोर अन्याय करने वाले पर भी गुस्सा न करें, बल्कि उसे प्रेम करें, उसका भला चाहें। लेकिन प्रेम करते हुए भी अन्याय के वश में न हो। - महात्मा गांधी
  • जिस भांति भौंरा फूलों की रक्षा करता हुआ मधु को ग्रहण करता है, उसी प्रकार मनुष्य को हिंसा न करते हुए अर्थों को ग्रहण करना चाहिए। - विदुर
  • हममें दया, प्रेम, त्याग ये सब प्रवृत्तियां मौजूद हैं। इन प्रवृत्तियों को विकसित करके अपने सत्य को और मानवता के सत्य को एकरूप कर देना, यही अहिंसा है। - भगवतीचरण वर्मा

आतंकवाद और गोलकीपर

  • आतंकवाद से लड़ना गोलकीपर के काम जैसा है। आप सैकड़ों शानदार बचाव कर लें लेकिन लोगों को सिर्फ वही शॉट याद रहता है, जो आपको छकाता हुआ गोल में जा पड़ा। ~ पॉल विल्किंसन
  • आतंकवाद किसी असंभव चीज को मांगने की कार्यनीति है, वह भी बंदूक की नोक पर। ~ क्रिस्टोफर हिचेंस
  • आतंकवाद का सबसे भयानक पहलू यह है कि अंतत: यह उन्हीं को नष्ट करता है, जो इस पर अमल करते हैं। इधर वे लोगों की जिंदगी की लौ बुझाने की कोशिश करते हैं, उधर उनके भीतर की रोशनी धीरे-धीरे लेकिन निश्चित रूप से मरती जाती है। ~ टेरी वेइट
  • किसी तथाकथित राजनीतिक उद्देश्य के लिए कोई जब निर्दोष लोगों की जान लेता है तो वह उद्देश्य ठीक उसी क्षण अनैतिक और अन्यायपूर्ण हो जाता है। ऐसे लोगों को किसी भी गंभीर चर्चा से तत्काल बाहर कर दिया जाना चाहिए। ~ रुडॉल्फ गिउलियानी

अमृत और मृत्यु दोनों शरीर में स्थित हैं

  • अमृत और मृत्यु दोनों इसी शरीर में स्थित हैं। मनुष्य मोह से मृत्यु को और सत्य से अमृत को प्राप्त होता है। ~ वेदव्यास
  • शिक्षा का सबसे बड़ा उद्देश्य आत्मनिर्भर बनाना है। ~ सैमुअल स्माइल्स
  • वही मनुष्य श्रेष्ठ है जो पराये को भी अपना बना ले। ~ विमल मित्र
  • मनुष्य में जो स्वाभाविक बल है, उसकी अभिव्यक्ति धर्म है। ~ विवेकानंद
  • वह विजय महान होती है जो बिना रक्तपात के मिलती है। ~ स्पेनी लोकोक्ति
  • साधु स्वाद के लिए भोजन न करे, जीवन यात्रा के निर्वाह के लिए करे। ~ उत्तराध्ययन

अतिथि से प्रेमपूर्वक बोलें

  • अविचारशील मनुष्य दुख को प्राप्त होते हैं। - ऋग्वेद
  • आत्म-विजय अनेक आत्मोत्सर्गों से भी श्रेष्ठतर है। - स्वामी रामतीर्थ
  • अनाथ बच्चों का हृदय उस चित्र की भांति होता है जिस पर एक बहुत ही साधारण परदा पड़ा हुआ हो। पवन का साधारण झकोरा भी उसे हटा देता है। - प्रेमचन्द्र
  • यदि कुछ न हो तो प्रेमपूर्वक बोलकर ही अतिथि का सत्कार करना चाहिए। - हितोपदेश
  • अपना केंद्र अपने से बाहर मत बनाओ, अन्यथा ठोकरें खाते रहोगे। - अज्ञात

आत्मविश्वास बढ़ाने का तरीका

  • आत्मविश्वास बढ़ाने का तरीका यह है कि तुम वह काम करो जिसे तुम करते हुए डरते हो। इस प्रकार ज्यों-ज्यों तुम्हें सफलता मिलती जाएगी तुम्हारा आत्मविश्वास बढ़ता जाएगा। - डेल कारनेगी
  • जो मनुष्य आत्मविश्वास से सुरक्षित है वह उन चिंताओं और आशंकाओं से मुक्त रहता है जिनसे दूसरे आदमी दबे रहते हैं। - स्वेट मार्डेन
  • आत्मविश्वास, आत्मज्ञान और आत्मसंयम-केवल यही तीन जीवन को परमसंपन्न बना देते हैं। - टेनीसन
  • जिस प्रकार दूसरों के अधिकार की प्रतिष्ठा करना मनुष्य का कर्त्तव्य है, उसी प्रकार अपने आत्मसम्मान की हिफाजत करना भी उसका फर्ज है। - स्पेंसर
  • केवल वही जीवन में उन्नति करता है, जिसका हृदय कोमल और मस्तिष्क तेज होता है और जिसके मन को शांति मिलती है। - रस्किन
  • जो मनुष्य दूसरे का उपकार करता है वह अपना भी उपकार न केवल परिणाम में बल्कि उसी कर्म में करता है क्योंकि अच्छा कर्म करने का भाव अपने आप में उचित पुरस्कार है। - सेनेका
  • शत्रु को उपहार देने योग्य सर्वोत्तम वस्तु है- क्षमा, विरोधी को सहनशीलता, मित्र को अपना हृदय, शिशु को उत्तम दृष्टांत, पिता को आदर और माता को ऐसा आचरण जिससे वह तुम पर गर्व करे, अपने को प्रतिष्ठा और सभी मनुष्य को उपकार। - वालफोर

आंदोलन समाज की सेहत के लक्षण

  • हर सुधार का कुछ न कुछ विरोध अनिवार्य है। परंतु विरोध और आंदोलन, एक सीमा तक, समाज में स्वास्थ्य के लक्षण होते हैं। - महात्मा गांधी
  • जो मनुष्य न किसी से द्वेष करता है, और न किसी चीज की अपेक्षा करता है, वह सदा ही संन्यासी समझने के योग्य है। - वेदव्यास
  • सच्ची संस्कृति मस्तिष्क, हृदय और हाथ का अनुशासन है। - शिवानंद
  • सच हजार ढंग से कहा जा सकता है, फिर भी उसका हर ढंग सच हो सकता है। - विवेकानंद
  • आप सभी मनुष्यों को बराबर नहीं कर सकते, लेकिन हम सबको कम से कम समान अवसर तो दे सकते हैं। - जवाहरलाल नेहरू

अध्यापक संस्कृति के माली

  • धूल स्वयं अपमान सहन कर लेती है और बदले में पुष्पों का उपहार देती है। - रवीन्द्र
  • शास्त्रों द्वारा नाना प्रकार के संशयों का निराकरण और परोक्ष विषयों का ज्ञान होता है। इसलिए शास्त्र सभी के नेत्ररूप हैं। इसीलिए कहा जाता है कि जिसे शास्त्रों का ज्ञान नहीं, वह एक प्रकार से अंधा है। - हितोपदेश
  • मनुष्य का अंत:करण उसके आकार, संकेत, गति, चेहरे की बनावट, बोलचाल तथा आंख और मुख के विकारों से मालूम पड़ जाता है। - पंचतंत्र
  • अज्ञानी होना मनुष्य का असाधारण अधिकार नहीं है, वरन अपने को अज्ञानी जानना ही उसका विशेष अधिकार है। - राधाकृष्णन
  • अध्यापक राष्ट्र की संस्कृति के चतुर माली होते हैं। वे संस्कारों की जड़ों में खाद देते हैं और अपने श्रम से उन्हें सींच-सींचकर महाप्राण शक्तियां बनाते हैं। - महर्षि अरविन्द

अपने अहंकार पर विजय पाना ही प्रभु की सेवा

  • अपने अहंकार पर विजय पाना ही प्रभु की सेवा है। - गांधी
  • प्रेम करने वाला पड़ोसी दूर रहने वाले भाई से कहीं उत्तम है। - चाणक्य
  • प्राप्त हुए धन का उपयोग करने में दो भूलें हुआ करती हैं, जिन्हें ध्यान में रखना चाहिए। अपात्र को धन देना और सुपात्र को धन न देना। - वेद व्यास
  • वैरी भी अद्भुत कार्य करने पर प्रशंसा के पात्र बन जाते हैं। - सोमेश्वर

आपदा जीवन को अंतर्दृष्टि देती है

  • जिसने विद्या पढ़ी और आचरण नहीं किया वह उसके समान है जिसने बैल जोता है और बीज नहीं बिखेरा। - शेख सादी
  • आपदा ही एक ऐसी वस्तु है, जो हमें अपने जीवन को गहराइयों में अंतर्दृष्टि प्रदान करती है। - विवेकानंद
  • मनुष्य जिस बात के सत्य होने को वरीयता देता है, उसी में विश्वास को भी वरीयता देता है। - बेकन
  • यदि दूसरों से अपने प्रतिकूल नहीं चाहते हो तो अपने मन को दूसरों के प्रतिकूल कामों से हटा लो। - अज्ञात

आचरण के अभाव में ज्ञान

  • आचरण के अभाव में ज्ञान नष्ट हो जाता है। ~ अज्ञात
  • मनुष्य दूसरे के जिस कर्म की निंदा करे उसको स्वयं भी न करे। जो दूसरे की निंदा करता है किंतु स्वयं उसी निंद्य कर्म में लगा रहता है, वह उपहास का पात्र होता है। ~ वेदव्यास
  • तुमने निंदायुक्त वचनों को उत्तम मानकर जो यहां कहा है उनसे कोई कार्य तो सिद्ध हुआ नहीं, केवल तुम्हारे स्वरूप का स्पष्टीकरण हो गया है। ~ कालिदास
  • पूर्णतया निंदित या पूर्णतया प्रशंसित पुरुष न था, न होगा, न आजकल है। ~ धम्मपद
  • जो अपने मत की प्रशंसा, दूसरों के मत की निंदा करने में ही अपना पांडित्य दिखाते हैं, वे एकांतवादी संसार-चक्र में ही भटकते रहते हैं। ~ सूत्रकृतांग

आघात सहन करे, वही संत

  • परोपकार संतों का स्वभाव होता है। वे वृक्ष के समान होते हैं जो अपने पत्तों, फूल-फल, छाल, जड़ और छाया से सबका उपकार करते हैं। - एकनाथ
  • संत संचय नहीं करता। प्रत्येक वस्तु को दूसरे की वस्तु समझते हुए दूसरों को देते हुए भी उसके स्वयं के पास उसका आधिक्य है। - लाओ-त्से
  • जो आघात सहन करता है, वहीं संत है। - तुकाराम
  • महात्माओं का क्रोध क्षण में ही शांत हो जाता है। पापी जन ही ऐसे हैं, जिसका कोप कल्पों तक भी दूर नहीं होता। - देवीभागवत

अहंकार पर विजय पाना ही प्रभु की सेवा

  • अपने अहंकार पर विजय पाना ही प्रभु की सेवा है। ~ गांधी
  • संसार में ऐसा कोई भी नहीं है जो नीति का जानकार न हो , परंतु उसके प्रयोग से लोग विहीन होते हैं। ~ कल्हण
  • नीच व्यक्ति किसी प्रशंसनीय पद पर पहुंचने के बाद सबसे पहले अपने स्वामी को ही मारने को दौड़ता है। ~ नारायण पंडित
  • खुद डरा हुआ व्यक्ति दूसरों को भी डरा देता है। ~ प्रश्नव्याकरणसूत्र
  • श्रेष्ठ व्यक्तियों का सम्मान करके उन्हें अपना बना लेना दुर्लभ पदार्थों से भी अधिक दुर्लभ है। ~ तिरुवल्लुवर
  • प्रेम करने वाला पड़ोसी दूर रहने वाले भाई से कहीं उत्तम है। ~ चाणक्य
  • प्राप्त हुए धन का उपयोग करने में दो भूलें हुआ करती हैं, जिन्हें ध्यान में रखना चाहिए। अपात्र को धन देना और सुपात्र को धन न देना। ~ वेद व्यास
  • बैरी भी अद्भुत कार्य करने पर प्रशंसा के पात्र बन जाते हैं। ~ सोमेश्वर

अशुद्ध साधनों का परिणाम अशुद्ध

  • श्रेष्ठ पुरुषों के मनोरथों को पूर्ण करने में श्रेष्ठ पुरुष ही समर्थ होते हैं। - अज्ञात
  • अशुद्ध साधनों का परिणाम अशुद्ध ही होता है। - गांधी
  • संतुष्ट मन वाले के लिए सदा सभी दिशाएं सुखमयी हैं। - भागवत
  • धनों में श्रद्धारूपी धन ही श्रेष्ठतम है। - अश्वघोष
  • जीवित होते हुए भी मृत के समान कौन है? जो पुरुषार्थहीन है। - शंकराचार्य

अगर तुम्हारे एक शब्द से भी किसी को पीड़ा पहुंचती

  • अगर तुम्हारे एक शब्द से भी किसी को पीड़ा पहुंचती है, तो तुम अपनी सब नेकी नष्ट हुई समझो। ~ तिरुवल्लुवर
  • कोई व्यक्ति सच्चाई, ईमानदारी तथा लोेक-हितकारिता के राजपथ पर दृढ़तापूर्वक रहे तो उसे कोई भी बुराई क्षति नहीं पहुंचा सकती। ~ हरिभाऊ उपाध्याय
  • जिसमें दया नहीं है, वह तो जीते जी ही मुर्दे के समान है। दूसरे का भला करने से ही अपना भला होता है। ~ अज्ञात

आचरण रहित विचार

  • आचरण रहित विचार कितने अच्छे क्यों न हों, उन्हें खोटे मोती की तरह समझना चाहिए। ~ महात्मा गांधी
  • विद्या के समान कोई नेत्र नहीं है। वेदव्यास
  • जो विद्या पुस्तक में रखी हो, मस्तिष्क में संचित हो और जो धन दूसरे के हाथ में चला गया हो, आवश्यकता पड़ने पर न वह विद्या ही काम आ सकती है और न वह धन ही। ~ चाणक्य
  • बिना अभ्यास के विद्या विष समान है। ~ अज्ञात

अतिथि से प्रेमपूर्वक बोलें

  • अविचारशील मनुष्य दुख को प्राप्त होते हैं। ~ ऋग्वेद
  • आत्म-विजय अनेक आत्मोत्सर्गों से भी श्रेष्ठतर है। ~ स्वामी रामतीर्थ
  • अनाथ बच्चों का हृदय उस चित्र की भांति होता है जिस पर एक बहुत ही साधारण परदा पड़ा हुआ हो। पवन का साधारण झकोरा भी उसे हटा देता है। ~ प्रेमचन्द्र
  • यदि कुछ न हो तो प्रेमपूर्वक बोलकर ही अतिथि का सत्कार करना चाहिए। ~ हितोपदेश
  • अपना केंद्र अपने से बाहर मत बनाओ, अन्यथा ठोकरें खाते रहोगे। ~ अज्ञात

अति से अमृत भी विष बन जाता है

  • अति से अमृत भी विष बन जाता है। ~ लोकोक्ति
  • अभावों में अभाव है- बुद्धि का अभाव। दूसरे अभावों को संसार अभाव नहीं मानता। ~ pतिरुवल्लुवर
  • अभिमान करना अज्ञानी का लक्षण है। ~ सूत्रकृतांग
  • बिना जाने हठ पूर्वक कार्य करने वाला अभिमानी विनाश को प्राप्त होता है। ~ सोमदेव

आशा समुद्र के समान

  • जब शरीर में सात्विक रस रूपी मेघ बरसते हैं तब आयु रूपी नदी दिनोंदिन बढ़ती जाती है। ~ संत ज्ञानेश्वर
  • संसार में ऐसा कोई नहीं हुआ है जो मनुष्य की आशाओं का पेट भर सके। पुरुष की आशा समुद्र के समान है, वह कभी भरती ही नहीं। ~ वेदव्यास
  • मैं ईश्वर से डरता हूं। ईश्वर के बाद मुख्यत: उससे डरता हूं जो ईश्वर से नहीं डरता। ~ शेख सादी
  • आनंद ही एक ऐसी वस्तु है जो आपके पास न होने पर आप दूसरों को बिना किसी असुविधा के दे सकते हैं। ~ कारमेन सिल्वा

उन्नति करने वाले पर ही आती है विपत्ति

  • जिसमें उन्नति कर सकने की क्षमता है, उसी पर विपत्तियां भी आती हैं। ~ वल्लभ देव
  • कभी-कभी समय के फेर से मित्र शत्रु बन जाता है और शत्रु भी मित्र हो जाता है, क्योंकि स्वार्थ बड़ा बलवान है। ~ वेदव्यास
  • आत्मवान संयमी पुरुषों को न तो विषयों में आसक्ति होती है और न वे विषयों के लिए युक्ति ही करते हैं। ~ अश्वघोष
  • बिना विनय के विजय नहीं टिकती। ~ लक्ष्मीनारायण मिश्र
  • किसी कार्य के लिए कला और विज्ञान ही पर्याप्त नहीं हैं, उसमें धैर्य की आवश्यकता भी पड़ती है। ~ गेटे
  • वैरी भी अद्भुत कार्य करने पर प्रशंसा के पात्र बन जाते हैं। ~ सोमेश्वर

उड़ने से बेहतर है झुकना

  • जिस प्रकार मैले दर्पण में सूरज का प्रतिबिंब नहीं पड़ता उसी प्रकार मलिन अंत:करण में ईश्वर के प्रकाश का प्रतिबिंब नहीं पड़ सकता। ~ रामकृष्ण परमहंस
  • आंख के अंधे को दुनिया नहीं दिखती, काम के अंधे को विवेक नहीं दिखता, मद के अंधे को अपने से श्रेष्ठ नहीं दिखता और स्वार्थी को कहीं भी दोष नहीं दिखता। ~ चाणक्य
  • आपका कोई भी काम महत्वहीन हो सकता है पर महत्वपूर्ण यह है कि आप कुछ करें। ~ महात्मा गांधी
  • उड़ने की अपेक्षा जब हम झुकते हैं तब विवेक के अधिक निकट होते हैं। ~ अज्ञात

ईश्वर जानता है, हमारे लिए क्या अच्छा है

  • धैर्य सर्वश्रेष्ठ प्रार्थना है। ~ भगवान बुद्ध
  • प्रार्थना आत्मशुद्धि का आह्वान है, यह विनम्रता को निमंत्रण देना है, यह मनुष्यों के दु:खों में भागीदार बनने की तैयारी है। ~ महात्मा गांधी
  • उसकी प्रार्थना सर्वोत्तम है, जिसका प्यार सर्वोत्तम है। ~ कॉलरिज
  • हमारी प्रार्थना सर्व-सामान्य की भलाई के लिए होनी चाहिए क्योंकि ईश्वर जानता है कि हमारे लिए क्या अच्छा है। ~ सुकरात

ईश्वर के सामने सिर झुकाने से क्या होगा

  • ईश्वर के सामने सिर झुकाने से क्या होगा, जब हृदय ही अशुद्ध हो। ~ गुरुनानक
  • विद्वान झगड़े में न पड़ें। व्यर्थ के वैर से अलग रहें। थोड़ी हानि सह लें। वैर से धन की प्राप्ति हो, तो भी उसे छोड़ दें। ~ विष्णु पुराण
  • धन्य वह है जो किसी बात की आशा नहीं करता क्योंकि उसे कभी निराश नहीं होना है। ~ अलेक्जेंडर पोप
  • विचारहीन लोग धर्मग्रंथों को उसी प्रकार बांचते रहते हैं, जिस प्रकार पिंजरे में तोता राम-राम की रट लगाता है। ~ लल्लेश्वरी
  • यह नहीं हो सकता कि मुर्गी का आधा हिस्सा पका लें और आधा हिस्सा अंडा देने के लिए छोड़ दें। ~ विशेषावश्यक भाष्यवृत्ति

ऐश्वर्य उपाधि में नहीं, उसकी चेतना में है

  • धर्म का कार्य मनुष्य के हृदय को विशाल बनाना है। ~ विनोबा भावे
  • धर्म का पालने करने पर जिस धन की प्राप्ति होती है, उससे बढ़कर कोई धन नहीं है। ~ वेदव्यास
  • ऐश्वर्य उपाधि में नहीं, बल्कि इस चेतना में है कि हम उसके योग्य हैं। ~ अरस्तू
  • लोगों के छिपे हुए ऐब जाहिर मत करो। इससे उनकी इज्जत जरूर घट जाएगी, मगर तुम्हारा तो एतबार ही उठ जाएगा। ~ शेख सादी
  • प्रतिभावान मनुष्य वह कार्य करते हैं जो किए बिना वह रह नहीं सकते। गुणी मनुष्य वह कार्य करते हैं जो वह कर सकते हैं। ~ ओवेन मेरिडेलओवेन मेरिडेल

कुल की प्रशंसा करने से क्या?

  • कुल की प्रशंसा करने से क्या? इस लोक में शील ही महानता का कारण है। - शूदक
  • शील की सदृशता पहले कभी न देखे हुए व्यक्ति को भी हृदय के समीप कर देती है। - बाणभट्ट
  • शील सज्जनों का सर्वोत्तम आभूषण है। - भर्तृहरि
  • उस स्वर्ण से भी क्या जहां चारित्र्य का खंडन हो? यदि मैं शील से विभूषित हूं तो मुझे और क्या चाहिए? - स्वयंभूदेव
  • शील के लिए सात्विक हृदय चाहिए। - रामचंद्र शुक्ल

क्रोधाग्नि कुटुंब को जला डालती है

  • तू निश्चित कर्म कर। कर्म न करने से कर्म करना श्रेष्ठ है और कर्म न करने से तेरे शरीर का निर्वाह होना भी कठिन हो जाएगा। - वृंद
  • अग्नि उसी को जलाती है जो उसके पास जाता है, लेकिन क्रोधाग्नि सारे कुटुंब को जला डालती है। - संत तिरुवल्लुवर
  • घृणा प्रेम से ही कम होती है, यही सर्वदा उसका स्वभाव रहा है। - धम्मपद
  • गुणों से मनुष्य साधु होता है और अवगुणों से असाधु। सद्गुणों को ग्रहण करो और दुर्गुणों को छोड़ दो। - भगवान महावीर
  • क्षमा में जो महत्ता है, जो औदार्य है, वह क्रोध और प्रतिकार में कहां? - सेठ गोविंददास

किसी की अधिक प्रशंसा करना उसे धोखा देना है

  • किसी की अधिक प्रशंसा करना उसे धोखा देना है। - जयशंकर प्रसाद
  • दूसरों को प्रसन्न रखने की कला स्वयं प्रसन्न होने में है। सौम्य होने का अर्थ है स्वयं से व दूसरों से संतुष्ट होना। - हैजलिट
  • सच्चा सौहार्द वह होता है जब पीठ पीछे प्रशंसा की जाए। - अज्ञात
  • दिल दे तो इस मिजाज का परवरदिगार दे/ जो रंज की घड़ी को खुशी में गुजार दे। - दाग देहलवी
  • सब कार्य प्रसन्नता से करने का प्रयत्न करो, परंतु प्रसन्नता कभी तुम्हारे कार्य का प्रेरक भाव न बनने पाए। - श्रीमां

क्रांति बैठे-ठालों का खेल नहीं है

  • जब आर्थिक परिवर्तन की प्रगति बहुत बढ़ जाती है, पर शासन तंत्र जैसा का तैसा बना रहता है, तब दोनों के बीच बहुत बड़ा अंतर आ जाता है। प्राय: यह अंतर एक आकस्मिक परिवर्तन से दूर होता है, जिसे क्रांति कहते हैं। - जवाहरलाल नेहरू
  • क्रांति का उदय सदा पीड़ितों के हृदय और त्रस्त अंत:करण में हुआ करता है। उसके पीछे कोई निहित स्वार्थ नहीं होता। - अज्ञात
  • क्रांतिकारी- उसकी नस नस में भगवान ने ऐसी आग जला दी है कि उन्हें चाहे जेल में ठूंस दो, चाहे सूली पर चढ़ा दो, कह न दिया कि पंचभूतों को सौंपने के सिवा और कोई सजा ही लागू नहीं होती। न तो इनमें दया है, न धर्म कर्म ही मानते हैं। - शरतचंद्र
  • क्रांति बैठे-ठालों का खेल नहीं है। वह नई सभ्यता को जन्म देती है। - प्रेमचंद

कौन धनी है, कौन निर्धन

  • अधिक संपन होने पर भी जो असंतुष्ट रहता है, वह सदा निर्धन है। धन से रहित होने पर भी जो संतुष्ट रहता है, वह सदा धनी है। - अश्वघोष
  • जिसकी अभिलाषाएं नहीं मरतीं, वह मरकर भी भटकते हैं। अभिलाषाओं से मुक्ति ही प्रभु में विलय है। - स्वामी हरिहर चैतन्य
  • जिस प्रकार फूल के रंग या गंध को बिना हानि पहुंचाए भौंरा रस को लेकर चल देता है, उसकी प्रकार मुनि ग्राम में विचरण करे। - इल्लीस जातक
  • दुनिया में रहते हुए भी सेवाभाव से और सेवा के लिए जो जीता है, वह संन्यासी है। - महात्मा गांधी
  • सत्य से सूर्य तपता है, सत्य से आग जलती है, सत्य से वायु बहती है, सब कुछ सत्य में ही प्रतिष्ठित है। - वेदव्यास (महाभारत)

कृतज्ञता हृदय की स्मृति है

  • कृतज्ञता हृदय की स्मृति है। - कहावत
  • कुल की प्रतिष्ठा भी नम्रता और सद्व्यवहार से होती है, हेकड़ी और रुखाई से नहीं। - प्रेमचंद
  • संसार में कर्म ही मुख्य है और कुलीनता कर्म पर ही निर्भर करती है। - गोविंद दास
  • काल सब प्राणियों के सिर पर है, इसलिए पहले कुशल-क्षेम पूछना चाहिए। - कालिदास

कलियुग में रहना है

  • याद पंख है, जो प्राण के परिंदे को जीवन के उच्चतर आकाश में उड़ने का पुरुषार्थ देती है। ~ अज्ञात
  • कलियुग में रहना है या सतयुग में: यह तो स्वयं चुनो, तुम्हारा युग तुम्हारे पास है। ~ विनोबा
  • यश त्याग से मिलता है, धोखे से नहीं। ~ प्रेमचंद

कौन है स्थितिप्रज्ञ

  • दुखों में जिसका मन उदास नहीं होता, सुखों में जिसकी आसक्ति नहीं होती तथा जो राग, भय व क्रोध से रहित होता है, वही स्थितिप्रज्ञ है। ~ वेदव्यास
  • आत्मज्ञानी साधक को ऊंची या नीची किसी भी स्थिति में न हर्षित होना चाहिए, न कुपित। ~ आचारांग
  • प्यार से विष भी पिला सकते हैं, लेकिन बलपूर्वक दूध पिलाना मुश्किल है। ~ कुंदकूरि वीरेशलिंग पंतुलु
  • स्नेह शून्य सब वस्तुओं को अपने लिए मानते हैं। स्नेह संपन्न अपने शरीर को भी दूसरों का मानते हैं। ~ तिरुवललुवर

कायर दैव का भरोसा करता है

  • लोगों को यह याद रखना चाहिए कि शांति ईश्वर प्रदत्त नहीं होती। यह वह भेंट है, जिसे मनुष्य एक - दूसरे को देते हैं। ~ एली वाइजेला
  • तुम में सर्वप्रिय बनने की इच्छा होनी चाहिए। ऐसा करो, जिससे सामान्य लोग तुम्हें पसंद करें। यदि तुम यह सोचते हो कि पीठे पीछे किसी मोमिन, यहूदी या ईसाई की बुराई करने से लोग तुम्हें भला मान लेंगे, तो तुम लोगों का मिजाज नहीं समझते। ~ उमर खैयाम
  • प्रेम करने वाला पड़ोसी दूर रहने वाले भाई से कहीं उत्तम है। ~ चाणक्य
  • तपस्या से लोगों को विस्मित न करे, यज्ञ करके असत्य न बोले। पीडि़त हो कर भी गुरु की निंदा न करे। और दान दे कर उसकी चर्चा न करे। ~ मनुस्मृति
  • जो कायर है, जिसमें पराक्रम का नाम नहीं है, वही दैव का भरोसा करता है। ~ वाल्मीकि

कार्य और सिद्धांत

  • कामना सागर की भांति अतृप्त है, ज्यों-ज्यों हम उसकी आवश्यक्ता पूरी करते हैं त्यों-त्यों उसका कोलाहल बढ़ता है। - स्वामी विवेकानंद
  • कुल की प्रतिष्ठा भी नम्रता और सद्व्यवहार से होती है। हेकड़ी और रुखाई से नहीं। - प्रेमचंद
  • बिना कार्य के सिद्धांत दिमागी ऐयाशी है, बिना सिद्बांत के कार्य अंधे की टटोल है। - जवाहर लाल नेहरू
  • शरीर निर्बल और रोगी रखने के समान दूसरा कोई पाप नहीं। - लोकमान्य तिलक

कटा हुआ वृक्ष भी बढ़ता है

  • कटा हुआ वृक्ष भी बढ़ता है। क्षीण हुआ चंद्रमा भी पुन: बढ़कर पूरा हो जाता है। इस बात को समझकर संत पुरुष अपनी विपत्ति में नहीं घबराते। - भर्तृहरि
  • अनर्थ भी अपने अवसर की ताक में रहते हैं। - कालिदास
  • विपत्ति में पड़े हुए मनुष्य का प्रिय करने वाले दुर्लभ होते हैं। - शूद्रक
  • जो विपत्ति पड़ने पर कभी दुखी नहीं होता, बल्कि सावधानी के साथ उद्योग का आश्रय लेता है तथा समय आने पर दुख भी सह लेता है, उसके शत्रु पराजित ही हैं। - वेदव्यास

करुणा के नेत्र खुल जाएं तो

  • जब करुणा के नेत्र खुल जाते हैं तो व्यक्ति अपने को दूसरों में और दूसरों को अपने में देख सकने में समर्थ हो जाता है। ~ राजगोपालाचारी
  • वैर लेना या करना मनुष्य का कर्तव्य नहीं है- उसका कर्तव्य क्षमा है। ~ महात्मा गांधी
  • कर्म ही मनुष्य के जीवन को पवित्र और अहिंसक बनाता है। ~ विनोबा
  • कृतज्ञता हृदय की स्मृति है। ~ अंग्रेजी कहावत
  • क्रोध से मूढ़ता उत्पन्न होती है, मूढ़ता से स्मृति भ्रांत हो जाती है, स्मृति भ्रांत होने से बुद्धि का नाश हो जाता है, और बुद्धि नष्ट होने पर प्राणी स्वयं नष्ट हो जाता है। ~ भागवत गीता

करुणा में शीतल अग्नि होती है

  • करुणा में शीतल अग्नि होती है जो क्रूर से क्रूर व्यक्ति का हृदय भी आर्द्र कर देती है। ~ सुदर्शन
  • कर्म वह आईना है जो हमारा स्वरूप हमें दिखा देता है। अत: हमें कर्म का एहसानमंद होना चाहिए। ~ विनोबा
  • इस धरती पर कर्म करते-करते सौ साल तक जीने की इच्छा रखो, क्योंकि कर्म करनेवाला ही जीने का अधिकारी है। जो कर्म-निष्ठा छोड़कर भोग-वृत्ति रखता है, वह मृत्यु का अधिकारी बनता है। ~ वेद
  • निष्काम कर्म ईश्वर को ऋणी बना देता है और ईश्वर उसको सूद सहित वापस करने के लिए बाध्य हो जाता है। ~ स्वामी रामतीर्थ

कष्ट हृदय की कसौटी है

  • कष्ट हृदय की कसौटी है। ~ जयशंकर प्रसाद
  • कृतज्ञता हृदय की स्मृति है। ~ अंग्रेजी कहावत
  • कृतज्ञता एक कर्त्तव्य है जिसे लौटाना चाहिए किंतु जिसे पाने का किसी को अधिकार नहीं है। ~ रूसो
  • कीर्ति वीरोचित कार्यों की सुगंध है। ~ सुकरात
  • मनुष्य के संपूर्ण कार्य उसकी इच्छा के प्रतिबिंब होते हैं। ~ अज्ञात

कर्म को बोओ और आदत की फसल काटो

  • अनुभूति अपनी सीमा में जितनी सबल है, उतनी बुद्धि नहीं। हमारे स्वयं जलने की हलकी अनुभूति भी दूसरे के राख हो जाने के ज्ञान से अधिक स्थायी रहती है। ~ महादेवी वर्मा
  • व्यथा और वेदना की पाठशाला में जो पाठ सीखे जाते हैं, वे पुस्तकों तथा विश्वविद्यालयों में नहीं मिलते। ~ अज्ञात
  • कर्म को बोओ और आदत की फसल काटो। आदत को बोओ और चरित्र की फसल काटो। चरित्र को बोकर भाग्य की फसल काटो। ~ बोर्डमैन
  • दुर्बल चरित्रवाला उस सरकंडे के समान है जो हवा के हर झोंकें से झुक जाता है। ~ माघ

खुद को समझो

  • विश्वास करना एक गुण है। अविश्वास दुर्बलता की जननी है। - महात्मा गांधी
  • निरहंकारिता से सेवा की कीमत बढ़ती है और अहंकार से घटती है। - विनोबा
  • आंखों में मनुष्य की आत्मा का प्रतिबिम्ब होता है। - अज्ञात
  • यदि पुरुष के जीवन-विकास में स्त्री का आकर्षण विनाशकारी होता तो प्रकृति यह आकर्षण पैदा ही क्यों करती। - यशपाल
  • जिसने अपने को समझ लिया वह दूसरों को समझाने नहीं जाएगा। - धम्मपदं

खट्टा सत्य मधुर असत्य से अधिक अच्छा है

  • खट्टा सत्य मधुर असत्य से अधिक अच्छा है। - शिवानंद
  • सत्य सदा का है, सत्य का अतीत और वर्तमान नहीं होता। - विमल मित्र
  • सत्य किसी व्यक्ति विशेष की संपत्ति नहीं है। - रामतीर्थ
  • सत्य का सबसे बड़ा मित्र समय है। उसका सबसे बड़ा शत्रु पूर्वाग्रह है और उसका स्थायी साथी विनम्रता है। - चार्ल्स कैलब काल्टन
  • सत्य बहुधा लोक में अप्रिय होता है। - एडलाइ स्टीवेंसन

गोत्र और धन से शुद्धता नहीं

  • कर्म, विद्या, धर्म, शील और उत्तम जीवन- इनसे ही मनुष्य शुद्ध होते हैं, गोत्र और धन नहीं। - मज्झिमनिकाय
  • शील अपरिमित बल है। शील सर्वोत्तम शस्त्र है। शील श्रेष्ठ आभूषण है और रक्षा करने वाला अद्भुत कवच है। - थेर गाथा
  • लज्जा और संकोच होने पर ही शील उत्पन्न होता और ठहरता है। - विसुद्धिमग्ग
  • विप्रों का आभूषण विद्या है, पृथ्वी का आभूषण राजा है, आकाश का आभूषण चंद्रमा है, शील सबका आभूषण है। - बृहस्पतिनीतिसार
  • जैसा मनुष्य के लिए सौजन्य रूपी अलंकार है, वैसा न तो आभूषण है, न राज्य, न पैरुष, न विद्या और न धन। - शुक्रनीति

गुण ही गुण को परखते हैं

  • जिस गुण का दूसरे लोग वर्णन करते हैं उससे निर्गुण भी गुणवान होता है। ~ चाणक्य
  • महान की उपासना करना स्वयं महान होने के बराबर है। ~ मैडम नेकर
  • प्रत्येक मनुष्य जिससे मैं मिलता हूं किसी न किसी रीति में मुझसे श्रेष्ठ होता है, इसलिए मैं उससे कुछ शिक्षा लेता हूं। ~ एमर्सन
  • गुण ही गुण को परखते हैं जैसे हीरे की परख जौहरी ही करते हैं। ~ अज्ञात

गूढ़ बातें दूसरों को न बताएं

  • बुद्धिमान को चाहिए कि वह धन का नाश, मन का संताप, घर के दोष, किसी के द्वारा ठगा जाना और अमानित होना-इन बातों को किसी के समक्ष न कहे। ~ चाणक्यनीति
  • ज्ञानी पुरुष का मन पहले प्रौढ़ होता है उसके पश्चात् शरीर, परन्तु मूर्ख का शरीर पहले प्रौढ़ अवस्था प्राप्त करता है और मस्तिष्क कभी भी परिपक्व नहीं होता। ~ सुभाषित रत्नमाला
  • जो एक अपने को नमा लेता है-जीत लेता है, वह समग्र संसार को जीत लेता है। ~ आचारांग
  • विद्वानों के मुख से सहसा बातें बाहर नहीं निकलतीं और यदि कहीं निकली तो हाथी के दांत की तरह कभी परावर्तित नहीं होतीं। ~ भामिनी-विलास

गुणों से गुरुता होती है

  • रथचक्र की अरों के समान मनुष्य के जीवन की दशा ऊपर-नीचे हुआ करती है। कभी के दिन बड़े कभी की रात। ~ कालिदास
  • उपकार के बदले में उपकार चाहने वाले मनुष्य को विपत्ति के रूप में फल मिलता है। ~ भास
  • स्वयं अपने गुणों का बखान करने से इंद्र भी छोटा हो जाता है। ~ चाणक्य
  • गुणों से गुरुता होती है, न कि बाह्य आकार से। ~ भारवि
  • गुणवान हो और गुणों का आदर भी करता हो -ऐसा सरल मनुष्य विरला ही होता है। ~ मनुस्मृति

गुणी पुरुषों के संपर्क से मिलती है गुरुता

  • जिसने शीतल एवं शुभ्र सज्जन-संगति रूपी गंगा में स्नान कर लिया उसको दान, तीर्थ तप तथा यज्ञ से क्या प्रयोजन? ~ वाल्मीकि
  • गुणी पुरुषों के संपर्क से छोटा व्यक्ति भी गुरुता प्राप्त कर लेता है। ~ क्षेमेंद्र
  • कांच भी कंचन का संग पा जाने पर मरकत मणि की शोभा प्राप्त कर लेता है। उसी प्रकार सज्जनों का साथ करने से मूर्ख भी विद्वान बन जाता है। ~ नारायण पंडित
  • गंगा पाप का, चंद्रमा ताप का और कल्पवृक्ष दीनता के अभिशाप का अपहरण करता है, परंतु सत्संग पाप, ताप और दैन्य- तीनों का तत्काल नाश कर देता है। ~ गर्गसंहिता
  • कोई भी वस्तु महान का आश्रय पाकर उत्कर्ष प्राप्त करती है। ~ हर्ष

घृणा प्रेम से ही कम होती है

  • गुण की पूजा सर्वत्र होती है, बड़ी संपत्ति की नहीं, जिस प्रकार पूर्ण चंद्रमा वैसा वंदनीय नहीं है जैसा निर्दोष द्वितीया का क्षीण चंद्रमा। ~ चाणक्य
  • जो अपनी ही आत्मा द्वारा अपनी आत्मा को जानकर राग और द्वेष में समभाव रखता है, वह पूज्य है। ~ भगवान महावीर
  • इस संसार में घृणा घृणा से भी कभी कम नहीं, घृणा प्रेम से ही कम होती है, यही सर्वदा उसका स्वभाव रहा है। ~ धम्मपद
  • हम अपने बारे में जो दृढ़ चिंतन करते हैं, जिन विचारों में संलग्न रहते हैं क्रमश: वैसे ही बनते जाते हैं। ~ अज्ञात

चापलूसी का जहरीला प्याला

  • चापलूसी का जहरीला प्याला आपको तब तक नुकसान नहीं पहुंचा सकता, जब तक कि आपके कान उसे अमृत समझकर पी न जाएं। - प्रेमचंद
  • मीठी बातें तो वह करता है जिसका कुछ स्वार्थ होता है, जो डरता है, जो प्रशंसा अथवा मान का भूखा रहता है। - हरिऔध
  • घाव पर कपड़ा भी छुरी बनकर लगता है। दुखे हुए अंग को हवा भी दुखा देती है। - सुदर्शन
  • भली स्त्री से घर की रक्षा होती है। - चाणक्य

चैंपियन कौन?

  • चैंपियन वह है जो तब भी उठ खड़ा हो, जब वह उठ ही न सकता हो। - जैक डेंपसी
  • खेलों की रचना चैंपियन को गौरव देने के लिए की गई। - पिएर द कु बर्तिन
  • मेरे ख्याल से किसी को चैंपियन बनाने में सबसे बड़ी भूमिका आत्मबोध की होती है। - बिली जीन किंग
  • एक चैंपियन को जीत से ऊपर और उसके पार जाने वाली किसी और प्रेरणा की आवश्यकता होती है। - पैट रिले
  • हर भदेसपन को अपने बचाव के लिए एक चैंपियन की जरूरत पड़ती है, क्योंकि गलती हमेशा बातूनी होती है। - ओलिवर गोल्डस्मिथ

चापलूसी कब आती है

  • मनुष्य के अंतरंग का श्रृंगार है चातुर्य, वस्त्र तो केवल बाहरी सजावट है। - गुरु रामदास
  • जब निष्कपट व्यवहार को दरवाजे से बाहर ढकेल दिया जाता है तो चापलूसी बैठक में आ जाती है। - कहावत
  • चरित्र बल पर ही मनुष्य दैनिक कार्य, प्रलोभन और परीक्षा के संसार में दृढ़तापूर्वक स्थिर रहते हैं और वास्तविक जीवन की क्रमिक क्षीणता को सहन करने योग्य होते हैं। - स्माइल्स
  • चरित्र परिवर्तित नहीं होता, विचार परिवर्तित होते हैं, किंतु चरित्र विकसित किया जा सकता है। - डिजराइली

चिंता शहद की मक्खी

  • चिंता शहद की मक्खी के समान है। इसे जितना हटाओ उतना ही और चिमटती है। - सुदर्शन
  • यदि तुम्हारा स्वभाव है तो चिंता करके कष्टों का आह्वान कर लो परंतु उसे अपने पड़ोसी को उधार मत दो। - रुडयार्ड किप्लिंग
  • आलसी आदमी ही चिंताग्रस्त रहा करता है। वह आलस्य चाहे शारीरिक कष्ट से बचने के लिए हो या मानसिक। - अज्ञात
  • प्राणियों के लिए चिंता ही ज्वर है। - स्वामी शंकराचार्य

चतुराई बहुत बुरी चीज है

  • जहां स्थूल जीवन का स्वार्थ समाप्त होता है, वहीं मनुष्यता प्रारंभ होती है। ~ हजारी प्रसाद द्विवेदी
  • प्रेम के मार्ग में चतुराई बहुत बुरी चीज है। ~ मौलाना रूम
  • जो मनुष्य इसी जन्म में मुक्ति प्राप्त करना चाहता है, उसे एक ही जन्म में हजारों वर्ष का काम करना पड़ता है। ~ विवेकानंद

चले चलो, चले चलो

  • बैठने वाले का भाग्य भी बैठ जाता है और खड़े होने वाले का भाग्य भी खड़ा हो जाता है। इसी प्रकार सोने वाले का भाग्य भी सो जाता है और पुरुषार्थी का भाग्य भी गतिशील हो जाता है। इसलिए चले चलो, चले चलो। ~ वेदवाणी
  • जैसे कच्ची छत में जल भरता है, वैसे ही अज्ञानी के मन में कामनाएं जमा होती हैं। ~ गौतम बुद्ध
  • अपने अज्ञान का आभाष होना ही ज्ञान की तरफ एक बड़ा कदम है। ~ डिजराइली
  • ज्ञान अभिमानी होता है। मानो उसने बहुत कुछ सीख लिया है। बुद्धि विनीत होती है। मानो अभी वह कुछ जानती ही नहीं। ~ काउपर

जन के ऊपर कुछ नहीं

  • अत्याचारी के न्याय विवेक पर भरोसा करना राजनीति के विरुद्ध है। इतिहास इसका ज्वलंत प्रमाण है। - हिंदू पंच, बलिदान अंक
  • पापी की परिभाषा व्यक्ति के आचरण पर निर्भर करती है। अत्याचार करने वाले से सहने वाला अधिक पापी है। - कंचनलता सब्बरवाल
  • अन्यायी और अत्याचारी की करतूतें मनुष्यता के नाम खुली चुनौती हैं जिन्हें वीरों को स्वीकार करना ही चाहिए। - श्रीराम शर्मा आचार्य
  • प्रशासन की जन के प्रति दुर्भावना भी एक प्रकार का अत्याचार ही है। जनतंत्र में जन से ऊपर कुछ नहीं। - भगवतीचरण वर्मा

जागरण का अर्थ

  • जागरण का अर्थ है कर्मक्षेत्र में अवतीर्ण होना और कर्मक्षेत्र क्या है? जीवन का संग्राम। - जयशंकर प्रसाद
  • जगद्गुरु कौन होता है? जो सब में बिना किसी भेदभाव के अपने सद्भाव और आनंद भाव का प्रकार करे। उसके लिए सब अपने हैं। सब कुछ अपना स्वरूप है। - स्वामी अखंडानंद
  • दुनिया का अस्तित्व शस्त्रबल पर नहीं, बल्कि सत्य, दया और आत्मबल पर है। - महात्मा गांधी
  • दुख में अपने स्वजनों को देखते ही दुख उसी प्रकार बढ़ जाता है, जैसे रुकी वस्तु को बाहर निकलने के लिए बड़ा द्वार मिल जाए। - कालिदास

जवानी में नासमझी की काफी गुंजाइश

  • यह सच है और सभी जानते हैं कि जैसे बुढ़ापे में बुद्धिमानी होती है, वैसे ही जवानी में नासमझी की काफी गुंजाइश रहती है। - रमण
  • जवानी जोश है, बल है, साहस है, दया है, आत्मविश्वास है, गौरव है और वह सब कुछ है जो जीवन को पवित्र, उज्जवल और पूर्ण बना देता है। - प्रेमचन्द
  • यौवन, जीवन, मन, शरीर की छाया, धन और स्वामित्व, ये चंचल हैं। ये स्थिर होकर नहीं रहते। - अज्ञात
  • नदी की बाढ़, वृक्षों के फूल, चंद्रमा की कलाएं नष्ट होकर फिर से आ सकती हैं, लेकिन जवानी लौटकर नहीं आती। - रामानंद

जिसके पास बुद्धि है, उसी के पास बल है

  • जिसकी बुद्धि नष्ट हो जाती है, वह मनुष्य सदा पाप ही करता रहता है। पुन:-पुन: किया हुआ पुण्य बुद्धि को बढ़ाता है। - वेदव्यास
  • आकाश, पृथ्वी, दिशाएं, जल, तेज और काल - ये जिनके रूप हैं, उस महेश्वर को नमस्कार है। - शिवपुराण
  • जिसके पास बुद्धि है, उसी के पास बल है, बुद्धिहीन में बल कहां। - विष्णु शर्मा
  • जब तक तुम्हारे पास कुछ कथनीय न हो, तब तक किसी भी प्रकार से किसी से भी कुछ न कहो। - कार्लाइल
  • शिक्षा का सबसे बड़ा उद्देश्य आत्मनिर्भर बनाना है। - सैमुअल स्माइल्स

जहां धर्म है वहां जय है

  • विजयाभिलाषी जब तक जीवित रहता है तब तक बुद्धिमानों के उपदेश का पात्र होता है। - भट्टनारायण
  • जहां कृष्ण हैं वहां धर्म है, और जहां धर्म है वहां जय है। - वेदव्यास
  • धर्म का दान हमारे सारे दानों को जीत लेता है। धर्म रस सारे रसों को जीत लेता है। धर्म में प्रेम सारे प्रेमों को जीत लेता है। - धम्मपद
  • जिसमें यह चार परम श्रेष्ठ गुण नहीं हैं- सत्य, धर्म, धृति और त्याग, वह शत्रु को नहीं जीत सकता। - जातक
  • जीतता वह है जिसमें शौर्य होता है, धैर्य होता है, साहस होता है, सत्व होता है, धर्म होता है। - हजारीप्रसाद द्विवेदी

जहां स्वार्थ, वहां प्रेम नहीं

  • प्रेम कभी अपने को नहीं पहचानता। दूसरे के लिए सदा उन्मत्त रहता है। स्वार्थपरता और प्रेम परस्पर विरोधी हैं। जहां स्वार्थपरता है, वहां प्रेम नहीं है। ~ अश्विनीकुमार दत्त
  • प्रेम एक बीज है, जो एक बार जमकर फिर बड़ी मुश्किल से उखड़ता है। ~ प्रेमचंद
  • प्रेम से भरा हृदय अपने प्रेम पात्र की भूल पर दया करता है और खुद घायल हो जाने पर भी उससे प्यार करता है। ~ महात्मा गांधी
  • प्रेम में स्मृति का ही सुख है। एक टीस उठती है, वही तो प्रेम का प्राण है। ~ जयशंकर प्रसाद

जिसके पास भगवद्-भक्ति, वही धनी

  • जिसके पास भगवद्-भक्ति, भगवद्-प्रेम है - वही इस संसार में धनी है। ऐसे व्यक्ति के समक्ष महाराजाधिराज भी दीन भिक्षुक के समान है। - सुभाषचंद वसु
  • अत्यंत लोभी का धन तथा अधिक आसक्ति रखनेवाले का काम- ये दोनों ही धर्म को हानि पहुंचाते हैं। - वेदव्यास
  • बिना दंभ के जो किया जाता है, वही धर्म है। - गरुड़पुराण
  • यदि धर्म लोक के विरुद्ध हो तो वह सुखकारी नहीं हो सकता। - देवीभागवत
  • भिक्षुओं! बेड़े की भांति पार जाने के लिए तुम्हें धर्म का उपदेश किया है, पकड़ कर रखने के लिए नहीं। - मज्झिमनिकाय

जिसके मन में कभी क्रोध नहीं होता

  • जिसके मन में कभी क्रोध नहीं होता और जिसके हृदय में रात-दिन राम बसते हैं, वह भक्त भगवान के समान ही है। - रैदास
  • सच्चे ईश्वरभक्त की भक्ति किसी भी लोक-परलोक की कामना के लिए नहीं होती, वह तो अहैतुकी हुआ करती है। - राबिया
  • जहां भगवान हैं और जहां भक्त हैं वहां सब कुछ है, लेकिन भगवान को तो हमने देखा नहीं, भक्त को हम देख सकते हैं, इसलिए हमारी निगाह में भक्त की महिमा बढ़ जाती है। - विनोबा

जो मनुष्य तौल कर बातें नहीं करता उसे

  • प्रत्येक बालक यह संदेश लेकर संसार में आता है कि ईश्वर अभी मनुष्यों से निराश नहीं हुआ है। - रवींद्रनाथ टैगोर
  • निकृष्ट व्यक्ति बाधाओं के डर से काम शुरू ही नहीं करते, मध्यम प्रकृति वाले कार्य का प्रारंभ तो कर देते हैं किंतु विघ्न उपस्थित होने पर उसे छोड़ देते हैं। इसके विपरीत, उत्तम प्रकृति के व्यक्ति बार-बार विघ्नों के आने पर भी काम को एक बार शुरू कर देने के बाद फिर उसे नहीं छोड़ते। - भर्तृहरि
  • जो मनुष्य तौल कर बातें नहीं करता उसे कठोर बातें सुननी पड़ती हैं। - सादी

जहां विनय है, वहां भय नहीं

  • जितना दिखाते हो, उससे अधिक तुम्हारे पास होना चाहिए, जितना जानते हो उससे कम तुम्हें बोलना चाहिए। - शेक्सपियर
  • नम्रता अगर किसी में स्वाभाविक न हो तो चिर आयु पाने पर भी वह नम्र नहीं हो सकता। - मुतनव्बी
  • जहां विनय है, वहां भय नहीं है। - लोकोक्ति
  • अहंकार ने देवदूतों को शैतान में बदल दिया जबकि नम्रता मनुष्यों को देवदूत बनाती है। - सेंट ऑगस्टीन
  • जीव का अपवित्र मन ही प्रधान नरक है, एवं उस मन की वेदना-चिंता और भय-अशांति ही नारकीय यातना है। - तत्वकथा

जिसका मन जिससे लग गया

  • प्रशंसा ऐसा विष है जिसे अल्प मात्रा में ही ग्रहण किया जा सकता है। - बालजाक
  • हम प्रेम से जिसके दास होते हैं, वह हमारा भी दास हो जाता है। प्रेम से दास होना मानो एक प्रकार से मुक्त होना है। - साने गुरुजी
  • जिसका मन जिससे लग गया, वह उसी में रूप-गुण सब कुछ देखता है। प्रेम स्वाधीन को पराधीन कर सकता है। स्नेह के अतिरिक्त यह सामर्थ्य किसमें है? - दयाराम
  • स्वयं डरा हुआ व्यक्ति दूसरों को भी डरा देता है। - प्रश्नव्याकरणसूत्र
  • कान से सुनकर लोग चलते हैं, आंख से देखकर चलने वाले कम हैं। - लक्ष्मीनारायण मिश्र

जवान और बूढ़े में फर्क

  • युवक नियमों को जानता है, परंतु वृद्ध मनुष्य अपवादों को जानता है। ~ ओलिवर वेंडेल होल्म्स
  • मेघ वर्षा करते समय यह नहीं देखता कि भूमि उपजाऊ है या ऊसर। वह दोनों को समान रूप से सींचता है। गंगा का पवित्र जल उत्तम और अधम का विचार किए बिना सबकी प्यास बुझाता है। ~ तुकाराम
  • प्राप्त हुए धन का उपयोग करने में दो भूलें हुआ करती हैं, जिन्हें ध्यान में रखना चाहिए। अपात्र को धन देना और सुपात्र को धन न देना। ~ वेद व्यास
  • वैरी भी अद्भुत कार्य करने पर प्रशंसा के पात्र बन जाते हैं। ~ सोमेश्वर

जन्म से मुक्ति

  • मनुष्य क्षमा कर सकता है, देवता नहीं कर सकता। मनुष्य हृदय से लाचार है, देवता नियम का कठोर प्रवर्त्तक। मनुष्य नियम से विचलित हो सकता है, पर देवता की कुटिल भृकुटि नियम की निरंतर रखवाली के लिए तनी ही रहती है। मनुष्य इसलिए बड़ा है क्योंकि वह गलती कर सकता है, और देवता इसलिए बड़ा होता है क्योंकि वह नियम का नियंता है। ~ हजारी प्रसाद द्विवेदी
  • मेरी सम्मति में इंसान तीन प्रकार के होते हैं। एक वे जो जीवन को कोसते हैं। दूसरे वे जो उसे आशीर्वाद देते हैं। और तीसरे वे जो इस पर सोच- विचार करते हैं। मैं पहले प्रकार के इंसानों से उनकी दुखी अवस्था, दूसरे प्रकार के इंसानों से उनकी शुभ भावना और तीसरे प्रकार के इंसानों से उनकी बुद्धिमत्ता के कारण प्रेम करता हूं। ~ खलील जिब्रान
  • जंगली पशु क्रीड़ा के लिए कभी किसी की हत्या नहीं करते। मानव ही वह प्राणी है, जिसके लिए अपने साथी प्राणियों की यंत्रणा तथा मृत्यु मनोरंजक होती है। ~ जेम्स एंथनी फ्राउड
  • शोक करने वाला मनुष्य न तो मरे हुए के साथ जाता है और न स्वयं ही मरता है। जब लोक की यही स्वाभाविक स्थिति है तब आप किसके लिए बार-बार शोक कर रहे हैं। ~ वेद व्यास
  • जो मनुष्य इसी जन्म में मुक्ति प्राप्त करना चाहता है, उसे एक ही जन्म में हजारों वर्ष का काम करना पड़ता है। ~ विवेकानंद

जैसे सभ्य मेहमान उठ कर जाता

  • रिटायर होने के बाद बुढ़ापे में मेरे लिए सबसे ज्यादा सुखकर और मुझे सर्वाधिक संतोष देने वाली चीज वे यादें हैं जो मैंने अपनी कामकाजी उम्र में दूसरे लोगों को दोस्त बनाकर अर्जित की हैं। ~ मारकस काटो
  • रिटायरमेंट के वक्त मैं ठीक उसी तरह जाना चाहूंगा जैसे किसी पार्टी से कोई सभ्य मेहमान उठ कर जाता है। ~ लियोंटाइन प्राइस
  • यकीन करें कि बुढ़ापा उम्र का सबसे शानदार दौर होता है। भले ही आप उस वक्त अपनी जिम्मेदारियों से निबट चुके होते हैं, पर तब आप फ्रंट सीट पर बैठकर उन कामों के नतीजे का मजा ले सकते हैं जो आपने सक्रिय होते हुए किए थे। ~ जेन एलेन हैरिसन
  • रिटायरमेंट की उम्र में पहुंचने के बाद लोगों को समाजसेवा की तरफ बढ़ना चाहिए। निष्क्रिय लोगों को बर्दाश्त करने का दौर अब बीत गया है। ~ मैगी काह्न
  • अगर आप काम करते रहते हैं तो आपके इस दुनिया में होने का अर्थ बना रहता है। रिटायर होने के बाद अपनी बाकी जिंदगी टुच्चे खेलों में बिता देने का विचार बहुत बेहूदा है। ~ हैराल्ड जेनीन

जिस प्रकार मैले दर्पण में सूरज का प्रतिबिंब नहीं

  • जिस प्रकार मैले दर्पण में सूरज का प्रतिबिंब नहीं पड़ता उसी प्रकार मलिन अंत:करण में ईश्वर के प्रकाश का प्रतिबिंब नहीं पड़ सकता। ~

रामकृष्ण परमहंस

  • आंख के अंधे को दुनिया नहीं दिखती, काम के अंधे को विवेक नहीं दिखता, मद के अंधे को अपने से श्रेष्ठ नहीं दिखता और स्वार्थी को कहीं भी दोष नहीं दिखता।

चाणक्य

  • आपका कोई भी काम महत्वहीन हो सकता है पर महत्वपूर्ण यह है कि आप कुछ करें। ~ महात्मा गांधी
  • उड़ने की अपेक्षा जब हम झुकते हैं तब विवेक के अधिक निकट होते हैं। ~ अज्ञात

जल से सींचने पर पेड़ बढ़ते हैं

  • पानी में तेल, दुर्जन में गुप्त बात, सत्पात्र में दान और विद्वान व्यक्ति में शास्त्र का उपदेश थोड़ा भी हो, तो स्वयं फैल जाता। ~ चाणक्यनीति
  • न शत्रु न शस्त्र, न अग्नि, न विष और न दारुण रोग ही मनुष्य को उतना संतप्त करते हैं। जितनी कड़वी वाणी। ~ नीतिविदषाष्टिका
  • जल से सींचने पर पेड़ बढ़ते हैं, पत्थरों का ढेर नहीं। योग्य ही अपने अनुकूल आचरण पाकर पदार्थ बन जाता है। ~ सुभाषितावलि
  • अर्थ से ही अर्थ उसी प्रकार प्राप्त किया जाता है जिस प्रकार हाथी से हाथी प्राप्त किएजाते हैं। ~ कौटिल्य

जो शांति से सहन करता है, वही आहत होता है

  • ईश्वर उससे संतुष्ट होता है जो सब धर्मों के उपदेशों को सुनता है, सभी देवताओं की उपासना करता है, जो ईर्ष्या से मुक्त है और क्रोध को जीत चुका है। ~ विष्णुधर्मोत्तर पुराण
  • जो शांत भाव से सहन करता है, वही गंभीर रूप से आहत होता है। ~ रवीन्द्रनाथ ठाकुर
  • दो व्यक्तियों के एक चित्त होने पर कोई कार्य असाध्य नहीं होता। ~ सोमदेव
  • यदि तुम में सहनशक्ति हो तो तुम्हें किसी बात की कमी नहीं होगी। ~ आदिभट्टल नारायणदासु
  • सहयोग प्रेम की सामान्य अभिव्यक्ति के अतिरिक्त कुछ नहीं है। ~ रामतीर्थ

जीतता वह है जिसमें

  • वाक्पटु, निरालस्य व निर्भीक व्यक्ति से विरोध करके कोई नहीं जीत सकता। ~ तिरुवल्लुर
  • वह विजय महान होती है जो बिना रक्तपात के मिलती है। ~ स्पेनी लोकोक्ति
  • जीतता वह है जिसमें शौर्य होता है, धैर्य होता है, साहस होता है, सत्व होता है, धर्म होता है। ~ हजारीप्रसाद द्विवेदी
  • अक्रोध से क्रोध को जीतें, दुष्ट को भलाई से जीतें, कृपण को दान से जीतें, झूठ बोलने वाले को सत्य से जीतें। ~ धम्मपद
  • विजय के लिए केवल एक सत्याग्रही ही काफी है। ~ महात्मा गांधी

ज्यादा कीमत नहीं तो कोई भी तजुर्बा अच्छा

  • सज्जनों का लक्षण यह है कि वे सदा दया करने वाले और करुणाशील होते हैं। ~ विनोबा भावे
  • किसी का रुपया वापस किया जा सकता है लेकिन सहानुभूति के दो शब्द वह ऋण हैं, जिसे चुकाना मनुष्य की शक्ति के बाहर है। ~ सुदर्शन
  • कोई भी तजुर्बा अच्छा है, बशर्ते उसकी ज्यादा कीमत नहीं चुकानी पड़े। ~ एक कहावत
  • सेनापति वही है जो सिपाही की सेवा को अधिकार न समझ कर श्रद्धा की वस्तु समझता है। ~ रामकुमार वर्मा

झूठ से जो पाऊंगा वह पाना नहीं खोना है

  • यौवन साहस करता है और वृद्धावस्था विचार करती है। - राउपाख
  • सिर मुंड़ाने या दाढ़ी रखने से ही कोई संन्यासी नहीं हो जाता। बाल के समान पतले इस मार्ग पर चलना बहुत कठिन है। - हाफिज
  • झूठ से जो पाऊंगा वह पाना नहीं खोना है और सत्य से जो खोऊंगा वह खोना नहीं पाना है। - विमल मित्र
  • स्वजन शत्रु हो जाते हैं और पराए मित्र हो जाते हैं। कार्यवश ही लोग स्नेह करते है और तोड़ते हैं। - अश्वघोष
  • यह संभव नहीं कि कोई व्यक्ति निरंतर मुस्कराता ही रहे और वह दुष्ट भी हो। - शेक्सपियर
  • जो सेवा भावी है, उसे सेवा खोजने या पूछने की जरूरत नहीं होती। जरूरत पहचान कर वह स्वयं को वहां प्रस्तुत कर देता है। - विनोबा भावे
  • तू ने स्वर्ग और नर्क नहीं देखा। समझ ले कि उद्यम स्वर्ग है और आलस्य नरक है। - अज्ञात

झुककर चलने वाला

  • राग मिलाने वाली वासना है और द्वेष अलग करने वाली। ~ रामचंद्र शुक्ल
  • कितना भी पांडित्य हो, थोड़ी सी रसज्ञता की कमी से वह निरर्थक हो जाता है। ~ मारन वेंकटय्या
  • हितकर, किंतु अप्रिय वचन को कहने और सुनने वाले, दोनों दुर्लभ हैं। ~ वाल्मीकि
  • वृद्ध व्यक्ति जो झुककर चलता है, वह धरती में क्या खोजता चलता है? उसका जो यौवन रूपी रत्न खो गया है, उसे ही खोजता है कि शायद कहीं पर गिरा हुआ हो। ~ जायसी
  • काम करने वाला मरने से कुछ घंटे पूर्व ही वृद्ध होता है। ~ वृंदावनलाल वर्मा
  • राजधर्म एक नौका के समान है। यह नौका धर्म रूपी समुद्र में स्थित है। सतगुण ही नौका का संचालन करने वाला बल है, धर्मशास्त्र ही उसे बांधने वाली रस्सी है। ~ वेदव्यास

डरपोक प्राणियों में सत्य भी गूंगा हो जाता है

  • डरपोक प्राणियों में सत्य भी गूंगा हो जाता है। वही सीमेंट जो ईंट पर चढ़कर पत्थर हो जाता है, मिट्टी पर चढ़ा दिया जाए तो मिट्टी हो जाएगा। - प्रेमचंद
  • डर रखने से हम अपनी जिंदगी को बढ़ा तो नहीं सकते। डर रखने से बस इतना होता है कि हम ईश्वर को भूल जाते हैं, इंसानियत को भूल जाते हैं। - विनोबा भावे
  • तब तक ही भय से डरना चाहिए जब तक कि वह पास नहीं आ जाता। परंतु भय को अपने निकट देखकर प्रहार करके उसे नष्ट करना ही ठीक है। - चाणक्य

डॉक्टर आशावादी होते हैं

  • डॉक्टर असंख्य गलतियां करते हैं। इलाज के मामले में वे आदतन आशावादी होते हैं, लेकिन इलाज के नतीजों के मामले में उतने ही निराशावादी नजर आते हैं। ~ सैम्युअल बटलर
  • डॉक्टर ज्यादातर मायनों में वकीलों जैसे ही होते हैं। उनके बीच अकेला फर्क यह होता है कि वकील सिर्फ आपको लूटते हैं, जबकि डॉक्टर लूटने के बाद आपको मार भी डालते हैं। ~ एंटन चेखव
  • डॉक्टर बीमार को काटते, मारते और टॉर्चर करते हैं, और इस किस्म की अपनी सेवाओं के बदले में मोटी फीस भी वसूलते हैं। ~ हेराक्लिटस ऑफ इफेसस
  • बीमारी से भी कहीं ज्यादा खौफ डॉक्टर से खाया जाना चाहिए। ~ एक लैटिन कहावत
  • डॉक्टर की कामयाबी को सूरज देखता है, लेकिन उसकी नाकामी को जमीन छिपा लेती है। ~ एक फ्रांसीसी कहावत

तीन प्रकार के इंसान

  • मनुष्य क्षमा कर सकता है, देवता नहीं कर सकता। मनुष्य हृदय से लाचार है, देवता नियम का कठोर प्रवर्त्तयिता। मनुष्य नियम से विचलित हो सकता है, पर देवता की कुटिल भृकुटि नियम की निरंतर रखवाली के लिए तनी ही रहती है। मनुष्य इसलिए बड़ा है, क्योंकि वह गलती कर सकता है। और देवता इसलिए बड़ा होता है क्योंकि वह नियम का नियंता है। - हजारी प्रसाद द्विवेदी
  • मेरी समझ से इंसान तीन प्रकार के होते हैं। एक वे जो जीवन को कोसते हैं। दूसरे वे जो उसे आशीर्वाद देते हैं। और तीसरे वे जो इस पर सोच- विचार करते हैं। मैं पहले प्रकार के इंसानों से उनकी दुखी अवस्था, दूसरे प्रकार के इंसानों से उनकी शुभ भावना और तीसरे प्रकार के इंसानों से उनकी बुद्धिमत्ता के कारण प्रेम करता हूं। - खलील जिब्रान
  • जंगली पशु क्रीड़ा के लिए कभी किसी की हत्या नहीं करते। मानव ही वह प्राणी है, जिसके लिए अपने साथी प्राणियों की यंत्रणा तथा मृत्यु मनोरंजक होती है। - जेम्स एंथनी फ्राउड
  • शोक करने वाला मनुष्य न तो मरे हुए के साथ जाता है और न स्वयं ही मरता है। जब लोक की यही स्वाभाविक स्थिति है तब आप किसके लिए बार-बार शोक कर रहे हैं। - वेद व्यास

तृष्णा संतोष की बैरिन है

  • तृष्णा संतोष की बैरिन है, यह जहां पांव जमाती है, संतोष को भगा देती है। ~ सुदर्शन
  • जिसने इच्छा का त्याग किया है, उसको घर छोड़ने की क्या आवश्यकता है, और जो इच्छा का बंधुआ मजदूर है, उसको वन में रहने से क्या लाभ हो सकता है? सच्चा त्याबी जहां रहे वहीं वन और वही भवन-कंदरा है। ~ वेदव्यास
  • जिस जगह मान नहीं, जीविका नहीं, बंधु नहीं और विद्या का भी लाभी नहीं है, वहां नहीं रहना चाहिए। ~ चाणक्य
  • त्रुटि निकालना सरल है, अच्छा कार्य करना कठिन है। ~ प्लूटार्क

तुम आगे बढ़े चलो

  • फूल चुनकर इकट्ठा करने के लिए मत ठहरो। आगे बढ़े चलो। तुम्हारे पथ में फूल निरंतर खिलते रहेंगे। ~ रवींद्रनाथ ठाकुर
  • आवेश और क्रोध को वश में कर लेने से शक्ति बढ़ती और आवेश को आत्मबल के रूप में परिवर्तित किया जा सकता है। ~ महात्मा गांधी
  • आशा उत्साह की जननी है। आशा में तेज है, बल है, जीवन है। आशा ही संसार की संचालक शक्ति है। ~ प्रेमचंद्र
  • जब शरीर में सात्विक रस रूपी मेघ बरसते हैं, तब आयु रूपी नदी दिन-प्रतिदिन बढ़ती जाती है। ~ संत ज्ञानेश्वर

तपस्या धर्म का पहला और आखिरी कदम

  • अपनी पीड़ा सह लेना और दूसरे जीवों को पीड़ा न पहुंचाना, यही तपस्या का स्वरूप है। ~ संत तिरुवल्लुवर
  • तपस्या धर्म का पहला और आखिरी कदम है। ~ महात्मा गांधी
  • कर्म, ज्ञान और भक्ति का संगम ही जीवन का तीर्थ राज है। ~ दीनानाथ दिनेश
  • सबसे उत्तम तीर्थ अपना मन है जो विशेष रूप से शुद्ध किया हुआ हो। ~ स्वामी शंकराचार्य
  • ब्रह्माज्ञानी को स्वर्ग तृण है, शूर को जीवन तृण है, जिसने इंद्रियों को वश में किया उसको स्त्री तृण-तुल्य जान पड़ती है, निस्पृह को जगत तृण है। ~ चाणक्य

दूसरों के साथ अच्छा व्यवहार करो

  • लोगों के साथ व्यवहार करते समय हमें स्मरण रखना चाहिए कि हम तर्कशास्त्रियों के साथ व्यवहार नहीं कर रहे हैं। हम ऐसे लोगों के साथ व्यवहार कर रहे हैं, जिनमें मानसिक आवेश है, पक्षपात है और जो गर्व एवं अहंकार से संचरित होते हैं। - डेल कारनेगी
  • सच्चे और सरल कर्म को जानना आसान काम नहीं है। न्यायोचित कर्मानुकूल व्यवहार करने पर ही सच्चे और सरल कर्म को जाना जा सकता है। - रस्किन
  • दूसरों के साथ वैसा व्यवहार करो जैसा कि तुम चाहते हो कि वे तुम्हारे साथ करें। - बाइबिल
  • महापुरुष अपनी महत्ता का परिचय छोटे मनुष्यों के साथ किए गए अपने व्यवहार से देते हैं। - कार्लाइल

दो प्रकार के सच

  • सर्वोपरि दान जो आप किसी मनुष्य को दे सकते हैं, वह विद्या और ज्ञान का दान है। - रामतीर्थ
  • तुम्हें जो दिया था वह तो तुम्हारा ही दिया दान था। जितना ही तुमने ग्रहण किया है, उतना ही मुझे ऋणी बनाया है। - रवीन्द्रनाथ ठाकुर
  • सच्चा दान दो प्रकार का होता है- एक वह जो श्रद्धावश दिया जाता है, दूसरा वह जो दयावश दिया जाता है। - रामचंद्र शुक्ल
  • ऐसे भी लोग हैं जो देते हैं, लेकिन देने में कष्ट अनुभव नहीं करते, न वे उल्लास की ही अभिलाषा करते हैं और न पुण्य समझ कर ही कुछ करते हैं। - खलील जिब्रान
  • जब तू दान करे, तो जो तेरा दाहिना हाथ करता है, उसे तेरा बायां हाथ न जानने पाए, ताकि तेरा दान गुप्त हो। - नवविधान

दुख में मिलते हैं ईश्वर

  • दुख को दूर करने की एक ही अमोघ औषधि है- मन से दुखों की चिंता न करन। ~ वेदव्यास
  • धैर्य, धर्म, मित्र और नारी की परीक्षा आपात स्थिति में होती है। ~ तुलसीदास
  • ईश्वर जिसे भी मिले हैं, दुख में ही मिले हैं। सुख का साथी जीव है और दुख का साथी ईश्वर है। ~ रामचंद डोंगरे
  • स्वेच्छा से ग्रहण किए हुए दुख को ऐश्वर्य के समान भोगा जा सकता है। ~ शरत

दुख-दर्द जीनियस के भाग्य में होते हैं

  • तुम भले हो जब तुम अपने लक्ष्य की ओर दृढ़ता और साहसपूर्वक कदम बढ़ाते हो। लेकिन तब भी तुम बुरे नहीं हो जब तुम उस तरफ सिर्फ लंगड़ाते हुए जाते हो। इस तरह जानेवाले भी पीछे की तरफ नहीं जाते, आगे ही बढ़ते हैं। ~ खलील जिब्रान
  • दुख-दर्द, नि:संगता और अकेलापन, ये जीनियस के भाग्य में होते हैं, क्योंकि वह काल के विरुद्ध सोचता है। ~ दिनकर
  • अन्य के भीतर प्रवेश करने की शक्ति और अन्य को संपूर्ण रूप से अपना बना लेने का जादू ही प्रतिभा का सर्वस्व और वैशिष्ट्य है। ~ रवींद्रनाथ ठाकुर
  • जब प्रकृति को कोई कार्य संपन्न कराना होता है तो वह उसको करने के लिए एक प्रतिभा का निर्माण करती है। ~ एमर्सन

दुख का दर्शन

  • पहले से ही अधिक दुखी व्यक्ति को दुख के अन्य कारण दुखी नहीं करते। - भानुदत्त
  • दुख स्वयं ही एक औषधि है। - विलियम कोपर
  • तुम्हारा दुख उस छिलके का तोड़ा जाना है, जिसने तुम्हारे ज्ञान को अपने भीतर छिपा रखा है। - खलील जिब्रान
  • दुख के सिवा और किसी उपाय से हम अपनी शक्ति को नहीं जान सकते, और अपनी शक्ति को जितना ही कम करके जानेंगे, आत्मा का गौरव भी उतना ही कम करके समझेंगे। - रवीन्द्रनाथ ठाकुर
  • दुख से दुखित न होने वाले उस दुख को ही दुखद कर देंगे। - तिरुवल्लुवर

दूसरों का भरोसा मत करो

  • अगर संसार में तीन करोड़ ईसा, मुहम्मद, बुद्ध या राम जन्म लें तो भी तुम्हारा उद्धार नहीं हो सकता जब तक तुम स्वयं अपने अज्ञान को दूर करने के लिए कटिबद्ध नहीं होते, तब तक तुम्हारा कोई उद्धार नहीं कर सकता, इसलिए दूसरों का भरोसा मत करो। - स्वामी रामतीर्थ
  • उद्धार वही कर सकते हैं जो उद्धार के अभिमान को हृदय में आने नहीं देते। - अज्ञात
  • मांगना एक लज्जास्पद कार्य है। अपने उद्योग से कोई वस्तु प्राप्त करना ही सच्चे मनुष्य का कर्त्तव्य है। - महात्मा गांधी

दैव का भरोसा, कौन करता है

  • जो कायर है, जिसमें पराक्रम का नाम नहीं है, वही दैव का भरोसा करता है। ~ वाल्मीकि
  • भाग्य की कल्पना मूढ़ लोग ही करते हैं और भाग्य पर आश्रित होकर वे अपना नाश कर लेते हैं। बुद्धिमान लोग तो पुरुषार्थ द्वारा ही उत्कृष्ट पद को प्राप्त करते हैं। ~ योगवासिष्ठ
  • पुरुषार्थ का सहारा पाकर ही भाग्य भली भांति बढ़ता है। ~ वेदव्यास
  • भाग्य, पुरुषार्थ और काल तीनों संयुक्त हाकर मनुष्य को फल देते हैं। ~ मत्स्यपुराण
  • जब भाग्य अनुकूल रहता है, तब थोड़ा भी पुरुषार्थ सफल हो जाता है। ~ शुक्रनीति

दीर्घायु होना सब चाहते हैं

  • सभी प्राणियों को अपनी-अपनी आयु प्रिय है। सुख अनुकूल है, दुख प्रतिकूल है। वध अप्रिय है, जीना प्रिय है। सब जीव दीर्घायु होना चाहते हैं। ~ भगवान महावीर
  • मनुष्य का जीवन एक महानदी की भांति है जो अपने बहाव द्वारा नवीन दिशाओं में अपनी राह बना लेती है। ~ रवींद्रनाथ टैगोर
  • जीवन के युद्ध में चोटें और आघात बर्दाश्त करने से ही उसमें विजय प्राप्त होती है, उसमें आनंद आता है। ~ अज्ञात

दरिद्र कौन है? भारी तृष्णा वाला

  • दरिद्र कौन है? भारी तृष्णा वाला। और धनवान कौन है? जिसे पूर्ण संतोष है। ~ शंकराचार्य
  • कठिनाइयों का मुकाबला करो, चाहे सारी दुनिया दुश्मन ही क्यों न बन जाए। ~ मैजिनी
  • मुट्ठी भर संकल्पवान लोग, जिनकी अपने लक्ष्य में दृढ़ आस्था है, इतिहास की धारा को बदल सकते हैं। ~ महात्मा गांधी
  • सुवासना और दुर्वासना- ये दोनों मोक्ष और बंधन के मूल कारण हैं। ~ माधवदेव
  • विपत्तियों में ही लोग अपनी शक्ति से परिचित होते हैं, समृद्धि में नहीं। ~ अज्ञात
  • विपत्ति में अपनी प्रकृति बदल लेना अच्छा है पर अपने आश्रय के प्रतिकूल चेष्टा करना सर्वथा गलत है। ~ अभिनंद

धन का उपयोग

  • अपने अहंकार पर विजय पाना ही प्रभु की सेवा है। - महात्मा गांधी
  • प्रेम करने वाला पड़ोसी दूर रहने वाले भाई से कहीं उत्तम है। - चाणक्य
  • प्राप्त हुए धन का उपयोग करने में दो भूलें हुआ करती हैं, जिन्हें ध्यान में रखना चाहिए। अपात्र को धन देना और सुपात्र को धन न देना। - वेद व्यास
  • बैरी भी अद्भुत कार्य करने पर प्रशंसा के पात्र बन जाते हैं। - सोमेश्वर
  • युवक नियमों को जानता है, परंतु वृद्ध मनुष्य अपवादों को जानता है। - ओलिवर वेंडेल होल्म्स

धन जब बढ़ता है, मद भी साथ-साथ चढ़ता है

  • धन वह है जो हाथ में हो, मित्र वह है जो विपत्ति में हमेशा साथ दे, रूप वह है जहां गुण है, विज्ञान वह है जहां धर्म हो। - हाल सातवाहन
  • आत्मा से संबंध रखने वाली बातों में पैसे का कोई स्थान नहीं है। - महात्मा गांधी
  • धन खोकर अगर हम अपनी आत्मा को पा सकें, तो यह कोई महंगा सौदा नहीं है। - प्रेमचंद
  • धन अधिक होने पर नम्रता धारण करो, वह जरा कम पड़ने पर अपना सिर ऊंचा बनाए रखो। - तिरुवल्लुवर
  • धन जब बढ़ता है, मद भी साथ-साथ चढ़ता है। मद के प्रकोप से दुर्गुण और भी बढ़ते हैं। धन के निकल जाने पर मद उतर जाता है। उसके अभाव में दुर्गुण भी अदृश्य हो जाते हैं। - वेमना

धर्म का अर्थ

  • धर्म का अर्थ कर्मकांड नहीं होता, वह हमारे हृदय की संचित ऊर्जा है जो सबके कल्याण के लिए उद्यम करती है। - विवेकानंद
  • विनय के बिना संपत्ति क्या? चंद्रमा के बिना रात क्या? - भामह
  • हमारी श्रद्धा अखंड बत्ती जैसी होनी चाहिए। वह हमको तो प्रकाश देती ही है, आसपास भी देती है। - महात्मा गांधी
  • स्वार्थ की अनुकूलता और प्रतिकूलता से ही मित्र और शत्रु बना करते हैं। - वेदव्यास
  • अगर मूर्ख, लोभ और मोह के पंजे में फंस जाएं तो वे क्षम्य हैं, परंतु विद्या और सभ्यता के उपासकों की स्वार्थांधता अत्यंत लज्जाजनक है। - प्रेमचंद्र

धोखा देने वाला धोखा खाता है

  • हम संसार को गलत पढ़ते हैं और कहते हैं कि वह हमें धोखा देता है। - रवीन्द्रनाथ ठाकुर
  • धोखा देने वाला धोखा खाता है, दूसरों के रास्ते में गड्ढा खोदने वाले को कुआं तैयार मिलता है। - हजारीप्रसाद द्विवेदी
  • आदमी को अपने को धोखा देने की शक्ति दूसरों को धोखा देने की शक्ति से कहीं अधिक है। इस बात का प्रत्यक्ष प्रमाण हरेक समझदार व्यक्ति है। - महात्मा गांधी
  • यदि तू अपने हृदय में फूल का विचार करेगा तो फूल हो जाएगा और यदि उसी के प्रेमी बुलबुल में ध्यान लगाएगा तो बुलबुल बन जाएगा। - जामी
  • विपत्ति में भी जिसकी बुद्धि कार्यरत रहती है, वही धीर है। - सोमदेव

धर्म सेवा का नाम है, लूट और कत्ल का नहीं

  • धर्म से अर्थ उत्पन होता है। धर्म से सुख होता है। धर्म से मनुष्य सब कुछ प्राप्त करता है। धर्म जगत का सार है। ~ वाल्मीकि
  • जहां धर्म नहीं, वहां विद्या, लक्ष्मी, स्वास्थ्य आदि का भी अभाव होता है। धर्मरहित स्थिति में बिल्कुल शुष्कता होती है, शून्यता होती है। ~ महात्मा गांधी
  • धर्म सेवा का नाम है, लूट और कत्ल का नहीं। ~ प्रेमचंद
  • धर्म की शक्ति ही अनेक जीवन की शक्ति है, धर्म की दृष्टि ही जीवन की दृष्टि है। ~ राधाकृष्णन

धन पाला हुआ शत्रु

  • जिसने अपने को वश में कर लिया है, उसकी जीत को देवता भी हार में नहीं बदल सकते। - भगवान बुद्ध
  • उदार मन वाले विभिन्न धर्मों में सत्य देखते हैं, संकीर्ण मन वाले केवल अंतर देखते हैं। - एक चीनी कहावत
  • 'कृपया' और 'धन्यवाद'- ये ऐसी रेजगारी हैं जिनके द्वारा हम सामाजिक प्राणी होने का मूल्य चुकाते हैं। - गार्डनर
  • अच्छी नसीहत मानना अपनी योग्यता बढ़ाना है। - सोलन
  • यदि अपने पास धन इकट्ठा हो जाए, तो वह पाले हुए शत्रु के समान है क्योंकि उसे छोड़ना भी कठिन हो जाता है। - वेदव्यास

धैर्य प्रतिभा का आवश्यक अंग है

  • प्रतिष्ठा बनने में कई वर्ष लग जाते हैं, कलंक एक पल में लग जाता है। - सुदर्शन
  • प्रतिभा अपना मार्ग स्वयं निर्धारित कर लेती है और अपना दीपक स्वयं लिए चलती है। - विल्मट
  • धैर्य प्रतिभा का आवश्यक अंग है। - डिजरायली
  • महान ध्येय के प्रयत्न में ही आनंद है, उल्लास है और किसी अंश तक प्राप्ति की मात्रा भी है। - नेहरू
  • जिसे हम प्यार करते हैं उसी के अनुसार हमारा रूप और आकार निर्मित होता है। - गेटे

धन अधिक होने पर नम्रता धारण करो

  • धन अधिक होने पर नम्रता धारण करो, वह जरा कम पड़ने पर अपना सिर ऊंचा बनाए रखो। - तिरुवल्लुवर
  • मन, वचन और कर्म से सब प्राणियों के प्रति अदोह, अनुग्रह और दान - यह सज्जनों का सनातन धर्म है। - वेदव्यास
  • हर व्यक्ति को जो चीज हृदयंगम हो गई है, वह उसके लिए धर्म है। धर्म बुद्धिगम्य वस्तु नहीं, हृदयगम्य है। - महात्मा गांधी
  • स्वधर्म के प्रति प्रेम, परधर्म के प्रति आदर और अधर्म के प्रति उपेक्षा करनी चाहिए। - विनोबा

धन की तीन गति- दान, भोग और नाश

  • दान, भोग और नाश -ये तीन गतियां धन की होती हैं। जो न देता है और न भोगता है, उसके धन की तीसरी गति होती है। - भर्तृहरि
  • मोहांध तथा अविवेकी के समीप लक्ष्मी अधिक समय नहीं टिकती। - कथासरित्सागर
  • अधन ही जीव का धन है, धन आधा धन है, धान्य महद् धन है तथा विद्या तप और कीर्ति अतिधन हैं। - भगदत्त जल्हण
  • संसार में धनियों के प्रति गैर मनुष्य भी स्वजन जैसा आचरण करते हैं। - विष्णु शर्मा

धर्म व्यवहार अधिक है

  • मनुष्य में जो स्वाभाविक बल है, उसकी अभिव्यक्ति धर्म है। - विवेकानंद
  • जब करुणा प्राणों में बस जाती है, तभी धर्म मनुष्य को सुलभ होता है। - दुर्गा भागवत
  • मनुष्य की सभी वृत्तियों का चरम प्रकाश धर्म में होता है। - रवींद्रनाथ ठाकुर
  • धर्म विश्वास की अपेक्षा व्यवहार अधिक है। - राधाकृष्णन
  • धर्म के विषय में जोर-जबर्दस्ती ठीक नहीं होती। - कुरान

धन आता-जाता रहता है

  • जैसे रथ का पहिया इधर-उधर नीचे-ऊपर घूमता रहता है, वैसे ही धन भी विभिन्न व्यक्तियों के पास आता-जाता रहता है, वह कभी एक स्थान पर स्थिर नहीं रहता। ~ ऋग्वेद
  • हे राजन्, क्षण भर का समय है ही क्या, यह समझने वाला मनुष्य मूर्ख होता है। और एक कौड़ी है ही क्या, यह सोचने वाला दरिद्र हो जाता है। ~ नारायण पंडित
  • प्राप्त हुए धन का उपयोग करने में दो भूलें हुआ करती हैं, जिन्हें ध्यान में रखना चाहिए। अपात्र को धन देना और सुपात्र को धन न देना। ~ वेद व्यास
  • राज्य छाते के समान होता है, जिसका अपने हाथ में पकड़ा हुआ करदंड कई बार उतनी समस्याओं से रक्षा नहीं करता, जितनी कि थकान उत्पन्न कर देता है। ~ कालिदास
  • जिसकी बुद्धि नष्ट हो जाती है, वह मनुष्य सदा पाप ही करता रहता है। पुन:-पुन: किया हुआ पुण्य बुद्धि को बढ़ाता है। ~ वेदव्यास

निर्माण सदैव बलिदानों पर टिकता है

  • निर्माण सदैव बलिदानों पर टिकता है। और जब तक निर्माण के लिए बलिदान की खाद नहीं दी जाती तब तक विकास अंकुरित नहीं होता। - अज्ञात
  • अगर तुम्हारे एक शब्द से भी किसी को पीड़ा पहुंचती है तो तुम अपनी सब नेकी नष्ट हुई समझो। - संत तिरुवल्लुवर
  • अपनी बात के धनी लोगों के निश्चय मन को और नीचे गिरते हुए पानी के वेग को भला कौन फेर सकता है। - कालिदास
  • नेक बनने में सारी आयु लग जाती है, बदनाम होने में तो एक दिन भी नहीं लगता। ऊपर चढ़ना कैसा कठिन है, इसमें कितना समय लगता है? मगर गिरना कितना आसान है, इसमें परिश्रम नहीं करना पड़ता। - सुदर्शन

निंदा सहना

  • जो मनुष्य अपनी निंदा सह लेता है, उसने मानो सारे जगत पर विजय प्राप्त कर ली। - वेदव्यास
  • मनुष्य का जीवन एक महानदी की भांति है जो अपने बहाव द्वारा नई दिशाओं में अपनी राह बना लेती है। - रवींद्रनाथ टैगोर
  • हमारा गौरव कभी न गिरने में नहीं है, बल्कि प्रत्येक बार उठ खड़े होने में है। - कन्फ्यूशस
  • यदि तुम चाहते हो कि लोग तुम्हारे गुणों की प्रशंसा करें तो दूसरे के गुणों को मान्यता दो। - चाणक्य
  • चोरी का माल खाने से कोई शूरवीर नहीं, दीन बनता है। - महात्मा गांधी

नीति का जानकार

  • संसार में ऐसा कोई भी नहीं है जो नीति का जानकार न हो, परंतु ज्यादातर लोग उसके प्रयोग से विहीन होते हैं। - कल्हण
  • कभी-कभी समय के फेर से मित्र शत्रु बन जाता है और शत्रु भी मित्र हो जाता है, क्योंकि स्वार्थ बड़ा बलवान है। - वेदव्यास
  • जहां स्थूल जीवन का स्वार्थ समाप्त होता है, वहीं मनुष्यता प्रारंभ होती है। - हजारी प्रसाद द्विवेदी
  • शिक्षा का सबसे बड़ा उद्देश्य आत्मनिर्भर बनाना है। - सैमुअल स्माइल्स
  • नीच व्यक्ति किसी प्रशंसनीय पद पर पहुंचने के बाद सबसे पहले अपने स्वामी को ही मारने को उद्यत होता है। - नारायण पंडित

न मित्र न शत्रु

  • न कोई किसी का मित्र है और न कोई किसी का शत्रु। स्वार्थ से ही मित्र और शत्रु एक-दूसरे से बंधे हुए हैं। - वेदव्यास
  • महान लोगों की पराजित शत्रुओं से स्थायी शत्रुता नहीं होती। - भट्टाचार्य
  • गुप्त या प्रकट रूप से, बहुत या थोड़ा, स्वयं या दूसरे के द्वारा किया गया शत्रुओं का अपकार बहुत आनंद देता है। - भट्टनारायण
  • अहिंसा अच्छी चीज है इसमें कोई शक नहीं, लेकिन शत्रुहीन होना उससे भी बड़ी बात है। - विमल मित्र
  • नम्रता कठोरता से, जल चट्टान से और प्रेम बल से अधिक शक्तिशाली है। - हरमन हेस

नूर फ़कीर जानै नहीं

  • नूर फ़कीर जानै नहीं, जात बरन एक राम। तुव चरनन में आय के, मन मिल्यौ बिसराम।। - नूरूद्दीन
  • किसके कुल में दोष नहीं है, कौन व्याधि से पीड़ित नहीं है, कौन कष्ट में नहीं पड़ता और लक्ष्मी निरंतर किसके पास रहती है? - बृहस्पति नीति सार
  • अपने को विद्वान मानने वाले जिसे अयोग्य सिद्ध करते हैं, विधाता विजय की नियति से हठात उसी में शुभ रख देता है।

कल्हण

  • उन्होंने (श्रीकृष्ण ने) पहले नवपल्लवयुक्त पलाशवन वाली विकसित, पराग से परिपूर्ण कमलों वाली तथा पुष्पसुगंधों मतवाली हुई वसंत ऋतु को देखा। - माघ
  • वर्तमान को असाधारण संकट से ग्रस्त बताना भी एक तरह का फैशन ही है। - डिजरायली

निर्बल की रक्षा करता है, वही मनुष्य कहलाता है

  • मेघ वर्षा करते समय यह नहीं देखता कि भूमि उपजाऊ है या ऊसर। वह दोनों को समान रूप से सींचता है। गंगा का पवित्र जल उत्तम और अधम का विचार किए बिना सबकी प्यास बुझाता है। - तुकाराम
  • जो बलवान होकर निर्बल की रक्षा करता है, वही मनुष्य कहलाता है और जो स्वार्थवश परहानि करता है, वह पशुओं से भी गया-बीता है। - दयानंद
  • बल तथा कोश से संपन्न महान व्यक्तियों का महत्व ही क्या यदि उन्होंने दूसरों के कष्ट का उसी क्षण विनाश नहीं किया। - सोमदेव
  • उपकार करने का साहसी स्वभाव होने के कारण गुणी लोग अपनी हानि की भी चिंता नहीं करते। दीपक की लौ अपना अंग जलाकर ही प्रकाश उत्पन्न करती है। - अज्ञात

नीति का जानकार

  • संसार में ऐसा कोई भी नहीं है जो नीति का जानकार न हो, परंतु ज्यादातर लोग उसके प्रयोग से विहीन होते हैं। ~ कल्हण
  • कभी-कभी समय के फेर से मित्र शत्रु बन जाता है और शत्रु भी मित्र हो जाता है, क्योंकि स्वार्थ बड़ा बलवान है। ~ pवेदव्यास
  • जहां स्थूल जीवन का स्वार्थ समाप्त होता है, वहीं मनुष्यता प्रारंभ होती है। ~ हजारी प्रसाद द्विवेदी
  • शिक्षा का सबसे बड़ा उद्देश्य आत्मनिर्भर बनाना है। ~ सैमुअल स्माइल्स
  • नीच व्यक्ति किसी प्रशंसनीय पद पर पहुंचने के बाद सबसे पहले अपने स्वामी को ही मारने को उद्यत होता है। ~ नारायण पंडित

नैतिक बल ही सर्वश्रेष्ठ है

  • आरोग्य परम लाभ है, संतोष परम धन है, विश्वास परम बंधु है, निर्वाण परम सुख। ~ धम्मपद
  • मनुष्य पराक्रम के द्वारा दुखों से पार पाता है और प्रज्ञा से परिशुद्ध होता है। ~ सुत्तनिपात
  • सभी प्रकार के बलों में नैतिक बल ही सर्वश्रेष्ठ है। ~ पिंगलि सूरना
  • घृणा और द्वेष जो बढ़ा है, वह शीघ्र ही पतन के गह्वर में गिर पड़ता है। ~ हजारीप्रसाद द्विवेदी



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